अड़ींग मथुरा: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''अड़ींग''' [[मथुरा]]-[[गोवर्धन]] सड़क पर मथुरा से 12 मील की दूरी पर स्थित है। [[ग्राउस]] ने यह नाम [[अरिष्ट]] ग्राम से माना है। | |||
*यहाँ पर फोंदाराम [[जाट]] द्वारा निर्मित एक मिट्टी का क़िला है। इसकी इमारत अब ध्वस्तावस्था में है। फोंदाराम [[भरतपुर]] के राजा [[सूरजमल]] (1755-63 ई.) का एक जागीरदार था। | *यहाँ पर फोंदाराम [[जाट]] द्वारा निर्मित एक मिट्टी का क़िला है। इसकी इमारत अब ध्वस्तावस्था में है। फोंदाराम [[भरतपुर]] के राजा [[सूरजमल]] (1755-63 ई.) का एक जागीरदार था। | ||
*वर्षों तक अड़ींग, अड़ींग परगना का केन्द्र रहा। | *वर्षों तक अड़ींग, अड़ींग परगना का केन्द्र रहा। | ||
*सन 1868 ई. (अंग्रेज़ों के शासन में) इसकी यह स्थिति समाप्त हो गई। | *सन 1868 ई. ([[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के शासन में) इसकी यह स्थिति समाप्त हो गई। | ||
*सन 1804 ई. में अड़ींग में ही विदेशी शासकों को [[भारत]] से निकालने में प्रयत्नशील जसवन्त राव होल्कर को लॉर्ड लेक ने परास्त किया था। | *सन 1804 ई. में अड़ींग में ही विदेशी शासकों को [[भारत]] से निकालने में प्रयत्नशील जसवन्त राव होल्कर को लॉर्ड लेक ने परास्त किया था। | ||
*सन 1818 ई. तक बाबा विश्वनाथ नामक एक काश्मीरी पण्डित की जागीर में यह सम्मिलित रहा। | *सन 1818 ई. तक बाबा विश्वनाथ नामक एक काश्मीरी पण्डित की जागीर में यह सम्मिलित रहा। | ||
Line 9: | Line 8: | ||
*सन 1857 ई. के [[ब्रज का स्वतंत्रता संग्राम 1857- (5)|प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम]] में इस गाँव ने प्रमुख भाग लिया था। फलस्वरूप यहाँ के अनेक ठाकरों का निर्दयता से दमन किया गया था। यहाँ के ठाकरों को फाँसी पर लटकाया गया। अत्याचारों के कारण यहाँ के ठाकरों को बड़ी संख्या में पलायन करना पड़ा था। | *सन 1857 ई. के [[ब्रज का स्वतंत्रता संग्राम 1857- (5)|प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम]] में इस गाँव ने प्रमुख भाग लिया था। फलस्वरूप यहाँ के अनेक ठाकरों का निर्दयता से दमन किया गया था। यहाँ के ठाकरों को फाँसी पर लटकाया गया। अत्याचारों के कारण यहाँ के ठाकरों को बड़ी संख्या में पलायन करना पड़ा था। | ||
*इस राष्ट्रमुक्ति संघर्ष में सेठ के प्रतिनिधि लाला रामबक्स ने विदेशियों को प्रश्रय देकर देश-द्रोहिता का परिचय दिया था। अँगेजों ने उसे पुरस्कृत भी किया था और मुन्शी भजनलाल पटवारी को भी पुरस्कार मिला था। | *इस राष्ट्रमुक्ति संघर्ष में सेठ के प्रतिनिधि लाला रामबक्स ने विदेशियों को प्रश्रय देकर देश-द्रोहिता का परिचय दिया था। अँगेजों ने उसे पुरस्कृत भी किया था और मुन्शी भजनलाल पटवारी को भी पुरस्कार मिला था। | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{ब्रज}} | {{ब्रज}}{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}} | ||
{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}} | |||
[[Category:ब्रज]] | [[Category:ब्रज]] | ||
[[Category:मथुरा]] | [[Category:मथुरा]] | ||
[[Category:ब्रज के दर्शनीय स्थल]] | |||
[[Category:ब्रज के धार्मिक स्थल]] | [[Category:ब्रज के धार्मिक स्थल]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 10:59, 19 November 2011
अड़ींग मथुरा-गोवर्धन सड़क पर मथुरा से 12 मील की दूरी पर स्थित है। ग्राउस ने यह नाम अरिष्ट ग्राम से माना है।
- यहाँ पर फोंदाराम जाट द्वारा निर्मित एक मिट्टी का क़िला है। इसकी इमारत अब ध्वस्तावस्था में है। फोंदाराम भरतपुर के राजा सूरजमल (1755-63 ई.) का एक जागीरदार था।
- वर्षों तक अड़ींग, अड़ींग परगना का केन्द्र रहा।
- सन 1868 ई. (अंग्रेज़ों के शासन में) इसकी यह स्थिति समाप्त हो गई।
- सन 1804 ई. में अड़ींग में ही विदेशी शासकों को भारत से निकालने में प्रयत्नशील जसवन्त राव होल्कर को लॉर्ड लेक ने परास्त किया था।
- सन 1818 ई. तक बाबा विश्वनाथ नामक एक काश्मीरी पण्डित की जागीर में यह सम्मिलित रहा।
- सन 1852 ई. में इस जागीर को नीलाम में सेठ गोविन्द दास ने ख़रीद लिया था और यह वृन्दावन के सुप्रसिद्ध रंगजी के मन्दिर की ज़मींदारी में आ गया।
- सन 1857 ई. के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में इस गाँव ने प्रमुख भाग लिया था। फलस्वरूप यहाँ के अनेक ठाकरों का निर्दयता से दमन किया गया था। यहाँ के ठाकरों को फाँसी पर लटकाया गया। अत्याचारों के कारण यहाँ के ठाकरों को बड़ी संख्या में पलायन करना पड़ा था।
- इस राष्ट्रमुक्ति संघर्ष में सेठ के प्रतिनिधि लाला रामबक्स ने विदेशियों को प्रश्रय देकर देश-द्रोहिता का परिचय दिया था। अँगेजों ने उसे पुरस्कृत भी किया था और मुन्शी भजनलाल पटवारी को भी पुरस्कार मिला था।
संबंधित लेख