गिरवरपुर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''गिरवरपुर''' मथुरा ज़िला, उत्तर प्रदेश का एक ग्राम ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
(3 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
'''गिरवरपुर''' [[मथुरा ज़िला]], [[उत्तर प्रदेश]] का एक ग्राम है। इस ग्राम से [[1929]] में एक छोटा प्रस्तर-स्तभं प्राप्त हुआ था।
'''गिरवरपुर''' [[मथुरा ज़िला]], [[उत्तर प्रदेश]] का एक ग्राम है। इस ग्राम से [[1929]] में एक छोटा प्रस्तर-स्तभं प्राप्त हुआ था। प्राप्त अभिलेख पर [[कुषाण]] नरेश महाराज [[हुविष्क]] के शासन के 28वें वर्ष का एक [[संस्कृत]] [[अभिलेख]] उत्कीर्ण है, जो इस प्रकार है-
प्राप्त अभिलेख पर [[कुषाण]] नरेश महाराज [[हुविष्क]] के शासन के 28वें वर्ष का एक [[संस्कृत]] [[अभिलेख]] उत्कीर्ण है, जो इस प्रकार है-


'सिद्धं संवत्सरे 208 गुर्प्पिय दिवसे अयं पुण्यशाला प्राचिनीकनसरुकमान पुत्रेण खरासलेर पतिना वकनपतिना अक्षयनीवि दिन्नाततो वृद्धितोमासानुमासं शुद्धस्य चतुर्दिशि पुण्यशालायं ब्राह्मणशतं परिविषितव्यं दिवसे दिवसे च पुण्यशालाय द्वार धारिय साद्यं सक्तुना आढका 3 लवणप्रस्थो 1, शकुप्रस्थो 1, हरित कलापकघटका 3, मल्लका 5 एतं अनाधानं कृतेन दातव्यं बुभुक्षितानं पिवसितानं यत्रात्रं पुण्यं तं देवपुत्रस्य षाहिस्य हुविष्कस्य येषां च देवपुत्रो प्रिय: तेषामपि पुण्यं भवतु सर्वापि च पृथिवीये पुण्ये भवतु अक्षयनीविदिन्नाशकश्रेणीये पुराण शत 500, 50 समितकरश्रेणी (ये च) पुराणशत 500, 50'
'सिद्धं संवत्सरे 208 गुर्प्पिय दिवसे अयं पुण्यशाला प्राचिनीकनसरुकमान पुत्रेण खरासलेर पतिना वकनपतिना अक्षयनीवि दिन्नाततो वृद्धितोमासानुमासं शुद्धस्य चतुर्दिशि पुण्यशालायं ब्राह्मणशतं परिविषितव्यं दिवसे दिवसे च पुण्यशालाय द्वार धारिय साद्यं सक्तुना आढका 3 लवणप्रस्थो 1, शकुप्रस्थो 1, हरित कलापकघटका 3, मल्लका 5 एतं अनाधानं कृतेन दातव्यं बुभुक्षितानं पिवसितानं यत्रात्रं पुण्यं तं देवपुत्रस्य षाहिस्य हुविष्कस्य येषां च देवपुत्रो प्रिय: तेषामपि पुण्यं भवतु सर्वापि च पृथिवीये पुण्ये भवतु अक्षयनीविदिन्नाशकश्रेणीये पुराण शत 500, 50 समितकरश्रेणी (ये च) पुराणशत 500, 50'


अर्थात "सिद्धि हो। 28वें वर्ष में [[पौष मास]] के प्रथम दिन पूर्वदिशा की इस पुण्यशाला के लिए कनसरुकमान के पुत्र खरासलेर तथा वकन के अधीश्वर के द्वारा अक्षयनीवि प्रदत्त की गई। इस अक्षयनीवि से प्रतिमास जितना ब्याज प्राप्त होगा, उससे प्रत्येक [[मास]] की [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[चतुर्दशी]] को पुण्यशाला में सौ [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] का भोजन करवाया जायेगा तथा उसी ब्याज से प्रत्येक दिन पुण्यशाला के द्वार पर 3 आढक सत्तू, 1 प्रस्थ नमक, 1 प्रस्थ शकु, 3 घटक और 5 मल्लक हरी शाकभाजी, ये वस्तुएँ भूखे, प्यासे तथा अनाथ लोगों में बांटी जाएंगी। इसका जो पुण्य होगा, वह देवपुत्र षाहिहुविष्क तथा उसके प्रशंसकों और सारे संसार के लोगों को होगा। अक्षयनीवि में से 550 पुराण शक श्रेणी में तथा 550 पुराण आटा पीसने वालों की श्रेणी में जमा किए गए।'
अर्थात् "सिद्धि हो। 28वें वर्ष में [[पौष मास]] के प्रथम दिन पूर्वदिशा की इस पुण्यशाला के लिए कनसरुकमान के पुत्र खरासलेर तथा वकन के अधीश्वर के द्वारा अक्षयनीवि प्रदत्त की गई। इस अक्षयनीवि से प्रतिमास जितना ब्याज प्राप्त होगा, उससे प्रत्येक [[मास]] की [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[चतुर्दशी]] को पुण्यशाला में सौ [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] का भोजन करवाया जायेगा तथा उसी ब्याज से प्रत्येक दिन पुण्यशाला के द्वार पर 3 आढक सत्तू, 1 प्रस्थ नमक, 1 प्रस्थ शकु, 3 घटक और 5 मल्लक हरी शाकभाजी, ये वस्तुएँ भूखे, प्यासे तथा अनाथ लोगों में बांटी जाएंगी। इसका जो पुण्य होगा, वह देवपुत्र षाहिहुविष्क तथा उसके प्रशंसकों और सारे संसार के लोगों को होगा। अक्षयनीवि में से 550 पुराण शक श्रेणी में तथा 550 पुराण आटा पीसने वालों की श्रेणी में जमा किए गए।'


इस लेख में [[कुषाण काल|कुषाण कालीन]] [[उत्तरी भारत]] के सामाजिक, आर्थिक तथा नैतिक अवस्था पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। इससे सूचित होता है कि उस समय श्रमिकों तथा व्यावसायिकों के संघ बैकों का भी काम करते थे। इस [[अभिलेख]] में तत्कालीन लोगों की नैतिक या धार्मिक प्रवृत्ति की भी झलक मिलती है।
इस लेख में [[कुषाण काल|कुषाण कालीन]] [[उत्तरी भारत]] के सामाजिक, आर्थिक तथा नैतिक अवस्था पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। इससे सूचित होता है कि उस समय श्रमिकों तथा व्यावसायिकों के संघ बैकों का भी काम करते थे। इस [[अभिलेख]] में तत्कालीन लोगों की नैतिक या धार्मिक प्रवृत्ति की भी झलक मिलती है।
Line 12: Line 11:
{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=587|url=}}
{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=587|url=}}
<references/>
<references/>
*ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर |  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}
{{उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 07:46, 7 November 2017

गिरवरपुर मथुरा ज़िला, उत्तर प्रदेश का एक ग्राम है। इस ग्राम से 1929 में एक छोटा प्रस्तर-स्तभं प्राप्त हुआ था। प्राप्त अभिलेख पर कुषाण नरेश महाराज हुविष्क के शासन के 28वें वर्ष का एक संस्कृत अभिलेख उत्कीर्ण है, जो इस प्रकार है-

'सिद्धं संवत्सरे 208 गुर्प्पिय दिवसे अयं पुण्यशाला प्राचिनीकनसरुकमान पुत्रेण खरासलेर पतिना वकनपतिना अक्षयनीवि दिन्नाततो वृद्धितोमासानुमासं शुद्धस्य चतुर्दिशि पुण्यशालायं ब्राह्मणशतं परिविषितव्यं दिवसे दिवसे च पुण्यशालाय द्वार धारिय साद्यं सक्तुना आढका 3 लवणप्रस्थो 1, शकुप्रस्थो 1, हरित कलापकघटका 3, मल्लका 5 एतं अनाधानं कृतेन दातव्यं बुभुक्षितानं पिवसितानं यत्रात्रं पुण्यं तं देवपुत्रस्य षाहिस्य हुविष्कस्य येषां च देवपुत्रो प्रिय: तेषामपि पुण्यं भवतु सर्वापि च पृथिवीये पुण्ये भवतु अक्षयनीविदिन्नाशकश्रेणीये पुराण शत 500, 50 समितकरश्रेणी (ये च) पुराणशत 500, 50'

अर्थात् "सिद्धि हो। 28वें वर्ष में पौष मास के प्रथम दिन पूर्वदिशा की इस पुण्यशाला के लिए कनसरुकमान के पुत्र खरासलेर तथा वकन के अधीश्वर के द्वारा अक्षयनीवि प्रदत्त की गई। इस अक्षयनीवि से प्रतिमास जितना ब्याज प्राप्त होगा, उससे प्रत्येक मास की शुक्ल चतुर्दशी को पुण्यशाला में सौ ब्राह्मणों का भोजन करवाया जायेगा तथा उसी ब्याज से प्रत्येक दिन पुण्यशाला के द्वार पर 3 आढक सत्तू, 1 प्रस्थ नमक, 1 प्रस्थ शकु, 3 घटक और 5 मल्लक हरी शाकभाजी, ये वस्तुएँ भूखे, प्यासे तथा अनाथ लोगों में बांटी जाएंगी। इसका जो पुण्य होगा, वह देवपुत्र षाहिहुविष्क तथा उसके प्रशंसकों और सारे संसार के लोगों को होगा। अक्षयनीवि में से 550 पुराण शक श्रेणी में तथा 550 पुराण आटा पीसने वालों की श्रेणी में जमा किए गए।'

इस लेख में कुषाण कालीन उत्तरी भारत के सामाजिक, आर्थिक तथा नैतिक अवस्था पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। इससे सूचित होता है कि उस समय श्रमिकों तथा व्यावसायिकों के संघ बैकों का भी काम करते थे। इस अभिलेख में तत्कालीन लोगों की नैतिक या धार्मिक प्रवृत्ति की भी झलक मिलती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 587 |


  • ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

संबंधित लेख