महापुराण

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महापुराण जैन धर्म से संबंधित दो भिन्न प्रकार के काव्य ग्रंथों का नाम है, जिनमें से एक की रचना संस्कृत में हुई है तथा दूसरे की अपभ्रंश में। संस्कृत में रचित 'महापुराण' के पूर्वार्ध (आदिपुराण) के रचयिता आचार्य जिनसेन हैं तथा उत्तरार्ध (उत्तरपुराण) के रचयिता आचार्य गुणभद्र। अपभ्रंश में रचित बृहत् ग्रंथ 'महापुराण' के रचयिता महाकवि पुष्पदन्त हैं।

आदिपुराण

जिनसेन स्वामी ने सभी 63 शलाका पुरुषों का चरित्र लिखने की इच्छा से महापुराण का प्रारंभ किया था, परंतु बीच में ही शरीरान्त हो जाने से उनकी यह इच्छा पूर्ण न हो सकी और महापुराण अधूरा रह गया, जिसे उनकी मृत्यु के उपरांत उनके शिष्य गुणभद्र ने पूरा किया।

महापुराण के दो भाग हैं- एक आदिपुराण और दूसरा उत्तरपुराण। आदिपुराण में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ या ऋषभदेव का चरित्र है और उत्तरपुराण में शेष 23 तीर्थंकरों तथा अन्य शलाका पुरुषों का। आदिपुराण में बारह हजार श्लोक तथा 47 पर्व या अध्याय हैं। इनमें से 42 पर्व पूरे तथा 43वें पर्व के 3 श्लोक आचार्य जिनसेन के और शेष चार पर्वों के 1620 श्लोक उनके शिष्य गुणभद्र द्वारा रचित हैं। इस तरह आदिपुराण के 10380 श्लोकों के रचयिता आचार्य जिनसेन हैं।

उत्तरपुराण

उत्तरपुराण, महापुराण का पूरक भाग है। इसमें अजितनाथ से आरंभ कर 23 तीर्थंकर, सगर से आरंभ कर 11 चक्रवर्ती, 9 बलभद्र, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण तथा उनके काल में होने वाले विशिष्ट पुरुषों के कथानक दिये गये हैं। इन विशिष्ट कथानकों में कितने ही कथानक इतने रोचक ढंग से लिखे गये हैं कि उन्हें प्रारंभ करने पर पूरा किये बिना बीच में छोड़ने की इच्छा नहीं होती। यद्यपि आठवें, सोलहवें, बाईसवें, तेईसवें और चौबीसवें तीर्थंकर को छोड़कर अन्य तीर्थंकरों के चरित्र अत्यंत संक्षिप्त रूप से लिखे गये हैं, परंतु वर्णन शैली की मधुरता के कारण वह संक्षेप भी अरूचिकर नहीं होता है। इस ग्रंथ में न केवल पौराणिक कथानक ही है, अपितु कुछ ऐसे स्थल भी हैं, जिनमें सिद्धांत की दृष्टि से सम्यक् दर्शन आदि का और दार्शनिक दृष्टि से सृष्टिकर्तृत्व आदि विषयों का भी अच्छा विवेचन हुआ है।

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