अकाल बुंगा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:00, 19 May 2018 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''अकाल बुंगा''' की स्थापना सिक्खों के छठे गुर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

अकाल बुंगा की स्थापना सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद ने की थी। 'बुंगे' का अर्थ है- 'एक बड़ा भवन, जिसके ऊपर गुंबज हो'। इसके भीतर अकाल तख्त (अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के सम्मुख) की रचना की गई और इसी भवन में अकालियों की गुप्त मंत्रणाएँ और गोष्ठियाँ होने लगीं।

  • अकालियों की गोष्ठियों और गुप्त वार्ताओं में जो निर्णय होते थे, उन्हें गुरुमताँ अर्थात्‌ गुरु का आदेश नाम दिया गया। धार्मिक समारोह के रूप में ये सम्मेलन होते थे। मुगलों के अत्याचारों से पीड़ित जनता की रक्षा ही इस धार्मिक संगठन का गुप्त उद्देश्य था। यही कारण था कि अकाली आंदोलन को राजनीतिक गतिविधि मिली।[1]
  • बुंगे से ही गुरुमताँ को आदेश रूप से सब ओर प्रसारित किया जाता था और वे आदर्श कार्य रूप में परिणत किए जाते थे।
  • अकाल बुंगे का अकाली वही हो सकता था, जो नामवाणी का प्रेमी हो और पूर्ण त्याग और विराग का परिचय दे।
  • ये लोग बड़े शूर वीर, निर्भय, पवित्र और स्वतंत्र होते थे। निर्बलों, बूढ़ों, बच्चों और अबलाओं की रक्षा करना ये अपना धर्म समझते थे। सबके प्रति इनका मैत्रीभाव रहता था। मनुष्य मात्र की सेवा करना इनका कर्तव्य था। अपने सिर को हमेशा ये हथेली पर लिए रहते थे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश,खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 66 |

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः