बल्लभगढ़

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 14:01, 9 May 2021 by आदित्य चौधरी (talk | contribs) (Text replacement - "कब्जा" to "क़ब्ज़ा")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

बल्लभगढ़ भारत के हरियाणा राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित है। यह राजधानी दिल्ली से लगभग 30 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बल्लभगढ़ फ़रीदाबाद ज़िले का प्रमुख शहर और तहसील है, जो दिल्ली-मथुरा रेलमार्ग पर स्थित है। यह भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंतर्गत आता है। भारतीय इतिहास में बल्लभगढ़ की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यह क्षेत्र 18वीं शती में जाटों की राजनीतिक शक्ति का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।[1]

इतिहास

बल्लभगढ़ रियासत की स्थापना गांव सिही निवासी बलराम सिंह उर्फ बल्लू ने 1606 ई. में की थी। सबसे पहले राजा बल्लू बने। उनकी सातवीं पीढ़ी में नाहर सिंह पैदा हुए। वे 13 वर्ष की आयु में ही राजा बन गए। राजा नाहर बहुत ही बहादुर थे। उनकी सेना में जाट, गुर्जर, राजपूत, सैनी, वाल्मीकि सभी जातियों के सैनिक शामिल थे। भरतपुर नरेश सूरजमल ने बल्लभगढ़ के जाटों की मुग़ल सेनाओं के विरुद्ध सहायता की थी। 1757 ई. में अहमदशाह अब्दाली ने बल्लभगढ़ का घेरा डालकर भरतपुर नरेश जवाहर सिंह को गढ़ छोड़कर भाग जाने पर विवश कर दिया। बल्लभगढ़ से एक मील की दूरी पर सीही ग्राम स्थित है, जिसे महाकवि सूरदास का जन्म-स्थान माना जाता है।

1857 में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ पूरे देश में अंदर ही अंदर एक आग सुलग रही थी। इसकी शुरूआत मेरठ छावनी से मंगल पांडे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि कर चुके थे। तब सभी राजाओं के सामने एक ही परेशानी थी कि अंग्रेजों से किस राजा के नेतृत्व मे लड़ाई लड़ी जाए। तब सभी ने मुग़लों के अंतिम बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र को दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का फैसला लिया और दिल्ली के तख्तोताज की सुरक्षा का जिम्मा बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह, झज्जर के नबाव, बहादुरगढ़ के नबाव को सौंपा गया। राजा नाहर सिंह की बहादुरी को देखते हुए उन्हें बहादुरशाह ज़फ़र का आंतरिक प्रशासक घोषित किया गया। अंग्रेजी सेना को दिल्ली पर हमला करने से पहले राजा नाहर की सेना का सामना करना पड़ा।

नाहर सिंह के नेतृत्व में सेना ने अंग्रेजी सेना को बुरी तरह से परास्त किया। अब अंग्रेज़ भी यह सोचने के लिए मजबूर हो गए कि जब तक राजा नाहर सिंह है, तब तक दिल्ली पर क़ब्ज़ा करना मुश्किल है। तब अंग्रेजों ने एक चाल चली। वे शांति का संदेश लेकर राजा नाहर के पास आए और उन्होंने बताया कि वे दिल्ली में बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र से समझौता करना चाहते हैं। बहादुरशाह ज़फ़र तब तक बात करने के लिए तैयार नहीं थे, जब तक राजा नाहर सिंह इस बातचीत के मौके पर मौजूद न हों। राजा नाहर सिंह अंग्रेजों की चाल को समझ नहीं पाए और वे उनकी चाल में फंस गए। अंग्रेजों ने राजा नाहर को लाल किले में प्रवेश करने के साथ ही बंदी बना लिया। अंग्रेजों ने बहादुरशाह ज़फ़र को भी बंदी बना लिया। राजा नाहर की लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेजों ने उनके खिलाफ पलवल के डाकखाने को लूटने के आरोप में मामला दर्ज किया और इलाहबाद की कोर्ट में मुकदमा चलाया। 9 जनवरी, 1858 को अंग्रेजों ने राजा नाहर सिंह, उनके सेनापति भूरा सिंह, गुलाब सिंह व अन्य को चांदनी चौक के लाल कुआं पर फांसी के फंदे पर लटका दिया।[2]

नाहर सिंह का भूतपूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिहं वर्मा ने दिल्ली में हर वर्ष उनका बलिदान दिवस मनाने की घोषणा की थी। उनका बलिदान दिवस दिल्ली में भी मनाया जाता है। हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे बंसीलाल ने राजा नाहर सिंह के ऊपर 9 जनवरी, 1997 को दो डाक टिकट जारी किए थे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 613 |
  2. राजा नाहर सिंह को नहीं याद करती सरकार (हिन्दी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 07 सितम्बर, 2018।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः