अजैविक कारक: Difference between revisions
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सूर्य की विकिरण ऊर्जा का वह भाग जो दृश्य स्पेक्ट्रम का निर्माण करता है, [[प्रकाश]] कहलाता है। पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनाते हैं। इसके लिए उन्हें ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो उन्हें सूर्य के प्रकाश से विकिरण के रूप में प्राप्त होती है तथा भोजन के रूप में पौधों संग्रहीत हो जाती है। इस ऊर्जा पर जीव निर्भर रहते हैं। इस प्रकार प्रकाश के रूप में प्राप्त ऊर्जा पर समस्त जीव आश्रित हैं। प्रकाश के अभाव में पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। | सूर्य की विकिरण ऊर्जा का वह भाग जो दृश्य स्पेक्ट्रम का निर्माण करता है, [[प्रकाश]] कहलाता है। पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनाते हैं। इसके लिए उन्हें ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो उन्हें सूर्य के प्रकाश से विकिरण के रूप में प्राप्त होती है तथा भोजन के रूप में पौधों संग्रहीत हो जाती है। इस ऊर्जा पर जीव निर्भर रहते हैं। इस प्रकार प्रकाश के रूप में प्राप्त ऊर्जा पर समस्त जीव आश्रित हैं। प्रकाश के अभाव में पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। | ||
प्रकाश जीवों के विकास, वृद्धि एवं [[रंग]] को प्रभावित करता है। प्रकाश की कम या अधिक मात्रा के आधार पर ठण्डे प्रदेश के लोग गोरे तथा गर्म प्रदेश के लोग काले होते हैं। यह जीवों की जनन क्षमता को भी प्रभावित करता है। प्रकाश ही पत्तियों के पर्णरन्ध्रों के खुलने एवं बंद होने की क्रिया को नियंत्रित करता है। साधारणतया पर्णरन्ध्र सूर्योदय के समय खुलते तथा सूर्यास्त के समय बंद हो जाते हैं। यह पौधों की पर्याप्त एवं अपेक्षित वृद्धि के साथ उन्हें मजबूती प्रदान करता है। इसी कारण पर्याप्त प्रकाश में उगने वाले पौधों के तने छोटे, मोटे और मजबूत होते हैं जबकि अंधेरे में उगने वाले पौधों के तने दुर्बल, | प्रकाश जीवों के विकास, वृद्धि एवं [[रंग]] को प्रभावित करता है। प्रकाश की कम या अधिक मात्रा के आधार पर ठण्डे प्रदेश के लोग गोरे तथा गर्म प्रदेश के लोग काले होते हैं। यह जीवों की जनन क्षमता को भी प्रभावित करता है। प्रकाश ही पत्तियों के पर्णरन्ध्रों के खुलने एवं बंद होने की क्रिया को नियंत्रित करता है। साधारणतया पर्णरन्ध्र सूर्योदय के समय खुलते तथा सूर्यास्त के समय बंद हो जाते हैं। यह पौधों की पर्याप्त एवं अपेक्षित वृद्धि के साथ उन्हें मजबूती प्रदान करता है। इसी कारण पर्याप्त प्रकाश में उगने वाले पौधों के तने छोटे, मोटे और मजबूत होते हैं जबकि अंधेरे में उगने वाले पौधों के तने दुर्बल, कमज़ोर एव क्षीण होते हैं। प्रकाश की उपस्थिति में [[पुष्प|पुष्पों]] एवं [[फल|फलों]] की सामान्य वृद्धि होती है। यही कारण है कि जब वृक्षों तथा अनाज के पौधों में फूल आ रहे हों, उस समय प्रकाश का होना आवश्यक है। | ||
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ये वे कारक हैं जो अपने रासायनिक गुणों के द्वारा पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं | ये वे कारक हैं जो अपने रासायनिक गुणों के द्वारा पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं | ||
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जल जीव मण्डल के जीवों की सभी जैविक क्रियाओं को प्रभावित करता है तथा यह जीवों की जैविक आवश्यकता है। [[जल]] के बिना जीवन असम्भव है। यह जीवों की शारीरिक संरचना का प्रमुख घटक है क्योंकि जीवद्रव्य का 70% से 90% भाग जल है। यह जीवों के [[ताप]] को भी नियन्त्रित करता है। | जल जीव मण्डल के जीवों की सभी जैविक क्रियाओं को प्रभावित करता है तथा यह जीवों की जैविक आवश्यकता है। [[जल]] के बिना जीवन असम्भव है। यह जीवों की शारीरिक संरचना का प्रमुख घटक है क्योंकि जीवद्रव्य का 70% से 90% भाग जल है। यह जीवों के [[ताप]] को भी नियन्त्रित करता है। | ||
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मृदा जीवों के निवास के लिए आवश्यक है तथा इसके अभाव में पौधों का विकास असम्भव है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यह प्राणियों को प्रभावित करती है। मृदा में पौधों के विकास के लिए आवश्यक तत्व- [[नाइट्रोजन]], [[कार्बन]], [[सोडियम]], [[पोटेशियम]], [[कैल्शियम]], [[मैग्नीशियम]] आदि | मृदा जीवों के निवास के लिए आवश्यक है तथा इसके अभाव में पौधों का विकास असम्भव है। [[प्रत्यक्ष]] या अप्रत्यक्ष रूप से यह प्राणियों को प्रभावित करती है। मृदा में पौधों के विकास के लिए आवश्यक तत्व- [[नाइट्रोजन]], [[कार्बन]], [[सोडियम]], [[पोटेशियम]], [[कैल्शियम]], [[मैग्नीशियम]] आदि विद्यमान होते हैं, जो पौधों के विकास एवं वृद्धि में सहायक होते हैं। मृदा की अम्लीयता एवं क्षारीयता भी पौधों को प्रभावित करती है। | ||
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Latest revision as of 12:59, 14 May 2013
अजैविक कारक को 2 भागों में विभाजित करा गया है: भौतिक कारक और रासायनिक कारक।
भौतिक कारक
भौतिक कारक वे कारक हैं जो अपने भौतिक गुणों द्वारा जीवों को प्रभावित करते हैं। इसके दो प्रकार हैं।
- ताप कारक
- प्रकाश कारक
ताप कारक
वस्तु की गर्मी को उसका ताप कहते हैं। इस प्रकार जो वस्तु जितनी अधिक गर्म होगी उसका ताप उतना ही अधिक होगा। पृथ्वी के दो तिहाई भाग में जल तथा एक तिहाई भाग में भूमि है। सूर्य की किरणों से पृथ्वी को ऊष्मा मिलती है जिससे पृथ्वी का जल भाग धीरे-धीरे तथा स्थल भाग शीघ्रता से गर्म होता है। रात्रि में जब जल और स्थल दोनों ठंडे हो जाते हैं तो विकिरण द्वारा ऊष्मा पुनः वातावरण में लौट जाती है। प्रत्येक समय तापमान समान नहीं रहता। ताप जीव-जंतुओं और वनस्पतिओं दोनों को प्रभावित करता है। ताप को सहन करने की क्षमता सभी जीवों में समान नहीं होती। अधिकतर जीवों में 0° सेल्सियस से कम तथा 50° सेल्सियस से अधिक ताप सहन करने की क्षमता नहीं होती। यदि तापमान 50° से ऊपर हो जाए तो जीवों की अनेक जातियां विलुप्त हो जाएंगी।
प्रकाश कारक
सूर्य की विकिरण ऊर्जा का वह भाग जो दृश्य स्पेक्ट्रम का निर्माण करता है, प्रकाश कहलाता है। पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनाते हैं। इसके लिए उन्हें ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो उन्हें सूर्य के प्रकाश से विकिरण के रूप में प्राप्त होती है तथा भोजन के रूप में पौधों संग्रहीत हो जाती है। इस ऊर्जा पर जीव निर्भर रहते हैं। इस प्रकार प्रकाश के रूप में प्राप्त ऊर्जा पर समस्त जीव आश्रित हैं। प्रकाश के अभाव में पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
प्रकाश जीवों के विकास, वृद्धि एवं रंग को प्रभावित करता है। प्रकाश की कम या अधिक मात्रा के आधार पर ठण्डे प्रदेश के लोग गोरे तथा गर्म प्रदेश के लोग काले होते हैं। यह जीवों की जनन क्षमता को भी प्रभावित करता है। प्रकाश ही पत्तियों के पर्णरन्ध्रों के खुलने एवं बंद होने की क्रिया को नियंत्रित करता है। साधारणतया पर्णरन्ध्र सूर्योदय के समय खुलते तथा सूर्यास्त के समय बंद हो जाते हैं। यह पौधों की पर्याप्त एवं अपेक्षित वृद्धि के साथ उन्हें मजबूती प्रदान करता है। इसी कारण पर्याप्त प्रकाश में उगने वाले पौधों के तने छोटे, मोटे और मजबूत होते हैं जबकि अंधेरे में उगने वाले पौधों के तने दुर्बल, कमज़ोर एव क्षीण होते हैं। प्रकाश की उपस्थिति में पुष्पों एवं फलों की सामान्य वृद्धि होती है। यही कारण है कि जब वृक्षों तथा अनाज के पौधों में फूल आ रहे हों, उस समय प्रकाश का होना आवश्यक है।
रासायनिक कारक
ये वे कारक हैं जो अपने रासायनिक गुणों के द्वारा पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं
- जल कारक
- मृदा कारक
जल कारक
जल जीव मण्डल के जीवों की सभी जैविक क्रियाओं को प्रभावित करता है तथा यह जीवों की जैविक आवश्यकता है। जल के बिना जीवन असम्भव है। यह जीवों की शारीरिक संरचना का प्रमुख घटक है क्योंकि जीवद्रव्य का 70% से 90% भाग जल है। यह जीवों के ताप को भी नियन्त्रित करता है।
मृदा कारक
मृदा जीवों के निवास के लिए आवश्यक है तथा इसके अभाव में पौधों का विकास असम्भव है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यह प्राणियों को प्रभावित करती है। मृदा में पौधों के विकास के लिए आवश्यक तत्व- नाइट्रोजन, कार्बन, सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि विद्यमान होते हैं, जो पौधों के विकास एवं वृद्धि में सहायक होते हैं। मृदा की अम्लीयता एवं क्षारीयता भी पौधों को प्रभावित करती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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