तहँ करि भोग बिसाल

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तहँ करि भोग बिसाल
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

तहँ करि भोग बिसाल तात गएँ कछु काल पुनि।
होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत॥ 151॥

भावार्थ-

हे तात! वहाँ (स्वर्ग के) बहुत-से भोग भोगकर, कुछ काल बीत जाने पर, तुम अवध के राजा होगे। तब मैं तुम्हारा पुत्र होऊँगा॥ 151॥


left|30px|link=अस बरु मागि चरन गहि रहेऊ|पीछे जाएँ तहँ करि भोग बिसाल right|30px|link=इच्छामय नरबेष सँवारें|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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