गुरु नानक जयंती: Difference between revisions
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गुरु नानक जयंती (अंग्रेज़ी: Guru Nanak Jayanti) सिक्ख धर्म]] के लिए एक बड़ा त्योहार है। कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाई जाती है और उसके पंद्रह दिनों बाद यानी कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जयंती को मनाया जाता है। ये पर्व भी दीपावली की तरह से मनाया जाता है। इस पर्व की लोग महीनों पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं। गुरु नानक जयंती पर ढोल मंजीरों के साथ प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं। गुरु नानक जयंती को प्रकाश पर्व भी कहते हैं। यही कारण है कि गुरु नानक देव की जयंती के मौके पर चारों ओर दीप जला कर रोशनी की जाती है। इस खास दिन को गुरु नानक देव के जन्म की खुशी में मनाया जाता है।
इतिहास
गुरु नानक देव सिक्ख]] धर्म के पहले गुरु थे। उनका जन्म 1469 ई। को हुआ था। नानक जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को पंजाब (अब पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में हुआ। हालांकि अब गुरु नानक जी का ये जन्म स्थल पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मौजूद ननकाना साहिब में है। इस जगह का नाम नानक देव के नाम से जाना जाता है। यहां देश विदेश से लोग चर्चित गुरुद्वारा ननकाना साहिब के दर्शन के लिए आते हैं। कहते हैं कि सिक्ख]] साम्राज्य के राजा महाराजा रणजीत सिंह ने यह गुरुद्वारा ‘ननकाना साहिब’ बनवाया था।
कौन थे गुरु नानक
गुरु नानक देव ने मूर्ति पूजा को निरर्थक माना और हमेशा ही रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में रहे। कहा जाता है कि गुरु नानक जी ने ही सिक्ख]] समाज की नींव रखी थी। सिक्ख]] समुदाय के गुरु नानक देव जी पहले गुरु थे। इस कारण से ही उनकी विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। गुरु नानक देव को उनके भक्त नानक देव, बाबा नानक और नानकशाह के नाम से पुकारते हैं।
इतना ही नहीं, कहा जाता है कि लद्दाख और तिब्बत क्षेत्र में 'नानक लामा' भी कहा जाता है। नानक जी की मृत्यु 22 सितंबर, 1539 ईस्वी को हुई। उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।
गुरुजी की 10 शिक्षाएं
- परम-पिता परमेश्वर एक है।
- हमेशा एक ईश्वर की साधना में मन लगाओ।
- दुनिया की हर जगह और हर प्राणी में ईश्वर मौजूद हैं।
- ईश्वर की भक्ति में लीन लोगों को किसी का डर नहीं सताता।
- ईमानदारी और मेहनत से पेट भरना चाहिए।
- बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न ही किसी को सतायें।
- हमेशा खुश रहना चाहिए, ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा याचना करें।
- मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरत मंद की सहायता करें।
- सभी को समान नज़रिए से देखें, स्त्री-पुरुष समान हैं।
- भोजन शरीर को जीवित रखने के लिए आवश्यक है। परंतु लोभ-लालच के लिए संग्रह करने की आदत बुरी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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