माण्डू: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
शिल्पी गोयल (talk | contribs) ('{{tocright}} मांडू का प्राचीन नाम मंडप दुर्ग या मांडवगढ़ कह...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ") |
||
(29 intermediate revisions by 10 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
[[चित्र:Jahaz-Mahal-Mandu.jpg|thumb|250px|[[जहाज़ महल]], माण्डू]] | |||
'''माण्डू''' का प्राचीन नाम मण्डप दुर्ग या माण्डवगढ़ है। मंडप नाम से इस नगर का उल्लेख जैन ग्रंथ तीर्थमाला चैत्यवंदन में किया गया है-- | |||
<blockquote>'कोडीनारक मंत्रि दाहड़ पुरे श्री मंडपे चार्बुदे'</blockquote> | |||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
जनश्रुति है कि यह स्थान [[रामायण]] तथा [[महाभारत]] के समय का है किन्तु इस नगर का नियमित इतिहास [[ | जनश्रुति है कि यह स्थान [[रामायण]] तथा [[महाभारत]] के समय का है किन्तु इस नगर का नियमित इतिहास [[मध्यकालीन भारत|मध्य काल]] ही है। [[कन्नौज]] के प्रतिहारों नरेशों के समय में [[परमार वंश|परमार वंशीय]] श्रीसरमन [[मालवा]] को राज्यपाल नियुक्त किया गया था। उस समय भी मांडपगढ़ काफ़ी शोभा सम्पन्न नगर था। [[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहारों]] के पतन के पश्चात् परमार स्वतंत्र हो गए और उनकी वंश परम्परा में मुंज, [[भोज]] आदि प्रसिद्ध नरेश हुए। | ||
12वीं, 13वीं शतियों में शासन की डोर जैन मंत्रियों के हाथ में थी और मांडवगढ ऐश्वर्य की चरम सीमा तक पहुँचा हुआ था। कहा जाता है कि उस समय यहाँ की जनसंख्या सात लाख थी और [[हिन्दू]] मन्दिरों के अतिरिक्त 300 [[जैन]] मन्दिर भी यहाँ की शोभा बढ़ाते थे। | 12वीं, 13वीं शतियों में शासन की डोर जैन मंत्रियों के हाथ में थी और मांडवगढ ऐश्वर्य की चरम सीमा तक पहुँचा हुआ था। कहा जाता है कि उस समय यहाँ की जनसंख्या सात लाख थी और [[हिन्दू]] मन्दिरों के अतिरिक्त 300 [[जैन]] मन्दिर भी यहाँ की शोभा बढ़ाते थे। | ||
==आक्रमण== | ==आक्रमण== | ||
[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के | [[चित्र:Hoshang-Shah-Tomb.jpg|thumb|250px|होशंगशाह का मक़बरा, माण्डू]] | ||
*1401 ई. में | [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के माण्डू पर आक्रमण के पश्चात् यहाँ से हिन्दू राज्य सत्ता ने विदा ली। यह आक्रमण अलाउद्दीन के सेनापति आइरन-उलमुल्क ने किया था। इसने यहाँ पर क़त्ले-आम भी करवाया था। | ||
*1554 ई. में | *1401 ई. में माण्डू (मंडू) [[दिल्ली]] के तुग़लकों के आधिपत्य से स्वतंत्र हो गया और मालवा के शासक [[दिलावर ख़ाँ ग़ोरी]] ने माण्डू के [[पठान]] शासकों की वंश परम्परा प्रारम्भ की। इन सुल्तानों ने माण्डू में जो सुन्दर भवन तथा प्रासाद बनवाए थे, उनके अवशेष माण्डू को आज भी आकर्षण का केन्द्र बनाए हुए हैं। दिलावर ख़ाँ का पुत्र होशंगशाह 1405 ई. में अपनी राजधानी [[धार]] से उठाकर माण्डू में ले आया। माण्डू के क़िले का निर्माता भी यही था। इस राज्य वंश के वैभव-विलास की चरम सीमा 15वीं शती के अन्त में ग़यासुद्दीन के शासन काल में दिखाई पड़ी। ग़यासुद्दीन ने विलासता का वह दौर शुरू किया जिसकी चर्चा तत्कालीन [[भारत]] में चारों ओर थी। कहा जाता है कि उसके हरम में 15 सहस्र सुन्दरियाँ थीं। | ||
*1531 ई. में [[गुजरात]] के सुल्तान बहादुरशाह ने माण्डू पर हमला किया और 1534 ई. में [[हुमायूँ]] ने यहाँ पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। | |||
*1554 ई. में माण्डू बाज़बहादुर के शासनाधीन हुआ। किन्तु 1570 ई. में [[अकबर]] के सेनापति आदमखाँ और आसफ़ख़ाँ ने बाज़बहादुर को परास्त कर माण्डू पर अधिकार कर लिया। कहा जाता है कि [[बाज़बहादुर]] के इस युद्ध में मारे जाने पर उसकी प्रेयसी रूपमती ने विषपान करके अपने जीवन का अन्त कर लिया। माण्डू की लूट में आदमख़ाँ ने बहुत सी धनराशि अपने अधिकार में कर ली, और उसने अकबर के कार्यवाहक वज़ीर को छुरा घोंप दिया। जिससे क्रुद्ध होकर अकबर ने आदमख़ाँ को [[आगरा]] के क़िले की दीवार से दो बार नीचे फ़िकवाकर मरवा दिया। यह अकबर का कोका भाई (धात्री पुत्र) था। | |||
==बाज़बहादुर और रूपमती== | ==बाज़बहादुर और रूपमती== | ||
बाज़बहादुर और रूपमती की प्रेमकथाएँ आज भी मालवा के लोकगीतों में गूंजती हैं। बाज़बहादुर संगीत प्रेमी भी था। कुछ लोगों का मत है कि | [[चित्र:Hindola-Mahal-Mandu.jpg|thumb|250px|[[हिंडोला महल मांडू]]]] | ||
[[बाज़बहादुर]] और रूपमती की प्रेमकथाएँ आज भी मालवा के लोकगीतों में गूंजती हैं। बाज़बहादुर [[संगीत]] प्रेमी भी था। कुछ लोगों का मत है कि [[जहाज़ महल]] और [[हिंडोला महल मांडू|हिंडोला महल]] उसने ही बनवाए थे। माण्डू के सौंदर्य ने अकबर तथा [[जहाँगीर]] दोनों ही को आकृष्ट किया था। यहाँ के एक [[शिलालेख]] से सूचित होता है कि अकबर एक बार माण्डू आकर नीलकंठ नामक भवन में ठहरा था। जहाँगीर की आत्मकथा तुज़के जहाँगीर में वर्णन है कि जहाँगीर को माण्डू के प्राकृतिक दृश्यों से बड़ा प्रेम था और वह यहाँ प्रायः महीनों शिविर डाल कर ठहरा करता था। [[मुग़ल]] साम्राज्य के पतन के पश्चात् [[पेशवा|पेशवाओं]] का यहाँ कुछ दिनों तक अधिकार रहा और तत्पश्चात् यह स्थान [[इंदौर]] की मराठा रियासत में शामिल हो गया। | |||
==स्मारक== | ==स्मारक== | ||
माण्डू के स्मारक, जहाज़ महल के अतिरिक्त ये भी हैं—दिलावर ख़ाँ की मस्जिद, नाहर झरोखा, हाथी पोल दरवाज़ा ([[मुग़ल काल|मुग़ल कालीन]]), होशंगशाह तथा महमूद ख़िलज़ी के मक़बरे रेवाकुंड [[बाज़बहादुर]] और रूपमती के महलों के पास स्थित हैं। यहाँ से रेवा या नर्मदा दिखलाई पड़ती है। कहा जाता है कि रूपमती प्रतिदिन अपने महल से नर्मदा का पवित्र दर्शन किया करती थी। | |||
[[शिवाजी]] के राजकवि [[भूषण]] ने पौरचवंशीय नरेश अमरसिंह के पुत्र अनिरुद्धसिंह की प्रशंसा में कहे गए एक छन्द में<ref>भूषण ग्रंथावली फुटकर 45</ref> माण्डू को इनकी राजधानी बताया है--<blockquote>'सरद के घन की घटान सी घमंडती हैं मंडू तें उमंडती हैं मंडती महीतेलें'</blockquote>किसी-किसी प्रति में इस स्थान पर मंडू के बजाए मेंडू भी पाठ है। मेंडू को कुछ लोग [[उत्तर प्रदेश]] में स्थित मानते हैं क्योंकि पौरच [[राजपूत]] [[अलीगढ़]] के परिवर्ती प्रदेश से सम्बद्ध थे। | |||
[[ | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
==वीथिका== | |||
<gallery> | |||
चित्र:Jahaz-Mahal-Mandu-1.jpg|[[जहाज़ महल]], माण्डू | |||
चित्र:Jami-Masjid-Mandu.jpg|जामी मस्जिद, माण्डू | |||
चित्र:Mandu.jpg|माण्डू | |||
चित्र:Rewa-Kund.jpg|रीवा कुंड, माण्डू | |||
चित्र:Baz-Bahadur-Mahal.jpg|बाज बहादुर महल | |||
चित्र:Mandu-13.jpg|माण्डू | |||
चित्र:Mandu-11.jpg|जामी मस्जिद, माण्डू | |||
चित्र:Mandu-9.jpg|जामी मस्जिद, माण्डू | |||
</gallery> | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | |||
{{मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल}} | |||
[[Category:इतिहास_कोश]] | [[Category:इतिहास_कोश]] | ||
[[Category:मध्य_प्रदेश]][[Category:मध्य_प्रदेश_के_पर्यटन_स्थल]] | [[Category:मध्य_प्रदेश]][[Category:मध्य_प्रदेश_के_पर्यटन_स्थल]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
Latest revision as of 07:34, 7 November 2017
[[चित्र:Jahaz-Mahal-Mandu.jpg|thumb|250px|जहाज़ महल, माण्डू]] माण्डू का प्राचीन नाम मण्डप दुर्ग या माण्डवगढ़ है। मंडप नाम से इस नगर का उल्लेख जैन ग्रंथ तीर्थमाला चैत्यवंदन में किया गया है--
'कोडीनारक मंत्रि दाहड़ पुरे श्री मंडपे चार्बुदे'
इतिहास
जनश्रुति है कि यह स्थान रामायण तथा महाभारत के समय का है किन्तु इस नगर का नियमित इतिहास मध्य काल ही है। कन्नौज के प्रतिहारों नरेशों के समय में परमार वंशीय श्रीसरमन मालवा को राज्यपाल नियुक्त किया गया था। उस समय भी मांडपगढ़ काफ़ी शोभा सम्पन्न नगर था। प्रतिहारों के पतन के पश्चात् परमार स्वतंत्र हो गए और उनकी वंश परम्परा में मुंज, भोज आदि प्रसिद्ध नरेश हुए।
12वीं, 13वीं शतियों में शासन की डोर जैन मंत्रियों के हाथ में थी और मांडवगढ ऐश्वर्य की चरम सीमा तक पहुँचा हुआ था। कहा जाता है कि उस समय यहाँ की जनसंख्या सात लाख थी और हिन्दू मन्दिरों के अतिरिक्त 300 जैन मन्दिर भी यहाँ की शोभा बढ़ाते थे।
आक्रमण
thumb|250px|होशंगशाह का मक़बरा, माण्डू अलाउद्दीन ख़िलजी के माण्डू पर आक्रमण के पश्चात् यहाँ से हिन्दू राज्य सत्ता ने विदा ली। यह आक्रमण अलाउद्दीन के सेनापति आइरन-उलमुल्क ने किया था। इसने यहाँ पर क़त्ले-आम भी करवाया था।
- 1401 ई. में माण्डू (मंडू) दिल्ली के तुग़लकों के आधिपत्य से स्वतंत्र हो गया और मालवा के शासक दिलावर ख़ाँ ग़ोरी ने माण्डू के पठान शासकों की वंश परम्परा प्रारम्भ की। इन सुल्तानों ने माण्डू में जो सुन्दर भवन तथा प्रासाद बनवाए थे, उनके अवशेष माण्डू को आज भी आकर्षण का केन्द्र बनाए हुए हैं। दिलावर ख़ाँ का पुत्र होशंगशाह 1405 ई. में अपनी राजधानी धार से उठाकर माण्डू में ले आया। माण्डू के क़िले का निर्माता भी यही था। इस राज्य वंश के वैभव-विलास की चरम सीमा 15वीं शती के अन्त में ग़यासुद्दीन के शासन काल में दिखाई पड़ी। ग़यासुद्दीन ने विलासता का वह दौर शुरू किया जिसकी चर्चा तत्कालीन भारत में चारों ओर थी। कहा जाता है कि उसके हरम में 15 सहस्र सुन्दरियाँ थीं।
- 1531 ई. में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने माण्डू पर हमला किया और 1534 ई. में हुमायूँ ने यहाँ पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।
- 1554 ई. में माण्डू बाज़बहादुर के शासनाधीन हुआ। किन्तु 1570 ई. में अकबर के सेनापति आदमखाँ और आसफ़ख़ाँ ने बाज़बहादुर को परास्त कर माण्डू पर अधिकार कर लिया। कहा जाता है कि बाज़बहादुर के इस युद्ध में मारे जाने पर उसकी प्रेयसी रूपमती ने विषपान करके अपने जीवन का अन्त कर लिया। माण्डू की लूट में आदमख़ाँ ने बहुत सी धनराशि अपने अधिकार में कर ली, और उसने अकबर के कार्यवाहक वज़ीर को छुरा घोंप दिया। जिससे क्रुद्ध होकर अकबर ने आदमख़ाँ को आगरा के क़िले की दीवार से दो बार नीचे फ़िकवाकर मरवा दिया। यह अकबर का कोका भाई (धात्री पुत्र) था।
बाज़बहादुर और रूपमती
[[चित्र:Hindola-Mahal-Mandu.jpg|thumb|250px|हिंडोला महल मांडू]] बाज़बहादुर और रूपमती की प्रेमकथाएँ आज भी मालवा के लोकगीतों में गूंजती हैं। बाज़बहादुर संगीत प्रेमी भी था। कुछ लोगों का मत है कि जहाज़ महल और हिंडोला महल उसने ही बनवाए थे। माण्डू के सौंदर्य ने अकबर तथा जहाँगीर दोनों ही को आकृष्ट किया था। यहाँ के एक शिलालेख से सूचित होता है कि अकबर एक बार माण्डू आकर नीलकंठ नामक भवन में ठहरा था। जहाँगीर की आत्मकथा तुज़के जहाँगीर में वर्णन है कि जहाँगीर को माण्डू के प्राकृतिक दृश्यों से बड़ा प्रेम था और वह यहाँ प्रायः महीनों शिविर डाल कर ठहरा करता था। मुग़ल साम्राज्य के पतन के पश्चात् पेशवाओं का यहाँ कुछ दिनों तक अधिकार रहा और तत्पश्चात् यह स्थान इंदौर की मराठा रियासत में शामिल हो गया।
स्मारक
माण्डू के स्मारक, जहाज़ महल के अतिरिक्त ये भी हैं—दिलावर ख़ाँ की मस्जिद, नाहर झरोखा, हाथी पोल दरवाज़ा (मुग़ल कालीन), होशंगशाह तथा महमूद ख़िलज़ी के मक़बरे रेवाकुंड बाज़बहादुर और रूपमती के महलों के पास स्थित हैं। यहाँ से रेवा या नर्मदा दिखलाई पड़ती है। कहा जाता है कि रूपमती प्रतिदिन अपने महल से नर्मदा का पवित्र दर्शन किया करती थी।
शिवाजी के राजकवि भूषण ने पौरचवंशीय नरेश अमरसिंह के पुत्र अनिरुद्धसिंह की प्रशंसा में कहे गए एक छन्द में[1] माण्डू को इनकी राजधानी बताया है--
'सरद के घन की घटान सी घमंडती हैं मंडू तें उमंडती हैं मंडती महीतेलें'
किसी-किसी प्रति में इस स्थान पर मंडू के बजाए मेंडू भी पाठ है। मेंडू को कुछ लोग उत्तर प्रदेश में स्थित मानते हैं क्योंकि पौरच राजपूत अलीगढ़ के परिवर्ती प्रदेश से सम्बद्ध थे।
|
|
|
|
|
वीथिका
-
जहाज़ महल, माण्डू
-
जामी मस्जिद, माण्डू
-
माण्डू
-
रीवा कुंड, माण्डू
-
बाज बहादुर महल
-
माण्डू
-
जामी मस्जिद, माण्डू
-
जामी मस्जिद, माण्डू
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भूषण ग्रंथावली फुटकर 45
संबंधित लेख