घासलेटी साहित्य

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 10:15, 13 May 2015 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''घासलेटी' शब्द<ref>विकृत या नकली घी के लिए सामान्यत: प्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

'घासलेटी' शब्द[1] का अर्थ है- 'निकृष्ट', 'निकम्मा', 'गंदा'। अनैतिकता को प्रश्रय देने वाले तथा लैंगिक विकृतियों को चित्रित करने वाले साहित्य के लिए 'घासलेट' विशेषण का सर्वप्रथम प्रयोग बनारसीदास चतुर्वेदी ने किया, जब वे 'विशाल भारत' के सम्पादक थे।[2]

आन्दोलन

घासलेटी साहित्य-विरोधी आन्दोलन लगभग दो वर्ष से भी ऊपर चला। इसमें कई लेखकों ने भाग लिया। सन 1928, 1926 और 1930 की हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं में घासलेटी साहित्य पर बहुत कुछ लिखा गया। 'विशाल भारत' में कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने बनारसीदास चतुर्वेदी के विचारों का समर्थन किया तथा गोरखपुर के सम्मेलन ने तो प्रस्ताव भी पास किया। महात्मा गाँधी तक ने इस विषय पर ध्यान दिया एवं ऐसी कुछ कृतियाँ भी स्वयं पढ़ी थीं। इस प्रसंग में बनारसीदास चतुर्वेदी से उनका पत्र-व्यवहार एवं वार्तालाप भी हुआ। पत्र-व्यवहार काफ़ी बाद में स्वयं बनारसीदास जी ने प्रकाशित कराया। गाँधी जी ने ऐसी चीजों को उस अर्थ में तो ग्रहण नहीं किया, जिस रूप में बनारसीदास चतुर्वेदी आदि ने प्रस्तुत किया था।[3]

साहित्य सम्बन्धी विवाद

घासलेटी साहित्य सम्बन्धी विवाद बहुत कुछ पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' की कथा-कृतियों को लक्ष्य करके उठा।[4] 'उग्र' के ऐसे साहित्य की भर्त्सना आदर्शवादी-नीतिवादी समीक्षकों की ओर से होना स्वाभाविक ही है। 'उग्र' ने अपनी इन रचनाओं का मंतव्य यही बताया कि वे समाज की निकृष्टता को प्रोत्साहित करने के लिए नहीं, प्रत्युत उनके प्रति अरुचि उत्पन्न करने के लिए लिखी गयी हैं। अत: इस प्रसंग पर मतैक्य नहीं हो सकता। आज भी तथाकथित मनोवैज्ञानिकता के नाम पर उपन्यासों में नग्न चित्रण देखने को मिलते हैं, जो सामाजिक स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़े घातक हैं। वस्तुत: अधिकांश घटनाएँ लेखक के अपने मस्तिष्क की उपज होती हैं, उनका यथार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं होता। यथार्थ होने पर भी यह युक्ति युक्त नहीं कि साहित्यकार, मानव की पतनशील प्रवृत्तियों को ब्यौरेवार लिपिबद्ध करे, फिर भले ही उनको पढ़कर उनके प्रति चाहे आक्रोश उत्पन्न हो, चाहे ललक।[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विकृत या नकली घी के लिए सामान्यत: प्रयुक्त
  2. 2.0 2.1 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 1 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 242 |
  3. गांधी जी का मत ऐसी एक या दो पुस्तकों तक ही सीमित है, जो उन्होंने पढ़ी थीं।
  4. 'चाकलेट','अबलाओं का इंसाफ', 'दिल्ली का दलाल' आदि।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः