गंगालहरी (पंडित जगन्नाथ)

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:45, 28 June 2021 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) ('{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=गंगालहरी|लेख का नाम=गं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
चित्र:Disamb2.jpg गंगालहरी एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- गंगालहरी (बहुविकल्पी)

गंगालहरी पंडितराज जगन्नाथ द्वारा रचित गंगा की स्तुति है, जिसमें 521 श्लोक हैं। इसमें कवि ने गंगा से अपने उद्धार के लिए विनती की है।

  • एक प्रचलित कथा के अनुसार पंडित जगन्नाथ ने मुस्लिम स्त्री से विवाह किया था। दिल्ली दरबार में रहकर सुख भोगने के बाद वृद्धावस्था में जब वे वाराणसी आए तो विवाह के कारण काशी के पंडितों ने उन्हें बहिष्कृत कर दिया। इस पर वे पत्नी के साथ गंगा किनारे बैठकर ‘गंगालहरी’ का पाठ करने लगे। प्रसन्न होकर गंगा आगे बढ़ने लगीं और अंतिम श्लोक पढ़ते-पढ़ते उसने पति-पत्नी दोनों को अपने में समा लिया। 'गंगालहरी' अब अत्यन्त लोकप्रिय है और बहुत-से लोग इसका नित्य पाठ करते हैं।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय संस्कृति कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: राजपाल एंड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 263-64 |

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः