मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु
मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु
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[[चित्र:Sri-ramcharitmanas.jpg|रामचरितमानस
मन, वचन तथा कर्म से उसी का (सीता जी का पता लगाने का) उपाय सोचना। श्री रामचंद्रजी का कार्य संपन्न (सफल) करना। सूर्य को पीठ से और अग्नि को हृदय से (सामने से) सेवन करना चाहिए, परंतु स्वामी की सेवा तो छल छोड़कर सर्वभाव से (मन, वचन, कर्म से) करनी चाहिए॥2॥
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
कवि | गोस्वामी तुलसीदास | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मूल शीर्षक | रामचरितमानस | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु। रामचंद्र कर काजु सँवारेहु॥ |
- भावार्थ
मन, वचन तथा कर्म से उसी का (सीता जी का पता लगाने का) उपाय सोचना। श्री रामचंद्रजी का कार्य संपन्न (सफल) करना। सूर्य को पीठ से और अग्नि को हृदय से (सामने से) सेवन करना चाहिए, परंतु स्वामी की सेवा तो छल छोड़कर सर्वभाव से (मन, वचन, कर्म से) करनी चाहिए॥2॥
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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