बल्लालेश्वर: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
रिंकू बघेल (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 19: | Line 19: | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{हिन्दू तीर्थ}}{{महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल}} | {{हिन्दू तीर्थ}}{{महाराष्ट्र_के_धार्मिक_स्थल}}{{महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल}} | ||
[[Category:महाराष्ट्र]][[Category:हिन्दू तीर्थ]][[Category:महाराष्ट्र के धार्मिक स्थल]][[Category:हिन्दू धार्मिक स्थल]][[Category:महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]] | [[Category:महाराष्ट्र]][[Category:हिन्दू तीर्थ]][[Category:महाराष्ट्र के धार्मिक स्थल]][[Category:हिन्दू धार्मिक स्थल]][[Category:महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 11:40, 22 November 2016
thumb|250px|बल्लालेश्वर गणेश की प्रतिमा बल्लालेश्वर रायगढ़ ज़िला, महाराष्ट्र के पाली गाँव में स्थित भगवान गणेश के 'अष्टविनायक' शक्ति पीठों में से एक है। ये एकमात्र ऐसे गणपति हैं, जो धोती-कुर्ता जैसे वस्त्र धारण किये हुए हैं, क्योंकि उन्होंने अपने भक्त बल्लाल को ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिए थे। इस अष्टविनायक की महिमा का बखान 'मुद्गल पुराण' में भी किया गया है। ऐसी मान्यता है कि बल्लाल नाम के एक व्यक्ति की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान गणेश उसी मूर्ति में विराजमान हो गए, जिसकी पूजा बल्लाल किया करता था। अष्टविनायकों में बल्लालेश्वर ही भगवान गणेश का वह रूप है, जो भक्त के नाम से जाना जाता है।[1]
स्थिति
बल्लालेश्वर महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ ज़िले की करजत तहसील में सुधागढ़ तालुका के ग्राम पाली में स्थित है। पाली की करजत से दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। यह स्थान सरसगढ क़िले और अम्बा नदी के मध्य स्थित है। यह माना जाता है कि बल्लाल नाम के भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्री गणेश उसी पाषाण में विराजित हो गए, जिसकी पूजा बल्लाल कर रहा था। पुराणों में लिखा है कि भगवान श्री बल्लालेश्वर गजमुख हैं, भक्तों के रक्षक हैं। वेदों में भी इनकी महिमा गाई गई है।
कथा
एक कथानुसार प्राचीन समय में पाली ग्राम में कल्याण सेठ और उसकी पत्नी इन्दुवती रहते थे। उनका पुत्र बल्लाल गणेश का परम भक्त था। उसके पिता बल्लाल की गणेश भक्ति से अप्रसन्न रहते थे, क्योंकि उनकी इच्छा थी कि पुत्र भी पैतृक व्यापार संभाले। किंतु बालक बल्लाल गणेश भक्ति में लगा रहता और अपने मित्रों को भी ऐसा करने को प्रेरित करता था। इससे मित्रों के माता-पिता ने यह माना कि बल्लाल भक्ति के नाम पर उनके पुत्रों को बहकाता है। उन लोगों ने इसकी शिकायत बल्लाल के पिता से की। तब पिता क्रोधित होकर बल्लाल को ढूँढने निकले। पिता ने पुत्र को जंगल में गणेश भक्ति करते हुए पाया। आवेश में आकर बल्लाल के पिता ने बल्लाल की पूजा भंग कर दी। उन्होंने गणेश की प्रतिमा मानकर पूजा कर रहे पाषाण को उठाकर फेंक दिया और बल्लाल की पिटाई करने के बाद उसे एक पेड़ से बांधकर जंगल में छोड़ कर चले गए। किंतु दर्द से दु:खी होने पर भी बल्लाल गणेश का नाम लेता रहा। तब भगवान गणेश प्रसन्न होकर वहाँ ब्राह्मण के वेश में आए और बल्लाल के समक्ष प्रकट होकर उससे वर माँगने को कहा। तब बल्लाल ने भगवान गणेश से इसी क्षेत्र में वास करने को कहा। तब भगवान ने बल्लाल की प्रार्थना स्वीकार की और एक पाषाण के रूप में वहीं विराजित हो गए। माना जाता है कि बल्लाल के पिता ने जिस पाषाण को उठाकर फेंक दिया था, उसकी एक मंदिर में स्थापना की गई, जो ढुण्ढी विनायक के नाम से प्रसिद्ध है। यह भी माना जाता है कि त्रेतायुग में यह स्थान 'दण्डकारण्य' का भाग था। जहाँ भगवान श्रीराम को आदिशक्ति जगदम्बा ने दर्शन दिए थे। यहीं से कुछ दूरी पर वह स्थान है, जिसके लिए माना जाता है कि सीता का हरण कर ले जाते समय रावण और जटायु के बीच युद्ध हुआ था।[2]
मंदिर की संरचना
बल्लालेश्वर का मूल मंदिर काष्ठ का बना हुआ था। किंतु इसके जीर्ण-शीर्ण हो जाने के बाद इसका पुनर्निमाण किया गया। अब यह मंदिर पाषाण से बनाया गया है। मंदिर के पास ही दो सरोवर बने हैं, जिसमें से एक सरोवर का जल भगवान गणेश की पूजा में अर्पित किया जाता है। पाषाण से बने इस मंदिर की संरचना देवनागरी लिपि के 'श्री' अक्षर की भांति है। मंदिर पूर्वाभिमुख है। हिन्दू पंचांग के अनुसार जब सूर्य दक्षिणायन होता है, तब सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें भगवान श्री बल्लालेश्वर पर पड़ती हैं। मंदिर में अंदर और बाहर दो मण्डप हैं। बाहरी मण्डप की ऊँचाई 12 फ़ीट है। इसमें 'मूषक' यानि श्री गणेश के वाहन चूहे की प्रतिमा है, जो पंजों में मोदक लेकर विराजित है। अंदर का मण्डप या गर्भगृह लगभग 15 फ़ीट ऊँचा है और यह अधिक बड़ा है। यहीं पर भगवान बल्लालेश्वर की प्रतिमा विराजित है।
प्रतिमा
बल्लालेश्वर गणेश की मूर्ति एक पाषाण के सिंहासन पर विराजित है। यह मूर्ति स्वयंभू होकर पूर्वाभिमुख होकर लगभग 3 फ़ीट ऊँची है। श्री गणेश की सूंड बांई ओर मुड़ी हुई है। भगवान के नेत्रों और नाभि में चमचमाता हीरा जड़ा हुआ है। गणेश के दोनों ओर चंवर लहाराती रिद्धी और सिद्धी की प्रतिमाएँ हैं। यहाँ श्री बल्लालेश्वर गणेश की प्रतिमा ब्राह्मण की पोशाक में विराजित है। इसके पीछे ऐसा माना जाता है कि भक्त बल्लाल को भगवान श्री गणेश ने ब्राह्मण के वेश में ही दर्शन दिया था। मुख्य मंदिर के पीछे की ओर ढुण्डी विनायक का मंदिर है। इस मंदिर की प्रतिमा को भी स्वयंभू माना जाता है। यह मूर्ति पश्चिमाभिमुख है। श्रद्धालू श्री बल्लालेश्वर मंदिर के दर्शन से पहले ढुण्ढी विनायक की पूजा करते हैं।[2]
उत्सव
श्री बल्लालेश्वर गणेश मंदिर में भाद्रपद और माघ मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पंचमी के मध्य गणेश उत्सव धूमधाम से मनाए जाते हैं। इस दौरान यहाँ पर महापूजा और महाभोग का आयोजन होता है। भगवान गणेश की प्रतिमा को पालकी में बैठाकर नगर में भ्रमण कराया जाता है। इसके साथ ही आरती और पूजा आदि भी की जाती है।
कैसे पहुँचें
यहाँ तक पहुँचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डे पुणे और मुंबई है। बल्लालेश्वर जाने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं- मुंबई, अहमदनगर और पुणे। रेलमार्ग से करजत आने के बाद वहाँ से बस द्वारा पाली आ सकते हैं। मुबंई से पनवेल और खोपोली होते हुए पाली की दूरी 124 किलोमीटर है। इसी प्रकार लोनावला और खोपोली होते हुए पुणे से पाली की सड़क मार्ग की दूरी लगभग 111 किलोमीटर है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री अष्टविनायक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2013।
- ↑ 2.0 2.1 अष्टविनायक श्री बल्लालेश्वर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख