पंचसिद्धांतिका: Difference between revisions
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'''पंचसिद्धांतिका''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pancha-Siddhantika'') [[भारत]] के महान खगोलशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य [[वराहमिहिर]] द्वारा रचित एक ग्रंथ है। महाराजा [[विक्रमादित्य]] के काल में इस ग्रंथ की रचना हुई थी। वराहमिहिर ने तीन महत्वपूर्ण ग्रन्थ वृहज्जातक, वृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका की रचना की। | '''पंचसिद्धांतिका''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pancha-Siddhantika'') [[भारत]] के महान खगोलशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य [[वराहमिहिर]] द्वारा रचित एक ग्रंथ है। महाराजा [[विक्रमादित्य]] के काल में इस ग्रंथ की रचना हुई थी। वराहमिहिर ने तीन महत्वपूर्ण ग्रन्थ [[वृहज्जातक]], [[वृहत्संहिता]] और पंचसिद्धांतिका की रचना की। | ||
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* इस ग्रंथ की रचना का काल ई. 520 माना जाता है। | * इस ग्रंथ की रचना का काल ई. 520 माना जाता है। | ||
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* इसमें त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए गये हैं, जो वाराहमिहिर के त्रिकोणमिति ज्ञान के परिचायक हैं। | * इसमें त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए गये हैं, जो वाराहमिहिर के त्रिकोणमिति ज्ञान के परिचायक हैं। | ||
* पंचसिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित पाँच सिद्धांतों का वर्णन है जो सिद्धांत पोलिशसिद्धांत, रोमकसिद्धांत, वसिष्ठसिद्धांत, सूर्यसिद्धांत तथा पितामहसिद्धांत हैं। | * पंचसिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित पाँच सिद्धांतों का वर्णन है जो सिद्धांत पोलिशसिद्धांत, रोमकसिद्धांत, वसिष्ठसिद्धांत, सूर्यसिद्धांत तथा पितामहसिद्धांत हैं। | ||
* वराहमिहिर ने इन पूर्व प्रचलित सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें लिखकर अपनी ओर से 'बीज' नामक संस्कार का भी निर्देश किया है, जिससे इन सिद्धांतों द्वारा परिगणित ग्रह दृश्य हो सकें। | * वराहमिहिर ने इन पूर्व प्रचलित सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें लिखकर अपनी ओर से 'बीज' नामक संस्कार का भी निर्देश किया है, जिससे इन सिद्धांतों द्वारा परिगणित ग्रह दृश्य हो सकें।<ref>{{cite web |url=https://sites.google.com/site/ekatmatastotra/stotra/scientists/varahmihir |title=वाराहमिहिर/Varahmihir|accessmonthday=21 मार्च |accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=एकात्मता स्तोत्र|language=हिंदी }}</ref> | ||
Revision as of 13:50, 21 March 2018
पंचसिद्धांतिका (अंग्रेज़ी: Pancha-Siddhantika) भारत के महान खगोलशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर द्वारा रचित एक ग्रंथ है। महाराजा विक्रमादित्य के काल में इस ग्रंथ की रचना हुई थी। वराहमिहिर ने तीन महत्वपूर्ण ग्रन्थ वृहज्जातक, वृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका की रचना की।
विशेषता
- इस ग्रंथ की रचना का काल ई. 520 माना जाता है।
- पंचसिद्धान्तिका में खगोल शास्त्र का वर्णन किया गया है।
- इसमें वाराहमिहिर के समय प्रचलित पाँच खगोलीय सिद्धांतों का वर्णन है।
- इस ग्रन्थ में ग्रह और नक्षत्रों का गहन अध्ययन किया गया है। इन सिद्धांतों द्वारा ग्रहों और नक्षत्रों के समय और स्थिति की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
- इसमें त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए गये हैं, जो वाराहमिहिर के त्रिकोणमिति ज्ञान के परिचायक हैं।
- पंचसिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित पाँच सिद्धांतों का वर्णन है जो सिद्धांत पोलिशसिद्धांत, रोमकसिद्धांत, वसिष्ठसिद्धांत, सूर्यसिद्धांत तथा पितामहसिद्धांत हैं।
- वराहमिहिर ने इन पूर्व प्रचलित सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें लिखकर अपनी ओर से 'बीज' नामक संस्कार का भी निर्देश किया है, जिससे इन सिद्धांतों द्वारा परिगणित ग्रह दृश्य हो सकें।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाराहमिहिर/Varahmihir (हिंदी) एकात्मता स्तोत्र। अभिगमन तिथि: 21 मार्च, 2018।