दिनशा वाचा का राजनीतिक जीवन: Difference between revisions
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दिनशा वाचा की, आर्थिक विशेषज्ञ के रूप में धाक जम गई और भारतीय नेताओं में उन्हें विशिष्ट एवं प्रमुख स्थान प्राप्त हुआ। सन [[1901]] में दिनशा को [[मुंबई]] म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के [[अध्यक्ष]] चुना गया और उसी वर्ष वे [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष बनाए गए। वाचा ने अपने [[कांग्रेस]] के अध्यक्षीय भाषण में भारत में अकाल पड़ने के कारणों का बड़ा मार्मिक विवेचन किया। बंबई कार्पोरेशन के प्रतिनिधि के रूप में वाचा मुंबई प्रदेशीय कौंसिल के सदस्य चने गए। कुछ समय बाद वे देश की तत्कालीन व्यवस्थापिका सभा, इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए। वहाँ भी उन्होंने देश की वित्तीय स्थिति सुधारे जाने के पक्ष में अपना आंदोलन जारी रखा। | == कांग्रेस सदस्य व महामंत्री == | ||
दिनशा वाचा ने अपने [[कांग्रेस]] के अध्यक्षीय भाषण में भारत में अकाल पड़ने के कारणों का बड़ा मार्मिक विवेचन किया। बंबई कार्पोरेशन के प्रतिनिधि के रूप में वाचा मुंबई प्रदेशीय कौंसिल के सदस्य चने गए। कुछ समय बाद वे देश की तत्कालीन व्यवस्थापिका सभा, इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए। वहाँ भी उन्होंने देश की वित्तीय स्थिति सुधारे जाने के पक्ष में अपना आंदोलन जारी रखा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख सदस्य वे उसकी स्थापना के समय से ही रहे ओर 13 वर्ष तक उसके महामंत्री भी रहे। यद्यपि सन [[1920]] में वे [[कांग्रेस]] छोड़कर लिबरल (उदार) दल के संस्थापकों में सम्मिलित हुए परंतु 25 वर्ष से अधिक काल तक वे कांग्रेस के दहकते अग्निपुंज के रूप में विख्यात रहे। | |||
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख सदस्य वे उसकी स्थापना के समय से ही रहे ओर 13 वर्ष तक उसके महामंत्री भी रहे। यद्यपि सन [[1920]] में वे [[कांग्रेस]] छोड़कर लिबरल (उदार) दल के संस्थापकों में सम्मिलित हुए परंतु 25 वर्ष से अधिक काल तक वे कांग्रेस के दहकते अग्निपुंज के रूप में विख्यात रहे। | |||
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दिनशा वाचा का राजनीतिक जीवन
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पूरा नाम | दिनशा इडलजी वाचा |
अन्य नाम | दिनशा वाचा |
जन्म | 1844 |
मृत्यु | 1936 |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
संबंधित लेख | दादाभाई नौरोजी, फ़िरोजशाह मेहता, मुंबई, सुरेंद्रनाथ बनर्जी |
अन्य जानकारी | दिनशा इडलजी वाचा भारत में ब्रिटिश शासन के विशेषत: ब्रिटेन द्वारा भारत के आर्थिक शोषण के अत्यंत कटु आलोचक थे। वे इस विषय के विभिन्न पहलुओं पर लेख लिखकर और भाषण देकर लोगों का ध्यान आकर्षित करते थे। |
अद्यतन | 04:42, 4 जून 2017 (IST) |
दिनशा वाचा की, आर्थिक विशेषज्ञ के रूप में धाक जम गई और भारतीय नेताओं में उन्हें विशिष्ट एवं प्रमुख स्थान प्राप्त हुआ। सन 1901 में दिनशा को मुंबई म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के अध्यक्ष चुना गया और उसी वर्ष वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष बनाए गए।
कांग्रेस सदस्य व महामंत्री
दिनशा वाचा ने अपने कांग्रेस के अध्यक्षीय भाषण में भारत में अकाल पड़ने के कारणों का बड़ा मार्मिक विवेचन किया। बंबई कार्पोरेशन के प्रतिनिधि के रूप में वाचा मुंबई प्रदेशीय कौंसिल के सदस्य चने गए। कुछ समय बाद वे देश की तत्कालीन व्यवस्थापिका सभा, इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए। वहाँ भी उन्होंने देश की वित्तीय स्थिति सुधारे जाने के पक्ष में अपना आंदोलन जारी रखा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख सदस्य वे उसकी स्थापना के समय से ही रहे ओर 13 वर्ष तक उसके महामंत्री भी रहे। यद्यपि सन 1920 में वे कांग्रेस छोड़कर लिबरल (उदार) दल के संस्थापकों में सम्मिलित हुए परंतु 25 वर्ष से अधिक काल तक वे कांग्रेस के दहकते अग्निपुंज के रूप में विख्यात रहे।
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