आँजनौक

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:53, 6 April 2016 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''आँजनौक''' भगवान श्रीकृष्ण से सम्बंधित ब्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

आँजनौक भगवान श्रीकृष्ण से सम्बंधित ब्रजमण्डल की प्रसिद्ध धार्मिक स्थली है। यह राधा जी की अष्टसखियों में से एक विख्यात श्रीविशाखा सखी का निवास-स्थान है। इनके पिता का नाम श्रीपावनगोप और माता का नाम देवदानी गोपी था।[1] नन्दगाँव से पाँच मील पूर्व-दक्षिण कोण में आँजनौक अवस्थित है। यहाँ कौतुकी कृष्ण ने अपनी प्राणवल्लभा राधा के नेत्रों में अञ्जन लगाया था। इसलिए यह लीलास्थली 'आँजनौक' नाम से प्रसिद्ध है।

प्रसंग

एक समय राधिका ललिता-विशाखा आदि सखियों के साथ किसी निर्जन कुञ्ज में बैठकर सखियों के द्वारा वेश-भूषा धारण कर रही थीं। सखियों ने नाना प्रकार के अलंकारों एवं आभूषणों से उन्हें अलंकृत किया। केवल नेत्रों में अञ्जन लगाने जा रही थीं कि उसी समय अचानक कृष्ण ने मधुर बाँसुरी बजाई। उनकी बाँसुरी की ध्वनि सुनते ही राधिका उन्मत्त होकर बिना अञ्जन लगाये ही प्राणवल्लभ से मिलने के लिए परम उत्कण्ठित होकर चल दीं। कृष्ण भी उनकी उत्कण्ठा से प्रतीक्षा कर रहे थे। जब वे प्रियतम से मिलीं तो कृष्ण उन्हें पुष्प आसन पर बिठाकर तथा उनके गले में हाथ डालकर सतृष्ण नेत्रों से उनके अंग-प्रत्यंग की शोभा का निरीक्षण करने लगे। परन्तु उनके नेत्रों में अञ्जन न देखकर सखियों से इसका कारण पूछा।

सखियों ने उत्तर दिया कि हम लोग इनका शृंगार कर रही थीं। प्राय: सभी शृंगार हो चुका था, केवल नेत्रों में अञ्जन लगाना बाक़ी था, किन्तु इसी बीच आपकी वंशी की मधुर ध्वनि सुनकर आप से मिलने के लिए अनुरोध करने पर भी बिना एक क्षण रुके चल पड़ीं, ऐसा सुनकर कृष्ण रसावेश में आकर स्वयं अपने हाथों से उनके नेत्रों में अञ्जन लगाकर दर्पण के द्वारा उनकी रूप माधुरी का उनको आस्वादन कराकर स्वयं भी आस्वादन करने लगे। इस लीला के कारण इस स्थान का नाम आँजनौक है। यहाँ रासमण्डल है, जहाँ रासलीला हुई थी। गाँव के दक्षिण में किशोरी कुण्ड है। कुण्ड के पश्चिम तट पर अञ्जनी शिला है, जहाँ श्रीकृष्ण ने श्री राधा जी को बैठाकर अञ्जन लगाया था।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अञ्जपुरे समाख्याते सुभानुर्गोप: संस्थित:। देवदानीति विख्याता गोपिनी निमिषसुना। तयो: सुता समुत्पन्ना विशाखा नाम विश्रुता ॥

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः