गिरि पर बैठे कपिन्ह निहारी

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गिरि पर बैठे कपिन्ह निहारी
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अरण्यकाण्ड
चौपाई

गिरि पर बैठे कपिन्ह निहारी। कहि हरि नाम दीन्ह पट डारी॥
एहि बिधि सीतहि सो लै गयऊ। बन असोक महँ राखत भयऊ॥13॥

भावार्थ

पर्वत पर बैठे हुए बंदरों को देखकर सीताजी ने हरिनाम लेकर वस्त्र डाल दिया। इस प्रकार वह सीताजी को ले गया और उन्हें अशोक वन में जा रखा॥13॥



left|30px|link=सीतहि जान चढ़ाइ बहोरी|पीछे जाएँ गिरि पर बैठे कपिन्ह निहारी right|30px|link=हारि परा खल बहु बिधि|आगे जाएँ


चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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