कादम्बरी -बाणभट्ट: Difference between revisions

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Latest revision as of 14:06, 17 March 2018

thumb|कादम्बरी 'कादम्बरी' बाणभट्ट की अमर कृति है। सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में लिखा गया यह उपन्यास सही मायनों में विश्व का पहला उपन्यास कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें उपन्यास में पाये जाने वाले विविध लक्षण देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी उप-कहानी का अच्छे से वर्णन और उतने ही अच्छे से उसे विकसित करने के लिए समय देना। साथ ही साथ संवादों की उपस्थिति और पात्रों की मनःस्थति का विस्तार से वर्णन, लघु से लघु सूचना का बारीकी से विश्लेषण, और काव्यात्मक पद्द का जगह जगह प्रयोग, ऐसी ही कुछ साहित्यिक विधाएं हैं जो कि इससे पहले किसी रचनाकार ने प्रयोग नहीं किये थे जैसा की बाणभट्ट ने किया था। बाणभट्ट ‘कादम्बरी’ को पूरा नहीं कर पाये थे, और उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र भूषणभट्ट ने पिता के दिए गए दिशानिर्देशों के अनुसार इसे पूरा किया था। यह उपन्यास दो भागों में विभाजित है। पूर्वभाग बाणभट्ट ने लिखा था और उत्तरभाग भूषणभट्ट का लिखा हुआ है। कुछ जगहों पर भूषणभट्ट का नाम पुलिन्दभट्ट भी कहा जाता है।[1]

संस्कृत भाषा में

यह उनकी ही नहीं समस्त संस्कृत वाङमय की अनूठी गद्य-रचना है। कादंबरी मूलतः संस्कृत भाषा में लिखी गयी थी जो कि उस समय की साहित्य और राजदरबार की भाषा हुआ करती थी। बाणभट्ट राजा हर्षवर्धन के दरबार की शोभा बढ़ाया करते थे। उन्होंने हर्षवर्धन के राज्य और उस समय का वर्णन करते हुए प्रतिष्ठित रचना ‘हर्षचरित’ भी लिखी थी। राजा हर्षवर्धन स्वयं भी संस्कृत के विद्वान हुआ करते थे और उन्होंने ‘नागनन्द’, ‘रत्नावली’ और ‘प्रियदर्शिका’ जैसी रचनाएं संस्कृत में लिखी थीं। ‘कादम्बरी’ में उपन्यास के गुण कैसे पाये जाते हैं इस की पुष्टि के लिए यहाँ पर यहाँ कहना यथेष्ट रहेगा कि भारत की दो क्षेत्रीय भाषाओं, मराठी और कन्नड़, में उपन्यास को कादम्बरी कहते हैं। इस बात के साक्ष्य हैं कि इसकी कहानी 'गुणाढ्य' द्वारा रचित 'वृहद्कथा' से प्रेरित है जो कि मूलतः पैशाची भाषा में लिखी गयी है।[1]

कथानक

‘कादम्बरी’ दो प्रेम कहानियों का मिश्रण है। इसका यह नाम कहानी की नायिका कादम्बरी के नाम पर दिया गया है। कादम्बरी को चन्द्रपीड़ और महाश्वेता को पुण्डरीक से प्रणय हुआ है और पूरी कहानी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है। यह कहानी कई जन्मों की है जिसमें एक जन्म में किये गए अच्छे-बुरे कर्मों का फल अगले जन्म में मिला है। अनेक कथानकों का वर्णन किसी पात्र के स्मरण के आधार पर किया गया है। इस प्रकार से अधिकांश भाग किसी पात्र के द्वारा सुनाया गया वर्णन है न कि रचनाकार के द्वारा किया गया प्रथमपुरुष में वर्णन। मानवीय भावों का सुन्दर चित्रण किया गया है और किसी घटना का माहौल बनाने के लिए प्राकृतिक तत्वों का सुन्दर वर्णन किया गया है।[1]

लिखने की प्रेरणा

बाण को कादम्बरी-कथा लिखने की प्रेरणा गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' से प्राप्त हुई है। पैशाची भाषा में निबद्ध 'बृहत्कथा' का संस्कृत रूपान्तर 'कथा सरित्सागर' में आई हुई राजा सुमना की कथा और कादम्बरी की कथा में बहुत कुछ समानता मिलती है। अत: बाण ने कादम्बरी की मूल घटनाओं को बृहत्कथा से लिया हो और अपनी विलक्षण काव्य प्रतिभा से बृहत्कथा के निष्प्राण घटनाचक्रों और पात्रों में सजीवता लाकर उन्हें नवीन कलेवर दिया हो। कादम्बरी में बाण की सबसे अनूठी कल्पना जो प्रेम के अलौकिक स्वरूप और रहस्य का प्रतीक है- वह है नायिका द्वारा नायक की शरीर रक्षा करते हुए पुनर्मिलन की प्रतीक्षा करना। कादम्बरी कालिदास के आशाबन्ध और जननान्तर सौहृद के आदर्श की सजीव अवतारणा है। कादम्बरी 'कथा' है। बाण ने स्वयं प्रस्तावना के अन्त में-'धिया निवद्धेयमतिद्वयी कथा' कहकर इसे 'कथा' के रूप में स्पष्ट स्वीकार किया है। तीन जन्मों से सम्बद्ध कादम्बरी की कहानी रोचक शैली में लिखी गई है।[1]

गतिविधियाँ

इस उपन्यास से सातवीं शताब्दी के काल के बारे में और उस समय की साह्त्यिक गतिविधियों के बारे में कुछ निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। यह कहा जा सकता है कि साहित्य में अलौकिक तत्त्व और घटनाएँ, जैसे देवताओं का मनुष्यों के साथ भेंट होना, बहुतायत में प्रयोग किये जाते थे। साथ ही साथ सौंदर्य रस एक महत्वपूर्ण विषय हुआ करता था। राजाओं की विलासिता और सम्पन्नता भी देखी जा सकती है। चूँकि यह उपन्यास पैशाची भाषा की एक कृति से प्रेरित है इसलिए यहाँ कहा जा सकता है कि उस समय तक पैशाची भाषा विलुप्त नहीं हुई थी लेकिन उसे प्रतिष्ठा प्राप्त साहित्यिक भाषा भी नहीं माना जाता था। राजाओं और राजपूत्रों का लम्बे अभियान पर निकलना सामान्य बात हुआ करती थी। कुल मिलाकर यदि कालिदास और बाणभट्ट जैसे संस्कृत के महान् रचनाकारों की कृतियों को पढ़ने का मन है लेकिन संस्कृत का ज्ञान नहीं है तो इस हिंदी अनुवाद को पढ़ा जा सकता है।[1] कविक्रान्त द्रष्टा होता है। उसका काव्य मानव जीवन के परम लक्ष्य की ओर संकेत करता है। काव्य आत्मा रस है। रस स्वरूप आनन्द है। आनन्द की अनुभूति ही काव्य का परम प्रयोजन है। बाणभट्ट 'कादम्बरी' के नायक और नायिका के प्रारंभिक लौकिक प्रेम को शापवश जन्मान्तर में समाप्त कर पुन: अलौकिक विशुद्ध प्रेमप्राप्ति द्वारा मानव के लिए आदर्श प्रेम का दिव्य संदेश देते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 पुस्तक समीक्षा : बाणभट्ट कृत ‘कादम्बरी’ (हिन्दी) www.yayawar.in। अभिगमन तिथि: 26 जुलाई, 2017।

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