विमलनाथ: Difference between revisions
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*विमलनाथ जी को कम्पिलाजी में माघ शुक्ल पक्ष की [[चतुर्थी]] को दीक्षा की प्राप्ति हुई थी। | *विमलनाथ जी को कम्पिलाजी में माघ शुक्ल पक्ष की [[चतुर्थी]] को दीक्षा की प्राप्ति हुई थी। | ||
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Latest revision as of 07:30, 7 November 2017
विमलनाथ को जैन धर्म के तेरहवें तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। भगवान विमलनाथ का जन्म कम्पिला में इक्ष्वाकु वंश के राजा कृतवर्म की पत्नी माता श्यामा देवी के गर्भ से माघ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में हुआ था।
- विमलनाथ के शरीर का रंग सुवर्ण और चिह्न शूकर था।
- इनके यक्ष का नाम षण्मुख और यक्षिणी का नाम विदिता देवी था।
- जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार इनके कुल गणधरों की संख्या 57 थी, जिनमें मंदर स्वामी इनके प्रथम गणधर थे
- विमलनाथ जी को कम्पिलाजी में माघ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दीक्षा की प्राप्ति हुई थी।
- दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् दो महीने तक कठोर तप करने के बाद कम्पिलाजी में ही 'जम्बू' वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई।
- आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को सम्मेद शिखर पर विमलनाथ जी को निर्वाण प्राप्त हुआ।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री विमलनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।
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