रावला नृत्य

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रावला नृत्य बुन्देलखण्ड का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह नृत्य बुन्देलखण्ड में दलित जातियों के यहाँ नाचा जाता है।[1]

  • यह नृत्य व्यावसायिक नृत्य है, जो शादी-विवाह आदि के शुभ अवसर पर विशेष रूप से नाचा जाता है।
  • रावला नृत्य में एक पुरुष स्त्री का भेष धारण करता है और दूसरा पुरुष विदूषक बनता है।
  • इस नृत्य के प्रमुख वाद्य यंत्र हारमोनियम, सारंगी, मृदंग, झींका, कसावरी और रमतूला हैं।
  • एक ओर राई नृत्य जहाँ नारी भावना परक ’बेड़नी नृत्य’ है, वहाँ दूसरी ओर ’रावला’ उसी का पौरुष रूप है।
  • रावला नृत्य की उत्पत्ति राई नृत्य से हुई है।
  • इस नृत्य में नृत्य के साथ स्वांग भी भरे जाते हैं। निम्नलिखित गीत में निर्गुण विचारों को व्यक्त किया गया है-

"गुरु पइयाँ लागो ज्ञान लाअम दइयो।
ईं घर भीतर नित अंधियारो, ज्ञान को दियल जराय दइयो।
विष की लहर उठत घर भीतर, इमरत बूँद चखाय दइयो।
धरमदास की अरज गुसांई, अब की लाज रखाय दइयो।
गुरु पइयाँ ...........।"

दलितों का नृत्य

दलितों के यहाँ रावला नृत्य बड़ी उमंग के साथ नाचा जाता है। इस नृत्य में दलित जाति के लोग भक्त रैदास के भजन भी गाते हैं। इस नृत्य के साथ स्वांग भी भरा जाता है। ये स्वांग दोनों प्रकार के होते हैं। इन नृत्यों के साथ सूपा और मटके आदि वाद्यों को बजाया जाता है। इन नृत्यों के साथ गीत भी गाये जाते हैं और यह नृत्य शादियों के समय विशेष रूप से नाचा जाता है। गीत का एक प्रकार निम्नलिखित है-

"मारे बटुआ में लोंग पचास, आंगनवाँ में बगर गई।
बारी सासो ने लई है उठाय, आंगनवाँ में बगर गई।
रिमझिम बरसे मेह आंगनवाँ में रिपट परी।
भोरी जिठानी ने लई है उठाय, आंगनवां में बगर गई।
मोरी दिवरनियां ने लई है उठाय, आंगनवां में बगर गई।
बारी ननदी ने लई है उठाय, सो लोंगें बगर गई।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिवासियों के लोक नृत्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 03 मई, 2014।

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