लीलावती -भास्कराचार्य: Difference between revisions

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भास्कराचार्य द्वारा रचित ‘‘लीलावती’’ एक सुव्यवस्थित प्रारम्भिक पाठ्यक्रम है। आचार्य ने ज्योतिषशास्त्र के प्रतिनिथि ग्रन्थ सिद्धान्तशिरोमणि की रचना शक 1071 में की थी। इस समय उनकी अवस्था 36 वर्ष की थी। इस अल्प वय में ही इस प्रकार के अदभुत ग्रन्थ रत्न को निर्मित कर भाष्कराचार्य ज्योतिष जगत में भाष्कर की तरह पूजित हुये तथा आज भी पूजित हो रहे हैं।
[[भास्कराचार्य]] (जन्म- 1114 ई. मृत्यु- 1179 ई.) प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है।  


सिद्धान्तशिरोमणि के प्रमुख चार विभाग हैं। 1- व्यक्त गणित या पाटी गणित (लीलावती) 2- अव्यक्त गणित (बीजगणित) 3- गणिताध्याय 4- गोलाध्याय। चारों विभाग ज्योतिष जगत में अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण विख्यात हैं तथा ज्योतिष के मानक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
[[भास्कराचार्य]] द्वारा एक प्रमुख ग्रन्थ की रचना की गई जिसका नाम है '''‘लीलावती’'''। कहा जाता है कि इस ग्रन्थ का नामकरण उन्होंने अपनी लाडली पुत्री '''लीलावती''' के नाम पर किया था। इस [[ग्रन्थ]] में गणित और खगोल विज्ञान सम्बन्धी विषयों पर प्रकाश डाला गया था। [[भास्कराचार्य]] द्वारा रचित ‘‘लीलावती’’ एक सुव्यवस्थित प्रारम्भिक पाठ्यक्रम है।
 
==रचनाकाल==
सिद्धान्तशिरोमणि का पिरथम भाग पाटी गणित जो लीलावती के मान से विख्यात है, आज के परिवर्तित युग में भी अपनी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता अक्षुण्ण रखे हुये है। आचार्य ने इस लघु ग्रन्थ में गहन गणित शास्तिर को अत्यन्त सरस ढंग से प्रस्तुत कर गागर में सागर की उक्ति को प्रत्यक्ष चरितार्थ किया है। इकाई आदि अंक स्थानों के परिचय से आरम्भ कर अंकपाश तक की गणित में प्रायः सभी प्रमुख एवं व्यावहारिक विषयों का सफलतापूर्वक समावेश किया गया है।<ref>{{cite web |url= http://pustak.org/index.php/books/bookdetails/8808/Leelawati|title= लीलावती|accessmonthday=15 मई |accessyear=2016 |last=भास्कराचार्य |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=हिंदी }}</ref>  
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==स्वरूप==
सिद्धान्तशिरोमणि के प्रमुख चार विभाग हैं-
#व्यक्त गणित या पाटी गणित (लीलावती)  
#अव्यक्त गणित (बीजगणित)  
#गणिताध्याय  
#गोलाध्याय।  
*चारों विभाग ज्योतिष जगत में अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण विख्यात हैं तथा ज्योतिष के मानक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
==प्रासंगिकता एवं उपयोगिता==
'सिद्धान्त शिरोमणि' का पिरथम भाग '''पाटी गणित''' जो '''लीलावती''' के मान से विख्यात है, आज के परिवर्तित [[युग]] में भी अपनी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता अक्षुण्ण रखे हुये है। आचार्य ने इस लघु [[ग्रन्थ]] में गहन गणित शास्तिर को अत्यन्त सरस ढंग से प्रस्तुत कर [[गागर में सागर भरना|गागर में सागर]] की [[कहावत लोकोक्ति मुहावरे-ग|उक्ति]] को प्रत्यक्ष चरितार्थ किया है। इकाई आदि अंक स्थानों के परिचय से आरम्भ कर अंकपाश तक की गणित में प्रायः सभी प्रमुख एवं व्यावहारिक विषयों का सफलतापूर्वक समावेश किया गया है।<ref>{{cite web |url= http://pustak.org/index.php/books/bookdetails/8808/Leelawati|title= लीलावती|accessmonthday=15 मई |accessyear=2016 |last=भास्कराचार्य |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=हिंदी }}</ref>  
==अनुवाद==
भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है। कई शताब्दी के बाद केपलर तथा [[न्यूटन]] जैसे यूरोपीय वैज्ञानिकों ने जो सिद्धान्त प्रस्तावित किए उन पर भास्कराचार्य द्वारा प्रस्तावित सिद्धान्तों की स्पष्ट छाप मालूम पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे अपने सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के पूर्व उन्होंने अवश्य ही भास्कराचार्य के सिद्धान्तों का अध्ययन किया होगा।


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Latest revision as of 11:05, 17 March 2018

लीलावती -भास्कराचार्य
लेखक भास्कराचार्य
मूल शीर्षक लीलावती
प्रकाशक चौखम्बा कृष्णदास अकादमी
प्रकाशन तिथि 2009
ISBN 9788121802660
देश भारत
पृष्ठ: 330
भाषा हिंदी
मुखपृष्ठ रचना पैपरबैक
विशेष भास्कराचार्य द्वारा रचित ‘‘लीलावती’’ एक सुव्यवस्थित गणित का एक प्राचीनतम ग्रंथ है
टिप्पणी आचार्य ने ज्योतिषशास्त्र के प्रतिनिथि ग्रन्थ सिद्धान्तशिरोमणि की रचना शक 1071 में की थी।

भास्कराचार्य (जन्म- 1114 ई. मृत्यु- 1179 ई.) प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है।

भास्कराचार्य द्वारा एक प्रमुख ग्रन्थ की रचना की गई जिसका नाम है ‘लीलावती’। कहा जाता है कि इस ग्रन्थ का नामकरण उन्होंने अपनी लाडली पुत्री लीलावती के नाम पर किया था। इस ग्रन्थ में गणित और खगोल विज्ञान सम्बन्धी विषयों पर प्रकाश डाला गया था। भास्कराचार्य द्वारा रचित ‘‘लीलावती’’ एक सुव्यवस्थित प्रारम्भिक पाठ्यक्रम है।

रचनाकाल

आचार्य ने ज्योतिषशास्त्र के प्रतिनिथि ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि की रचना शक 1071 में की थी। इस समय उनकी अवस्था 36 वर्ष की थी। इस अल्प वय में ही इस प्रकार के अदभुत ग्रन्थ रत्न को निर्मित कर भाष्कराचार्य ज्योतिष जगत में भास्कर की तरह पूजित हुये तथा आज भी पूजित हो रहे हैं।

स्वरूप

सिद्धान्तशिरोमणि के प्रमुख चार विभाग हैं-

  1. व्यक्त गणित या पाटी गणित (लीलावती)
  2. अव्यक्त गणित (बीजगणित)
  3. गणिताध्याय
  4. गोलाध्याय।
  • चारों विभाग ज्योतिष जगत में अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण विख्यात हैं तथा ज्योतिष के मानक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

प्रासंगिकता एवं उपयोगिता

'सिद्धान्त शिरोमणि' का पिरथम भाग पाटी गणित जो लीलावती के मान से विख्यात है, आज के परिवर्तित युग में भी अपनी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता अक्षुण्ण रखे हुये है। आचार्य ने इस लघु ग्रन्थ में गहन गणित शास्तिर को अत्यन्त सरस ढंग से प्रस्तुत कर गागर में सागर की उक्ति को प्रत्यक्ष चरितार्थ किया है। इकाई आदि अंक स्थानों के परिचय से आरम्भ कर अंकपाश तक की गणित में प्रायः सभी प्रमुख एवं व्यावहारिक विषयों का सफलतापूर्वक समावेश किया गया है।[1]

अनुवाद

भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है। कई शताब्दी के बाद केपलर तथा न्यूटन जैसे यूरोपीय वैज्ञानिकों ने जो सिद्धान्त प्रस्तावित किए उन पर भास्कराचार्य द्वारा प्रस्तावित सिद्धान्तों की स्पष्ट छाप मालूम पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे अपने सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के पूर्व उन्होंने अवश्य ही भास्कराचार्य के सिद्धान्तों का अध्ययन किया होगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भास्कराचार्य। लीलावती (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख