पुरानी गोकुल

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पुरानी गोकुल ब्रज के धार्मिक स्थलों में से एक है। महावन जो कि गोकुल से आगे 2 किलोमीटर दूर स्थित है, इसे ही लोग पुरानी गोकुल कहते हैं। गोपराज नन्द बाबा के पिता पर्जन्य गोप पहले नन्दगाँव में ही रहते थे। वहीं रहते समय उनके उपानन्द, अभिनन्द, श्रीनन्द, सुनन्द और नन्दन- ये पाँच पुत्र तथा सनन्दा और नन्दिनी दो कन्याएँ पैदा हुई थीं।

  • पर्जन्य गोप ने महावन में रहकर अपने सभी पुत्र और कन्याओं का विवाह कर दिया। मध्यम पुत्र श्रीनन्द को कोई सन्तान न होने से वे बड़े चिन्तित हुए। उन्होंने अपने पुत्र नन्द को सन्तान की प्राप्ति के लिए 'नारायण' की उपासना की और उन्हें आकाशवाणी से यह ज्ञात हुआ कि श्रीनन्द को असुरों का दलन करने वाला महापराक्रमी सर्वगुण सम्पन्न एक पुत्र शीघ्र ही पैदा होगा।
  • कुछ ही दिनों बाद केशी आदि असुरों का उत्पात आरम्भ होने लगा। पर्जन्य गोप पूरे परिवार और सगे सम्बन्धियों के साथ इस बृहद्वन में उपस्थित हुए। इस बृहद् या महावन में निकट ही यमुना बहती है। यह वन नाना प्रकार के वृक्षों, लता-वल्लरियों और पुष्पों से सुशोभित है, जहाँ गऊओं के चराने के लिए हरे-भरे चारागाह हैं। ऐसे एक स्थान को देखकर सभी गोप ब्रजवासी बड़े प्रसन्न हुए तथा यहीं पर बड़े सुखपूर्वक निवास करने लगे।
  • यहीं पर नन्दभवन में यशोदा मैया ने कृष्ण कन्हैया तथा योगमाया को यमज सन्तान के रूप में अर्द्धरात्रि को प्रसव किया। यहीं यशोदा के सूतिकागार में नाड़ीच्छेदन आदि जातकर्म रूप वैदिक संस्कार हुए। यहीं पूतना, तृणावर्त, शकटासुर नामक असुरों का वध कर कृष्ण ने उनका उद्धार किया।
  • पास ही नन्द की गोशाला में कृष्ण और बलदेव का नामकरण हुआ। यहीं पास में ही घुटनों पर राम-कृष्ण चले, यहीं पर मैया यशोदा ने चंचल बाल कृष्ण को ओखल से बाँधा, कृष्ण ने यमलार्जुन का उद्धार किया। यहीं ढाई-तीन वर्ष की अवस्था तक की कृष्ण और राम की बालक्रीड़ाएँ हुईं।
  • वृहद्वन या महावन गोकुल की लीलास्थलियों का ब्रह्माण्ड पुराण में भी वर्णन किया गया है।


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