विलम्ब संवत्सर

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विलम्ब अथवा 'विलम्बी' हिन्दू धर्म में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में बत्तीसवाँ है। इस संवत्सर के आने पर विश्व में राजविग्रह, वर्षा की अधिकता, लोगों में रोग की वृद्धि तथा अन्न आदि की प्रचुरता रहती है। इस संवत्सर का स्वामी विश्वेदेव को माना गया है।

  • विलम्ब संवत्सर में जन्म लेने वाला शिशु धूर्त, लालची, आलसी, कफ युक्त, प्रलापी तथा भाग्यवादी होता है।
  • ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से किया था, अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है।
  • हिन्दू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है।
  • संवत्सर 60 हैं। जब 60 संवत पूरे हो जाते हैं तो फिर पहले से संवत्सर का प्रारंभ हो जाता है।


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