Difference between revisions of "फ़तेह सिंह"
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− | + | '''संत फ़तेह सिंह''' (जन्म- [[27 अक्तूबर]] 1911, [[पंजाब]], पश्चिमोत्तर [[भारत]]; मृत्यु- [[30 अक्तूबर]] 1972, [[अमृतसर]], [[पंजाब]]) सिक्ख धार्मिक नेता थे, जो स्वतंत्र भारत में [[सिक्ख]] अधिकारों के अग्रणी आंदोलनकारी बने। | |
− | संत फ़तेह सिंह (जन्म- [[27 अक्तूबर]] 1911, [[पंजाब]], पश्चिमोत्तर [[भारत]]; मृत्यु- [[30 अक्तूबर]] 1972, [[अमृतसर]], [[पंजाब]]) सिक्ख धार्मिक नेता थे, जो स्वतंत्र भारत में [[सिक्ख]] अधिकारों के अग्रणी आंदोलनकारी बने। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
− | फ़तेह सिंह अपना अधिकांश आरंभिक जीवन पश्चिमोत्तर भारत में [[राजस्थान]] के श्रीगंगानगर के आसपास सामाजिक और शैक्षिक गतिविधियों में व्यतीत किया। 1940 के दशक में वह तारा सिंह तथा अन्य सिक्ख नेताओं के साथ | + | फ़तेह सिंह अपना अधिकांश आरंभिक जीवन पश्चिमोत्तर भारत में [[राजस्थान]] के श्रीगंगानगर के आसपास सामाजिक और शैक्षिक गतिविधियों में व्यतीत किया। 1940 के दशक में वह [[तारा सिंह]] तथा अन्य सिक्ख नेताओं के साथ ‘[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' में शामिल हो गए, जो [[ब्रिटेन|ग्रेट ब्रिटेन]] को भारत छोड़ने पर मजबूर किए जाने के लिए प्रतिबद्ध भारतीयों का आंदोलन था। |
==स्वायत्त राज्य== | ==स्वायत्त राज्य== | ||
1947 में भारत को आज़ादी मिल गई और 1955 आते-जाते फ़तेह सिंह और तारा सिंह भारत में [[पंजाबी भाषा|पंजाबी भाषी]] स्वायत्त राज्य पंजाबी सूबा स्थापित करने की वकालत करने लगे, जिसमें सिक्खों की धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई अखंडता अक्षुण्ण रखी जा सके। 1960 के दशक के आंरभिक वर्षों में पंजाब की स्वायत्तता के लिए सिक्ख आंदोलन के नेतृत्व के मुद्दे पर फ़तेह सिंह व तारा सिंह के बीच सत्ता संघर्ष शुरू हुआ। दोनों सिक्ख नेताओं के संघर्ष का अंत 1962 में फ़तेह सिंह की विजय के साथ हुआ, जब उन्होंने तारा सिंह की अकाली पार्टी की प्रतिद्वंद्विता में अपने राजनीतिक दल (अकाली पार्टी) की स्थापना की। अंतत: फ़तेह सिंह समूचे सिक्ख समुदाय के नेता बन गए और कुछ हद तक उनके आंदोलन के कारण 1966 में भारत में एक अलग पंजाबी भाषी राज्य (पंजाब) का निर्माण हुआ। | 1947 में भारत को आज़ादी मिल गई और 1955 आते-जाते फ़तेह सिंह और तारा सिंह भारत में [[पंजाबी भाषा|पंजाबी भाषी]] स्वायत्त राज्य पंजाबी सूबा स्थापित करने की वकालत करने लगे, जिसमें सिक्खों की धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई अखंडता अक्षुण्ण रखी जा सके। 1960 के दशक के आंरभिक वर्षों में पंजाब की स्वायत्तता के लिए सिक्ख आंदोलन के नेतृत्व के मुद्दे पर फ़तेह सिंह व तारा सिंह के बीच सत्ता संघर्ष शुरू हुआ। दोनों सिक्ख नेताओं के संघर्ष का अंत 1962 में फ़तेह सिंह की विजय के साथ हुआ, जब उन्होंने तारा सिंह की अकाली पार्टी की प्रतिद्वंद्विता में अपने राजनीतिक दल (अकाली पार्टी) की स्थापना की। अंतत: फ़तेह सिंह समूचे सिक्ख समुदाय के नेता बन गए और कुछ हद तक उनके आंदोलन के कारण 1966 में भारत में एक अलग पंजाबी भाषी राज्य (पंजाब) का निर्माण हुआ। | ||
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Latest revision as of 14:30, 13 November 2014
sant fateh sianh (janm- 27 aktoobar 1911, panjab, pashchimottar bharat; mrityu- 30 aktoobar 1972, amritasar, panjab) sikkh dharmik neta the, jo svatantr bharat mean sikkh adhikaroan ke agrani aandolanakari bane.
jivan parichay
fateh sianh apana adhikaansh aranbhik jivan pashchimottar bharat mean rajasthan ke shriganganagar ke asapas samajik aur shaikshik gatividhiyoan mean vyatit kiya. 1940 ke dashak mean vah tara sianh tatha any sikkh netaoan ke sath ‘bharat chho do andolan' mean shamil ho ge, jo gret briten ko bharat chho dane par majaboor kie jane ke lie pratibaddh bharatiyoan ka aandolan tha.
svayatt rajy
1947 mean bharat ko azadi mil gee aur 1955 ate-jate fateh sianh aur tara sianh bharat mean panjabi bhashi svayatt rajy panjabi sooba sthapit karane ki vakalat karane lage, jisamean sikkhoan ki dharmik, saanskritik aur bhashaee akhandata akshunn rakhi ja sake. 1960 ke dashak ke aanrabhik varshoan mean panjab ki svayattata ke lie sikkh aandolan ke netritv ke mudde par fateh sianh v tara sianh ke bich satta sangharsh shuroo hua. donoan sikkh netaoan ke sangharsh ka aant 1962 mean fateh sianh ki vijay ke sath hua, jab unhoanne tara sianh ki akali parti ki pratidvandvita mean apane rajanitik dal (akali parti) ki sthapana ki. aantat: fateh sianh samooche sikkh samuday ke neta ban ge aur kuchh had tak unake aandolan ke karan 1966 mean bharat mean ek alag panjabi bhashi rajy (panjab) ka nirman hua.
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tika tippani aur sandarbh
sanbandhit lekh