अरिष्टनेमि

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 14:08, 30 June 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - " महान " to " महान् ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
चित्र:Disamb2.jpg अरिष्टनेमि एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अरिष्टनेमि (बहुविकल्पी)

अरिष्टनेमि जैन धर्म के महापुरुषों में गिने जाते थे। 'आधुनिक काल' के अनेक इतिहासकारों ने अरिष्टनेमि को एक ऐतिहासिक महापुरुष के रूप में स्वीकार किया है। अरिष्टनेमी अवसर्पिणी काल के बाईसवें तीर्थंकर हुए थे। इनसें पुर्व के इक्कीस तीर्थंकरों को प्रागैतिहासिक कालीन महापुरुष माना जाता है।

युगपुरुष

वासुदेव श्रीकृष्ण एवं तीर्थंकर अरिष्टनेमि न केवल समकालीन युगपुरुष थे, बल्कि पैत्रक परम्परा से भाई भी थे। भारत की प्रधान ब्राह्मण और श्रमण संस्कृतियों ने इन दोनों युगपुरुषों को अपना-अपना आराध्य देव माना है। ब्राह्मण संस्क्रति ने श्रीकृष्ण को सोलहों कलाओं से सम्पन्न विष्णु का अवतार स्वीकारा है तो श्रमण संस्कृति ने भगवान अरिष्टनेमि को अध्यात्म के सर्वोच्च नेता तीर्थंकर तथा श्रीकृष्ण को महान् कर्मयोगी एवं भविष्य का तीर्थंकर मानकर दोनों महापुरुषों की आराधना की है।

जन्म

अरिष्टनेमि का जन्म 'यदुकुल' के ज्येष्ठ पुरुष दशार्ह-अग्रज समुद्रविजय की रानी शिवा देवी से श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन हुआ था। समुद्रविजय शौर्यपुर के राजा थे। मगध के राजा जरासंध से चलते विवाद के कारण समुद्रविजय यादव परिवार सहित सौराष्ट्र प्रदेश में समुद्र तट के निकट द्वारिका नामक नगरी बसाकर रहने लगे। श्रीकृष्ण के नेतृत्व में द्वारिका को राजधानी बनाकर यादवों ने महान् उत्कर्ष प्राप्त किया।

कैवल्य प्राप्ति

एक वर्ष तक वर्षीदान देकर अरिष्टनेमि श्रावण शुक्ल षष्टी को प्रव्रजित हुए। 54 दिनों के पश्चात् आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वे कैवली बने। देवों के साथ इन्द्रों और मानवों के साथ श्रीकृष्ण ने मिलकर कैवल्य महोत्सव मनाया। अरिष्टनेमि ने धर्मोपदेश दिया। सहस्त्रों लोगों ने श्रमण धर्म और सहस्त्रों ने श्रावक धर्म अंगीकार किया। 'वरदत्त' आदि ग्यारह गणधर अरिष्टनेमि के प्रधान शिष्य हुए। प्रभु के धर्म-परिवार में अठारह हज़ार श्रमण, चालीस हज़ार श्रमणीयां, एक लाख उनहत्तर हज़ार श्रावक एवं तीन लाख छ्त्तीस हज़ार श्राविकाएं थीं।

निर्वाण

आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को शत्रुंजय पर्वत से प्रभु अरिष्टनेमि ने निर्वाण प्राप्त किया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः