भगति पच्छ हठ करि: Difference between revisions

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भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप।
भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप।
मुनि दुर्लभ बर पायउँ देखहु भजन प्रताप॥114 ख॥
मुनि दुर्लभ बर पायउँ देखहु भजन प्रताप॥114 ख॥
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;भावार्थ
;भावार्थ
मैं हठ करके [[भक्ति]] पक्ष पर अड़ा रहा, जिससे [[लोमश ऋषि|महर्षि लोमश]] ने मुझे [[शाप]] दिया, परंतु उसका फल यह हुआ कि जो [[मुनि|मुनियों]] को भी दुर्लभ है, वह वरदान मैंने पाया। [[भजन]] का प्रताप तो देखिए!॥114 (ख)॥  
मैं हठ करके [[भक्ति]] पक्ष पर अड़ा रहा, जिससे [[लोमश ऋषि|महर्षि लोमश]] ने मुझे [[शाप]] दिया, परंतु उसका फल यह हुआ कि जो [[मुनि|मुनियों]] को भी दुर्लभ है, वह वरदान मैंने पाया। [[भजन]] का प्रताप तो देखिए!॥114 (ख)॥  
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{{लेख क्रम4| पिछला=ताते यह तन मोहि प्रिय |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=जे असि भगति जानि परिहरहीं}}
'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।





Latest revision as of 07:55, 6 February 2021

रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तर काण्ड) : ज्ञान-भक्ति-निरूपण

भगति पच्छ हठ करि
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
दोहा

भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप।
मुनि दुर्लभ बर पायउँ देखहु भजन प्रताप॥114 ख॥

भावार्थ

मैं हठ करके भक्ति पक्ष पर अड़ा रहा, जिससे महर्षि लोमश ने मुझे शाप दिया, परंतु उसका फल यह हुआ कि जो मुनियों को भी दुर्लभ है, वह वरदान मैंने पाया। भजन का प्रताप तो देखिए!॥114 (ख)॥


left|30px|link=ताते यह तन मोहि प्रिय|पीछे जाएँ भगति पच्छ हठ करि right|30px|link=जे असि भगति जानि परिहरहीं|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-532

संबंधित लेख