सुपार्श्वनाथ: Difference between revisions
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*इसके पश्चात् 9 महीने तक कठोर तप करने के बाद [[फाल्गुन]] [[कृष्ण पक्ष]] [[सप्तमी]] को धर्म नगरी वाराणसी में ही 'शिरीष' वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी। | *इसके पश्चात् 9 महीने तक कठोर तप करने के बाद [[फाल्गुन]] [[कृष्ण पक्ष]] [[सप्तमी]] को धर्म नगरी वाराणसी में ही 'शिरीष' वृक्ष के नीचे इन्हें '[[कैवल्य ज्ञान]]' की प्राप्ति हुई थी। | ||
*सुपार्श्वनाथ ने हमेशा [[सत्य]] का समर्थन किया और अपने अनुयायियों को अनर्थ हिंसा से बचने और न्याय के मूल्य को समझने का सन्देश दिया। | *सुपार्श्वनाथ ने हमेशा [[सत्य]] का समर्थन किया और अपने अनुयायियों को अनर्थ हिंसा से बचने और न्याय के मूल्य को समझने का सन्देश दिया। | ||
*फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी के दिन भगवान सुपार्श्वनाथ ने सम्मेद शिखर पर [[निर्वाण]] को प्राप्त किया।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Suparshvanath|title=श्री सुपार्श्वनाथ जी|accessmonthday=26 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first=|authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | *फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी के दिन भगवान सुपार्श्वनाथ ने [[सम्मेद शिखर]] पर [[निर्वाण]] को प्राप्त किया।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Suparshvanath|title=श्री सुपार्श्वनाथ जी|accessmonthday=26 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first=|authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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Latest revision as of 13:41, 21 March 2014
सुपार्श्वनाथ जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर थे। भगवान श्री सुपार्श्वनाथ जी का जन्म वाराणसी के इक्ष्वाकु वंश में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को विशाखा नक्षत्र में हुआ था। इनकी माता का नाम पृथ्वी देवी और पिता का नाम राजा प्रतिष्ठ था। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न स्वस्तिक था।
- सुपार्श्वनाथ के यक्ष का नाम मातंग और यक्षिणी का नाम शांता देवी था।
- जैन धर्मावलम्बियों के मतानुसार सुपार्श्वनाथ के कुल गणधरों की संख्या 95 थी, जिनमें विदर्भ स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
- ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी तिथि को वाराणसी में ही इन्होनें दीक्षा प्राप्ति की।
- दीक्षा प्राप्ति के 2 दिन बाद इन्होनें खीर से प्रथम पारणा किया।
- इसके पश्चात् 9 महीने तक कठोर तप करने के बाद फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी को धर्म नगरी वाराणसी में ही 'शिरीष' वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी।
- सुपार्श्वनाथ ने हमेशा सत्य का समर्थन किया और अपने अनुयायियों को अनर्थ हिंसा से बचने और न्याय के मूल्य को समझने का सन्देश दिया।
- फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी के दिन भगवान सुपार्श्वनाथ ने सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त किया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री सुपार्श्वनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 फ़रवरी, 2012।
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