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जबलपुर से 5 मील दूर इस पुरबा कस्बे में, भूमि से तीन सौ फुट ऊँची पहाड़ी पर कई प्राचीन भवनों के खंडहर अवस्थित हैं। इनमें पिसनहारी की मढ़िया अति प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस मंदिर को [[गोंडवाना]] की महारानी दुर्गावती की समकालीन किसी [[चक्की]] पीसने वाली अज्ञातनाम स्त्री ने बनवाया था। यह स्थान महाकोशल के दिगंबर [[जैन|जैनों]] द्वारा पवित्र माना जाता है और यहाँ प्रतिवर्ष मेला भी लगता है। मंदिर तक जाने के लिए एक घुमावदार रास्ता है और पहाड़ी पर चढ़ने के लिए दो सौ आठ सीढ़ियाँ बनी हैं। | |||
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पिसनहारी की मढ़िया के पार्श्व में केवल दो शैलखंडों पर खड़ा हुआ 'मदन महल' [[मुग़ल]] सम्राट [[अकबर]] से लोहा लेने वाली वीरांगना दुर्गावती का अमर स्मारक है। पास ही संग्राम सागर नामक एक विशाल झील है, जो दुर्गावती के सचिव सरदार संग्राम सिंह की स्मृति संजोए हुए है। पुरवा के निकट ही [[गोंड]] नरेशों के समय के खंडहर दूर तक फैले हुए हैं, इन्हीं में महारानी दुर्गावती का हाथीखाना भी है। यहीं पर आमवास नामक स्थान है, जिसके बारे में किंवदंती है कि किसी समय यहाँ [[आम]] के एक लाख वृक्ष थे। | |||
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पुरवा मध्य प्रदेश राज्य के जबलपुर ज़िले से 5 मील (लगभग 8 कि.मी.) दूर स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। यहाँ भूमि से तीन सौ फुट ऊँची पहाड़ी पर कई प्राचीन भवनों के खंडहर अवस्थित हैं। पुरवा के पास 'संग्राम सागर' नामक विशाल झील है, जो दुर्गावती के सचिव सरदार संग्राम सिंह की स्मृति संजोए हुए है।
प्राचीन खंडहर
जबलपुर से 5 मील दूर इस पुरबा कस्बे में, भूमि से तीन सौ फुट ऊँची पहाड़ी पर कई प्राचीन भवनों के खंडहर अवस्थित हैं। इनमें पिसनहारी की मढ़िया अति प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस मंदिर को गोंडवाना की महारानी दुर्गावती की समकालीन किसी चक्की पीसने वाली अज्ञातनाम स्त्री ने बनवाया था। यह स्थान महाकोशल के दिगंबर जैनों द्वारा पवित्र माना जाता है और यहाँ प्रतिवर्ष मेला भी लगता है। मंदिर तक जाने के लिए एक घुमावदार रास्ता है और पहाड़ी पर चढ़ने के लिए दो सौ आठ सीढ़ियाँ बनी हैं।
दुर्गावती का स्मारक
पिसनहारी की मढ़िया के पार्श्व में केवल दो शैलखंडों पर खड़ा हुआ 'मदन महल' मुग़ल सम्राट अकबर से लोहा लेने वाली वीरांगना दुर्गावती का अमर स्मारक है। पास ही संग्राम सागर नामक एक विशाल झील है, जो दुर्गावती के सचिव सरदार संग्राम सिंह की स्मृति संजोए हुए है। पुरवा के निकट ही गोंड नरेशों के समय के खंडहर दूर तक फैले हुए हैं, इन्हीं में महारानी दुर्गावती का हाथीखाना भी है। यहीं पर आमवास नामक स्थान है, जिसके बारे में किंवदंती है कि किसी समय यहाँ आम के एक लाख वृक्ष थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 565 |
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