कमला प्रसाद: Difference between revisions

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'''कमला प्रसाद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kamla Prasad'', जन्म: [[14 फ़रवरी]], [[1938]] - मृत्यु: [[25 मार्च]], [[2011]]) [[हिन्दी]] प्रमुख लेखक एवं आलोचक थे। प्रगतिशील लेखक संघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव और वसुधा पत्रिका के संपादक कमला प्रसाद ने एक ऐसे समय में जब सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक स्तर पर हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ लेखकीय प्रतिरोध की अत्यंत और प्रखर जरूरत थी, उन्होंने पूरे देश में घूम-घूम कर लेखकों को चेताया, सजग और सचेत किया।
'''कमला प्रसाद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kamla Prasad'', जन्म: [[14 फ़रवरी]], [[1938]]; मृत्यु: [[25 मार्च]], [[2011]]) [[हिन्दी]] प्रमुख लेखक एवं आलोचक थे। प्रगतिशील लेखक संघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव और वसुधा पत्रिका के संपादक कमला प्रसाद ने एक ऐसे समय में जब सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक स्तर पर हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ लेखकीय प्रतिरोध की अत्यंत और प्रखर ज़रूरत थी, उन्होंने पूरे देश में घूम-घूम कर लेखकों को चेताया, सजग और सचेत किया।
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
14 फ़रवरी, 1938 को रैगाँव, [[सतना ज़िला|सतना]] ([[मध्य प्रदेश]]) में जन्मे कमला प्रसाद ने 70 के दशक में [[ज्ञानरंजन]] के साथ मिलकर ‘पहल’ का सम्पादन किया, फिर 90 के दशक से वे ‘प्रगतिशील वसुधा’ के मृत्युपर्यंत सम्पादक रहे। दोनों ही पत्रिकाओं के कई अनमोल अंकों का श्रेय उन्हें जाता है। कमला प्रसाद जी ने पिछली सदी के उस अंतिम दशक में भी प्रलेस का सजग नेतृत्व किया जब सोवियत विघटन हो चुका था और समाजवाद को पूरी दुनिया में अप्रासंगिक करार  देने की मुहिम चली हुई थी। उन दिनों दुनिया भर में कई तपे तपाए अदीब भी मार्क्सवाद का खेमा छोड़ अपनी राह ले रहे थे। कमला प्रसाद जी की अपनी मुख्य कार्यस्थली मध्य प्रदेश थी। मध्य प्रदेश कभी भी वाम आन्दोलन का मुख्य केंद्र नहीं रहा। ऐसी जगह नीचे से एक प्रगतिशील सांस्कृतिक संगठन को खडा करना मामूली बात न थी। ये कमला जी की सलाहियत थी कि ये काम भी अंजाम पा सका। निस्संदेह  [[हरिशंकर परसाई]] जैसे अग्रजों का प्रोत्साहन और [[मुक्तिबोध]] जैसों की विरासत ने उनका रास्ता प्रशस्त किया, लेकिन यह आसान फिर भी न रहा होगा। कमला जी को सबसे काम लेना आता था, अनावश्यक आरोपों का जवाब देते उन्हें शायद ही कभी देखा गया हो। वे प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच के बीच साझा कार्रवाइयों की संभावना तलाशने के प्रति सदैव खुलापन प्रदर्शित करते रहे। संगठनकर्ता के सम्मुख उन्होंने अपनी आलोचकीय और वैदुषिक क्षमता, अकादमिक प्रशासन में अपनी दक्षता को उतनी तरजीह नहीं दी। लेकिन इन रूपों में भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। मध्यप्रदेश कला परिषद और [[केन्द्रीय हिंदी संस्थान]] जैसे शासकीय निकायों में काम करते हुए भी वे लगातार प्रलेस के अपने सांगठनिक दायित्व को ही प्राथमिकता में रखते रहे। उनका स्नेहिल स्वभाव, सहज व्यवहार सभी को आकर्षित करता था। उनका निधन हो जाना सिर्फ प्रलेस, उनके परिजनों और मित्रों के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे वाम-लोकतांत्रिक सांस्कृतिक आन्दोलन के लिए भारी झटका है।<ref>{{cite web |url=http://lekhakmanch.com/%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%9C%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4.html |title=कमला प्रसाद को जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि |accessmonthday=1 जनवरी |accessyear= 2015|last=कृष्ण |first=प्रणय  |authorlink= |format= |publisher=लेखक मंच |language= हिन्दी}}</ref>
14 फ़रवरी, 1938 को रैगाँव, [[सतना ज़िला|सतना]] ([[मध्य प्रदेश]]) में जन्मे कमला प्रसाद ने 70 के दशक में [[ज्ञानरंजन]] के साथ मिलकर ‘पहल’ का सम्पादन किया, फिर 90 के दशक से वे ‘प्रगतिशील वसुधा’ के मृत्युपर्यंत सम्पादक रहे। दोनों ही पत्रिकाओं के कई अनमोल अंकों का श्रेय उन्हें जाता है। कमला प्रसाद जी ने पिछली सदी के उस अंतिम दशक में भी प्रलेस का सजग नेतृत्व किया जब सोवियत विघटन हो चुका था और समाजवाद को पूरी दुनिया में अप्रासंगिक करार  देने की मुहिम चली हुई थी। उन दिनों दुनिया भर में कई तपे तपाए अदीब भी मार्क्सवाद का खेमा छोड़ अपनी राह ले रहे थे। कमला प्रसाद जी की अपनी मुख्य कार्यस्थली मध्य प्रदेश थी। मध्य प्रदेश कभी भी वाम आन्दोलन का मुख्य केंद्र नहीं रहा। ऐसी जगह नीचे से एक प्रगतिशील सांस्कृतिक संगठन को खडा करना मामूली बात न थी। ये कमला जी की सलाहियत थी कि ये काम भी अंजाम पा सका। निस्संदेह  [[हरिशंकर परसाई]] जैसे अग्रजों का प्रोत्साहन और [[मुक्तिबोध]] जैसों की विरासत ने उनका रास्ता प्रशस्त किया, लेकिन यह आसान फिर भी न रहा होगा।
 
 
कमला जी को सबसे काम लेना आता था, अनावश्यक आरोपों का जवाब देते उन्हें शायद ही कभी देखा गया हो। वे प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच के बीच साझा कार्रवाइयों की संभावना तलाशने के प्रति सदैव खुलापन प्रदर्शित करते रहे। संगठनकर्ता के सम्मुख उन्होंने अपनी आलोचकीय और वैदुषिक क्षमता, अकादमिक प्रशासन में अपनी दक्षता को उतनी तरजीह नहीं दी। लेकिन इन रूपों में भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। मध्यप्रदेश कला परिषद और [[केन्द्रीय हिंदी संस्थान]] जैसे शासकीय निकायों में काम करते हुए भी वे लगातार प्रलेस के अपने सांगठनिक दायित्व को ही प्राथमिकता में रखते रहे। उनका स्नेहिल स्वभाव, सहज व्यवहार सभी को आकर्षित करता था। उनका निधन हो जाना सिर्फ प्रलेस, उनके परिजनों और मित्रों के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे वाम-लोकतांत्रिक सांस्कृतिक आन्दोलन के लिए भारी झटका है।<ref>{{cite web |url=http://lekhakmanch.com/%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%9C%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4.html |title=कमला प्रसाद को जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि |accessmonthday=1 जनवरी |accessyear= 2015|last=कृष्ण |first=प्रणय  |authorlink= |format= |publisher=लेखक मंच |language= हिन्दी}}</ref>
==मुख्य कृतियाँ==   
==मुख्य कृतियाँ==   
; आलोचना  
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* जंगल बाबा
* जंगल बाबा
==विशेष योगदान==
==विशेष योगदान==
प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव रहे कमला प्रसाद ने ऐसे समय पूरे देश के प्रगतिशील और जनपक्षधरता वाले रचनाकारों को उस वक्त देश में इकट्ठा करने का बीड़ा उठाया जब प्रतिक्रियावादी, अवसरवादी और दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता, यश और पुरस्कारों का चारा डालकर लेखकों को बरगलाने का काम कर रहीं थीं। कमला प्रसाद के इस काम को देश की विभिन्न भाषाओं और विभिन्न संगठनों के तरक्की पसंद रचनाकारों का मुक्त सहयोग मिला और एक संगठन के तौर पर '''प्रगतिशील लेखक संघ''' देश में लेखकों का सबसे बड़ा संगठन बना। इसके पीछे दोस्तों, साथियो और वरिष्ठों द्वारा भी कमांडर कहे जाने वाले कमला प्रसाद जी के सांगठनिक प्रयास प्रमुख रहे। उन्होंने [[जम्मू-कश्मीर]] से लेकर, [[पंजाब]], [[असम]], [[मेघालय]], [[पश्चिम बंगाल]] और [[केरल]], [[तमिलनाडु]], [[आंध्र प्रदेश]] आदि राज्यों में संगठन की इकाइयों का पुनर्गठन किया, नये लेखकों को उत्प्रेरित किया और पुराने लेखकों को पुन: सक्रिय किया। उनकी कोशिशें अनथक थीं और उनकी चिंताएँ भी यही कि सांस्कृतिक रूप से किस तरह साम्राज्यवाद, साम्प्रदायिकता और संकीर्णतावाद को चुनौती और शिकस्त दी जा सकती है और किस तरह एक समाजवादी समाज का स्वप्न साकार किया जा सकता है। 'वसुधा` के संपादन के जरिये उन्होंने रचनाकारों के बीच पुल बनाया और उसे लोकतांत्रिक सम्पादन की भी एक मिसाल बनाया। कमला प्रसाद रीवा विश्वविद्यालय में [[हिन्दी]] के विभागाध्यक्ष रहे, मध्य प्रदेश कला परिषद के सचिव रहे, [[केन्द्रीय हिन्दी संस्थान]], [[आगरा]] के अध्यक्ष रहे और तमाम अकादमिक-सांस्कृतिक समितियों के अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे, अनेक किताबें लिखीं, हिन्दी के प्रमुख आलोचकों में उनका स्थान है, लेकिन हर जगह उनकी सबसे पहली प्राथमिकता प्रगतिशील चेतना के निर्माण की रही। उनके न रहने से न केवल प्रगतिशील लेखक संघ को, बल्कि वंचितों के पक्ष में खड़े होने और सत्ता को चुनौती देने वाले लेखकों के पूरे आंदोलन को आघात पहुँचा है। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संगठन तो खासतौर पर उन जैसे शुरुआती कुछ साथियों की मेहनत का नतीजा है। कमला प्रसाद ने जिन मूल्यों को जिया, जिन वामपंथी प्रतिबद्धताओं को निभाया और जो सांगठनिक ढाँचा देश में खड़ा किया, वो उनके दिखाये रास्ते पर आगे बढ़ने वाले लोग सामने लाएगा और [[प्रेमचंद]], सज्जाद जहीर, [[फ़ैज़]], [[भीष्म साहनी]], [[कैफ़ी आज़मी]], [[हरिशंकर परसाई]] जैसे लेखकों के जिन कामों को कमला प्रसाद ने आगे बढ़ाया था, उन्हें और आगे बढ़ाया जाएगा।<ref>{{cite web |url=http://abhivyakti-hindi.blogspot.in/2011/03/blog-post_1471.html|title=प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. कमलाप्रसाद का निधन |accessmonthday=1 जनवरी |accessyear= 2015|last=सिंह |first=पुन्नी|authorlink= |format= |publisher=साहित्य समाचार |language= हिन्दी}}</ref>
प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव रहे कमला प्रसाद ने ऐसे समय पूरे देश के प्रगतिशील और जनपक्षधरता वाले रचनाकारों को उस वक्त देश में इकट्ठा करने का बीड़ा उठाया जब प्रतिक्रियावादी, अवसरवादी और दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता, यश और पुरस्कारों का चारा डालकर लेखकों को बरगलाने का काम कर रहीं थीं। कमला प्रसाद के इस काम को देश की विभिन्न भाषाओं और विभिन्न संगठनों के तरक्की पसंद रचनाकारों का मुक्त सहयोग मिला और एक संगठन के तौर पर '''प्रगतिशील लेखक संघ''' देश में लेखकों का सबसे बड़ा संगठन बना। इसके पीछे दोस्तों, साथियो और वरिष्ठों द्वारा भी कमांडर कहे जाने वाले कमला प्रसाद जी के सांगठनिक प्रयास प्रमुख रहे। उन्होंने [[जम्मू-कश्मीर]] से लेकर, [[पंजाब]], [[असम]], [[मेघालय]], [[पश्चिम बंगाल]] और [[केरल]], [[तमिलनाडु]], [[आंध्र प्रदेश]] आदि राज्यों में संगठन की इकाइयों का पुनर्गठन किया, नये लेखकों को उत्प्रेरित किया और पुराने लेखकों को पुन: सक्रिय किया। उनकी कोशिशें अनथक थीं और उनकी चिंताएँ भी यही कि सांस्कृतिक रूप से किस तरह साम्राज्यवाद, साम्प्रदायिकता और संकीर्णतावाद को चुनौती और शिकस्त दी जा सकती है और किस तरह एक समाजवादी समाज का स्वप्न साकार किया जा सकता है।
 
 
'वसुधा' के संपादन के जरिये उन्होंने रचनाकारों के बीच पुल बनाया और उसे लोकतांत्रिक सम्पादन की भी एक मिसाल बनाया। कमला प्रसाद रीवा विश्वविद्यालय में [[हिन्दी]] के विभागाध्यक्ष रहे, मध्य प्रदेश कला परिषद के सचिव रहे, [[केन्द्रीय हिन्दी संस्थान]], [[आगरा]] के अध्यक्ष रहे और तमाम अकादमिक-सांस्कृतिक समितियों के अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे, अनेक किताबें लिखीं, हिन्दी के प्रमुख आलोचकों में उनका स्थान है, लेकिन हर जगह उनकी सबसे पहली प्राथमिकता प्रगतिशील चेतना के निर्माण की रही। उनके न रहने से न केवल प्रगतिशील लेखक संघ को, बल्कि वंचितों के पक्ष में खड़े होने और सत्ता को चुनौती देने वाले लेखकों के पूरे आंदोलन को आघात पहुँचा है। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संगठन तो खासतौर पर उन जैसे शुरुआती कुछ साथियों की मेहनत का नतीजा है। कमला प्रसाद ने जिन मूल्यों को जिया, जिन वामपंथी प्रतिबद्धताओं को निभाया और जो सांगठनिक ढाँचा देश में खड़ा किया, वो उनके दिखाये रास्ते पर आगे बढ़ने वाले लोग सामने लाएगा और [[प्रेमचंद]], सज्जाद जहीर, [[फ़ैज़]], [[भीष्म साहनी]], [[कैफ़ी आज़मी]], [[हरिशंकर परसाई]] जैसे लेखकों के जिन कामों को कमला प्रसाद ने आगे बढ़ाया था, उन्हें और आगे बढ़ाया जाएगा।<ref>{{cite web |url=http://abhivyakti-hindi.blogspot.in/2011/03/blog-post_1471.html|title=प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. कमलाप्रसाद का निधन |accessmonthday=1 जनवरी |accessyear= 2015|last=सिंह |first=पुन्नी|authorlink= |format= |publisher=साहित्य समाचार |language= हिन्दी}}</ref>
==सम्मान और पुरस्कार==
==सम्मान और पुरस्कार==
* प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान
* प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान
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<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://hindi.webdunia.com/hindi-literature/%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A4%A4-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A7-111032600015_1.htm कमला प्रसाद के निधन से साहित्य जगत स्तब्ध]
*[http://hindi.webdunia.com/hindi-literature/%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A4%A4-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A7-111032600015_1.htm कमला प्रसाद के निधन से साहित्य जगत् स्तब्ध]
*[http://www.srijangatha.com/%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%A812MAy2012#.VKULhMnEXK8 आलोचना का वैचारिक पक्ष]
*[http://www.srijangatha.com/%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%A812MAy2012#.VKULhMnEXK8 आलोचना का वैचारिक पक्ष]
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Latest revision as of 06:16, 25 March 2018

कमला प्रसाद
पूरा नाम कमला प्रसाद
जन्म 14 फ़रवरी, 1938
जन्म भूमि रैगाँव, सतना (मध्य प्रदेश)
मृत्यु 25 मार्च, 2011
मृत्यु स्थान दिल्ली
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र आलोचक
मुख्य रचनाएँ साहित्य-शास्त्र, छायावादोत्तर काव्य की सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, समकालीन हिंदी निबंध, आलोचक और आलोचना आदि।
विषय आलोचना
भाषा हिन्दी
पुरस्कार-उपाधि 'प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान', 'नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार' आदि।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी कमला प्रसाद प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव और वसुधा पत्रिका के संपादक रहे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

कमला प्रसाद (अंग्रेज़ी: Kamla Prasad, जन्म: 14 फ़रवरी, 1938; मृत्यु: 25 मार्च, 2011) हिन्दी प्रमुख लेखक एवं आलोचक थे। प्रगतिशील लेखक संघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव और वसुधा पत्रिका के संपादक कमला प्रसाद ने एक ऐसे समय में जब सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक स्तर पर हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ लेखकीय प्रतिरोध की अत्यंत और प्रखर ज़रूरत थी, उन्होंने पूरे देश में घूम-घूम कर लेखकों को चेताया, सजग और सचेत किया।

जीवन परिचय

14 फ़रवरी, 1938 को रैगाँव, सतना (मध्य प्रदेश) में जन्मे कमला प्रसाद ने 70 के दशक में ज्ञानरंजन के साथ मिलकर ‘पहल’ का सम्पादन किया, फिर 90 के दशक से वे ‘प्रगतिशील वसुधा’ के मृत्युपर्यंत सम्पादक रहे। दोनों ही पत्रिकाओं के कई अनमोल अंकों का श्रेय उन्हें जाता है। कमला प्रसाद जी ने पिछली सदी के उस अंतिम दशक में भी प्रलेस का सजग नेतृत्व किया जब सोवियत विघटन हो चुका था और समाजवाद को पूरी दुनिया में अप्रासंगिक करार देने की मुहिम चली हुई थी। उन दिनों दुनिया भर में कई तपे तपाए अदीब भी मार्क्सवाद का खेमा छोड़ अपनी राह ले रहे थे। कमला प्रसाद जी की अपनी मुख्य कार्यस्थली मध्य प्रदेश थी। मध्य प्रदेश कभी भी वाम आन्दोलन का मुख्य केंद्र नहीं रहा। ऐसी जगह नीचे से एक प्रगतिशील सांस्कृतिक संगठन को खडा करना मामूली बात न थी। ये कमला जी की सलाहियत थी कि ये काम भी अंजाम पा सका। निस्संदेह हरिशंकर परसाई जैसे अग्रजों का प्रोत्साहन और मुक्तिबोध जैसों की विरासत ने उनका रास्ता प्रशस्त किया, लेकिन यह आसान फिर भी न रहा होगा।


कमला जी को सबसे काम लेना आता था, अनावश्यक आरोपों का जवाब देते उन्हें शायद ही कभी देखा गया हो। वे प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच के बीच साझा कार्रवाइयों की संभावना तलाशने के प्रति सदैव खुलापन प्रदर्शित करते रहे। संगठनकर्ता के सम्मुख उन्होंने अपनी आलोचकीय और वैदुषिक क्षमता, अकादमिक प्रशासन में अपनी दक्षता को उतनी तरजीह नहीं दी। लेकिन इन रूपों में भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। मध्यप्रदेश कला परिषद और केन्द्रीय हिंदी संस्थान जैसे शासकीय निकायों में काम करते हुए भी वे लगातार प्रलेस के अपने सांगठनिक दायित्व को ही प्राथमिकता में रखते रहे। उनका स्नेहिल स्वभाव, सहज व्यवहार सभी को आकर्षित करता था। उनका निधन हो जाना सिर्फ प्रलेस, उनके परिजनों और मित्रों के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे वाम-लोकतांत्रिक सांस्कृतिक आन्दोलन के लिए भारी झटका है।[1]

मुख्य कृतियाँ

आलोचना
  • साहित्य-शास्त्र
  • छायावाद : प्रकृति और प्रयोग
  • छायावादोत्तर काव्य की सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
  • दरअसल, साहित्य और विचारधारा
  • रचना और आलोचना की द्वंद्वात्मकता
  • आधुनिक हिंदी कविता और आलोचना की द्वंद्वात्मरकता
  • समकालीन हिंदी निबंध
  • मध्ययुगीन रचना और मूल्य
  • कविता तीरे
  • आलोचक और आलोचना
पत्रिका संपादन
  • पहल
  • वसुधा
अन्य
  • वार्तालाप
  • जंगल बाबा

विशेष योगदान

प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव रहे कमला प्रसाद ने ऐसे समय पूरे देश के प्रगतिशील और जनपक्षधरता वाले रचनाकारों को उस वक्त देश में इकट्ठा करने का बीड़ा उठाया जब प्रतिक्रियावादी, अवसरवादी और दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता, यश और पुरस्कारों का चारा डालकर लेखकों को बरगलाने का काम कर रहीं थीं। कमला प्रसाद के इस काम को देश की विभिन्न भाषाओं और विभिन्न संगठनों के तरक्की पसंद रचनाकारों का मुक्त सहयोग मिला और एक संगठन के तौर पर प्रगतिशील लेखक संघ देश में लेखकों का सबसे बड़ा संगठन बना। इसके पीछे दोस्तों, साथियो और वरिष्ठों द्वारा भी कमांडर कहे जाने वाले कमला प्रसाद जी के सांगठनिक प्रयास प्रमुख रहे। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से लेकर, पंजाब, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल और केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में संगठन की इकाइयों का पुनर्गठन किया, नये लेखकों को उत्प्रेरित किया और पुराने लेखकों को पुन: सक्रिय किया। उनकी कोशिशें अनथक थीं और उनकी चिंताएँ भी यही कि सांस्कृतिक रूप से किस तरह साम्राज्यवाद, साम्प्रदायिकता और संकीर्णतावाद को चुनौती और शिकस्त दी जा सकती है और किस तरह एक समाजवादी समाज का स्वप्न साकार किया जा सकता है।


'वसुधा' के संपादन के जरिये उन्होंने रचनाकारों के बीच पुल बनाया और उसे लोकतांत्रिक सम्पादन की भी एक मिसाल बनाया। कमला प्रसाद रीवा विश्वविद्यालय में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, मध्य प्रदेश कला परिषद के सचिव रहे, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के अध्यक्ष रहे और तमाम अकादमिक-सांस्कृतिक समितियों के अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे, अनेक किताबें लिखीं, हिन्दी के प्रमुख आलोचकों में उनका स्थान है, लेकिन हर जगह उनकी सबसे पहली प्राथमिकता प्रगतिशील चेतना के निर्माण की रही। उनके न रहने से न केवल प्रगतिशील लेखक संघ को, बल्कि वंचितों के पक्ष में खड़े होने और सत्ता को चुनौती देने वाले लेखकों के पूरे आंदोलन को आघात पहुँचा है। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संगठन तो खासतौर पर उन जैसे शुरुआती कुछ साथियों की मेहनत का नतीजा है। कमला प्रसाद ने जिन मूल्यों को जिया, जिन वामपंथी प्रतिबद्धताओं को निभाया और जो सांगठनिक ढाँचा देश में खड़ा किया, वो उनके दिखाये रास्ते पर आगे बढ़ने वाले लोग सामने लाएगा और प्रेमचंद, सज्जाद जहीर, फ़ैज़, भीष्म साहनी, कैफ़ी आज़मी, हरिशंकर परसाई जैसे लेखकों के जिन कामों को कमला प्रसाद ने आगे बढ़ाया था, उन्हें और आगे बढ़ाया जाएगा।[2]

सम्मान और पुरस्कार

  • प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान
  • नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार

निधन

कमला प्रसाद का निधन 25 मार्च, 2011, दिल्ली में हुआ।


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प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृष्ण, प्रणय। कमला प्रसाद को जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि (हिन्दी) लेखक मंच। अभिगमन तिथि: 1 जनवरी, 2015।
  2. सिंह, पुन्नी। प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. कमलाप्रसाद का निधन (हिन्दी) साहित्य समाचार। अभिगमन तिथि: 1 जनवरी, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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