कन्नौज का युद्ध: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''कन्नौज का युद्ध''' मई 1540 ईस्वी में हुमायूं और शेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
(One intermediate revision by the same user not shown)
Line 3: Line 3:
*कन्नौज के युद्ध को 'बिलग्राम का युद्ध' भी कहा जाता है। बादशाह हुमायूं को यह मालूम था की शेरशाह की सेना उसकी सेना के मुकाबले ज्यादा ताकतवर एवं शक्तिशाली है और शेरशाह को इस लड़ाई में पराजित करना आसान नहीं है। इसी कारण उसने अपने भाइयों को इस युद्ध में मिलाने का प्रयास किया; परंतु उसके भाई इस युद्ध में उसके साथ सम्मिलित ना हुए बल्कि वह हुमायूं की युद्ध की तैयारियों में अनेक तरह से रुकावटें डालने लगे।
*कन्नौज के युद्ध को 'बिलग्राम का युद्ध' भी कहा जाता है। बादशाह हुमायूं को यह मालूम था की शेरशाह की सेना उसकी सेना के मुकाबले ज्यादा ताकतवर एवं शक्तिशाली है और शेरशाह को इस लड़ाई में पराजित करना आसान नहीं है। इसी कारण उसने अपने भाइयों को इस युद्ध में मिलाने का प्रयास किया; परंतु उसके भाई इस युद्ध में उसके साथ सम्मिलित ना हुए बल्कि वह हुमायूं की युद्ध की तैयारियों में अनेक तरह से रुकावटें डालने लगे।
*[[शेरशाह]] एक कुशल शासक था और उसको यह ज्ञात हो गया था कि हुमायूं के भाई कन्नौज के युद्ध में उसका साथ नहीं देने वाले हैं जिससे वह बहुत ही प्रसन्न हुआ। जैसे ही शेरशाह को हुमायूं के भाइयों के बारे में ज्ञात हुआ उसने अपनी सेना एवं [[अफ़ग़ान]] साथियों के साथ हुमायूं पर आक्रमण करने का फैसला किया। हुमायूं भी उसका सामना करने के लिए तैयार था।  
*[[शेरशाह]] एक कुशल शासक था और उसको यह ज्ञात हो गया था कि हुमायूं के भाई कन्नौज के युद्ध में उसका साथ नहीं देने वाले हैं जिससे वह बहुत ही प्रसन्न हुआ। जैसे ही शेरशाह को हुमायूं के भाइयों के बारे में ज्ञात हुआ उसने अपनी सेना एवं [[अफ़ग़ान]] साथियों के साथ हुमायूं पर आक्रमण करने का फैसला किया। हुमायूं भी उसका सामना करने के लिए तैयार था।  
*न्नौज के युद्ध के लिए दोनों पक्षों की सेनाओं ने [[कन्नौज]] के पास ही [[गंगा]] के किनारे अपना-अपना पड़ाव डाला। इतिहासकारों के मत के अनुसार दोनों सेनाओं की संख्या लगभग दो लाख थी और दोनों सेनाएं लगभग एक महीने तक बिना युद्ध किए वहीं पर अपना पड़ाव डाले रहीं।
*कन्नौज के युद्ध के लिए दोनों पक्षों की सेनाओं ने [[कन्नौज]] के पास ही [[गंगा]] के किनारे अपना-अपना पड़ाव डाला। इतिहासकारों के मत के अनुसार दोनों सेनाओं की संख्या लगभग दो लाख थी और दोनों सेनाएं लगभग एक महीने तक बिना युद्ध किए वहीं पर अपना पड़ाव डाले रहीं।
*शेरशाह को इस बात से कोई हानि नहीं थी परंतु [[हुमायूं]] की सेना के सिपाही धीरे-धीरे उसका साथ छोड़ कर चले जा रहे थे, इसी कारणवश हुमायूं ने कन्नौज के युद्ध को प्रारंभ करना ही उचित समझा।
*शेरशाह को इस बात से कोई हानि नहीं थी परंतु [[हुमायूं]] की सेना के सिपाही धीरे-धीरे उसका साथ छोड़ कर चले जा रहे थे, इसी कारणवश हुमायूं ने कन्नौज के युद्ध को प्रारंभ करना ही उचित समझा।
*इस युद्ध में अफ़ग़ानी सेना ने हुमायूं की सेना को बड़ी आसानी से पराजित कर दिया, क्योंकि उसके सैनिक इस युद्ध में डटकर नहीं लड़े।
*इस युद्ध में अफ़ग़ानी सेना ने हुमायूं की सेना को बड़ी आसानी से पराजित कर दिया, क्योंकि उसके सैनिक इस युद्ध में डटकर नहीं लड़े।
Line 10: Line 10:
*इस युद्ध के पश्चात ही हुमायूं को अपनी राजगद्दी छोड़कर भागना पड़ा और [[दिल्ली]] का राज्य शेरशाह सूरी के अधिकार में आ गया।
*इस युद्ध के पश्चात ही हुमायूं को अपनी राजगद्दी छोड़कर भागना पड़ा और [[दिल्ली]] का राज्य शेरशाह सूरी के अधिकार में आ गया।


{{लेख प्रगति।आधार=।प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1।माध्यमिक= ।पूर्णता= ।शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

Latest revision as of 16:59, 22 April 2021

कन्नौज का युद्ध मई 1540 ईस्वी में हुमायूं और शेरशाह के बीच लड़ा गया था। इस लड़ाई ने मुग़लों और शेरशाह सूरी के बीच मामले का फैसला कर दिया। इस युद्ध के बाद बादशाह हुमायूं बिना राज्य का राजा था और काबुल तथा कंधार कामरान के हाथों में थे।

  • कन्नौज के युद्ध को 'बिलग्राम का युद्ध' भी कहा जाता है। बादशाह हुमायूं को यह मालूम था की शेरशाह की सेना उसकी सेना के मुकाबले ज्यादा ताकतवर एवं शक्तिशाली है और शेरशाह को इस लड़ाई में पराजित करना आसान नहीं है। इसी कारण उसने अपने भाइयों को इस युद्ध में मिलाने का प्रयास किया; परंतु उसके भाई इस युद्ध में उसके साथ सम्मिलित ना हुए बल्कि वह हुमायूं की युद्ध की तैयारियों में अनेक तरह से रुकावटें डालने लगे।
  • शेरशाह एक कुशल शासक था और उसको यह ज्ञात हो गया था कि हुमायूं के भाई कन्नौज के युद्ध में उसका साथ नहीं देने वाले हैं जिससे वह बहुत ही प्रसन्न हुआ। जैसे ही शेरशाह को हुमायूं के भाइयों के बारे में ज्ञात हुआ उसने अपनी सेना एवं अफ़ग़ान साथियों के साथ हुमायूं पर आक्रमण करने का फैसला किया। हुमायूं भी उसका सामना करने के लिए तैयार था।
  • कन्नौज के युद्ध के लिए दोनों पक्षों की सेनाओं ने कन्नौज के पास ही गंगा के किनारे अपना-अपना पड़ाव डाला। इतिहासकारों के मत के अनुसार दोनों सेनाओं की संख्या लगभग दो लाख थी और दोनों सेनाएं लगभग एक महीने तक बिना युद्ध किए वहीं पर अपना पड़ाव डाले रहीं।
  • शेरशाह को इस बात से कोई हानि नहीं थी परंतु हुमायूं की सेना के सिपाही धीरे-धीरे उसका साथ छोड़ कर चले जा रहे थे, इसी कारणवश हुमायूं ने कन्नौज के युद्ध को प्रारंभ करना ही उचित समझा।
  • इस युद्ध में अफ़ग़ानी सेना ने हुमायूं की सेना को बड़ी आसानी से पराजित कर दिया, क्योंकि उसके सैनिक इस युद्ध में डटकर नहीं लड़े।
  • अफ़ग़ान सेना ने भागती हुई मुग़ल सेना को नदी की ओर पीछा किया और कई सैनिकों को मार गिराया जिससे उसकी बड़ी क्षति हुई। बहुत से मुग़ल सैनिक नदी में डूब गए।
  • कन्नौज की लड़ाई ने मुग़लों और शेरशाह सूरी के बीच मामले का फैसला कर दिया। इस युद्ध के बाद बादशाह हुमायूं बिना राज्य का राजा था और काबुल तथा कंधार कामरान के हाथों में थे।
  • इस युद्ध के पश्चात ही हुमायूं को अपनी राजगद्दी छोड़कर भागना पड़ा और दिल्ली का राज्य शेरशाह सूरी के अधिकार में आ गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख