बल्लालेश्वर

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बल्लालेश्वर रायगढ़ ज़िला, महाराष्ट्र के पाली गाँव में स्थित भगवान गणेश के 'अष्टविनायक' शक्ति पीठों में से एक है। यह एकमात्र ऐसे गणपति हैं, जो धोती-कुर्ता जैसे वस्त्र पहने हुए हैं, क्योंकि उन्होंने अपने भक्त बल्लाल को ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिए थे। इस अष्टविनायक की महिमा का बखान 'मुद्गल पुराण' में भी किया गया है। ऐसी मान्यता है कि बल्लाल नाम के व्यक्ति कि भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश जी उसी मूर्ति में विराजमान हो गए, जिसकी पूजा बल्लाल किया करता था। अष्टविनायकों में बल्लालेश्वर ही भगवान गणेश का वह रूप है, जो भक्त के नाम से जाना जाता है।[1]

स्थिति

बल्लालेश्वर महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ ज़िले की करजत तहसील में सुधागढ़ तालुका के ग्राम पाली में स्थित है। पाली की करजत से दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। यह स्थान सरसगढ क़िले और अम्बा नदी के मध्य स्थित है। यह माना जाता है कि बल्लाल नाम के भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्री गणेश उसी पाषाण में विराजित हो गए, जिसकी पूजा बल्लाल कर रहा था। पुराणों में लिखा है कि भगवान श्री बल्लालेश्वर गजमुख हैं, भक्तों के रक्षक हैं। वेदों में भी इनकी महिमा गाई गई है।

कथा

एक कथानुसार प्राचीन समय में पाली ग्राम में कल्याण सेठ और उसकी पत्नी इन्दुवती रहते थे। उनका पुत्र बल्लाल गणेश का परम भक्त था। उसके पिता बल्लाल की गणेश भक्ति से अप्रसन्न रहते थे, क्योंकि उनकी इच्छा थी कि वह भी पैतृक व्यापार संभाले। किंतु बालक बल्लाल गणेश भक्ति में लगा रहता और अपने मित्रों को भी ऐसा करने को प्रेरित करता था। इससे मित्रों के माता-पिता ने यह माना कि बल्लाल भक्ति के नाम पर उनके पुत्रों को बहकाता है। उन लोगों ने इसकी शिकायत बल्लाल के पिता से की। तब पिता क्रोधित होकर बल्लाल को ढूंढने निकले। पिता ने पुत्र को जंगल में गणेश भक्ति करते पाया। आवेश में आकर बल्लाल के पिता ने बल्लाल की पूजा भंग कर दी। उन्होंने गणेश की प्रतिमा मानकर पूजा कर रहे पाषाण को उठाकर फेंक दिया और बल्लाल की पिटाई करने के बाद उसे एक पेड़ से बांधकर जंगल में छोड़ कर चले गए। किंतु दर्द से दु:खी होने पर भी बल्लाल गणेश का नाम लेता रहा। तब भगवान गणेश प्रसन्न होकर वहाँ ब्राह्मण के वेश में आए और बल्लाल के समक्ष प्रगट होकर उससे वर मांगने को कहा। तब बल्लाल ने भगवान गणेश से इसी क्षेत्र में वास करने को कहा। तब भगवान ने बल्लाल की प्रार्थना स्वीकार की और एक पाषाण के रूप में वहीं विराजित हो गए। माना जाता है कि बल्लाल के पिता ने जिस पाषाण को उठाकर फेंक दिया था, उसकी एक मंदिर में स्थापना की गई, जो ढुण्ढी विनायक के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि त्रेतायुग में यह स्थान 'दण्डकारण्य' का भाग था। जहाँ भगवान श्रीराम को आदिशक्ति जगदम्बा ने दर्शन दिए थे। यहीं से कुछ दूरी पर वह स्थान है, जिसके लिए माना जाता है कि सीता का हरण कर ले जाते समय रावण और जटायु के बीच युद्ध हुआ था।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री अष्टविनायक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2013।
  2. अष्टविनायक श्री बल्लालेश्वर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2013।

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