यामुनाचार्य: Difference between revisions

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'''यामुनाचार्य''' एक प्रसिद्ध विद्वान और नाथमुनि के पौत्र, जिन्होंने 'गीतार्थ-संग्रह, 'सिद्धित्रय', 'महापुरुष-निर्णय' और 'आगम-प्रामाण्य' आदि अनेक ग्रन्थों की रचना करके [[विशिष्टाद्वैत|विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त]] का समर्थन, मायावाद का खण्डन, [[विष्णु|भगवान विष्णु]] की श्रेष्ठता का प्रतिपादन तथा पांचरात्र-सिद्धान्त की वैदिक प्रामाणिकता की स्थापना की। ये [[रामानुजाचार्य]] के परम गुरु थे। यामुनाचार्य ने 'आलवन्दार' स्तोत्र में शरणागत तत्त्व का बहुत ही सुंदर निदर्शन किया है।
'''यामुनाचार्य''' एक प्रसिद्ध विद्वान् और नाथमुनि के पौत्र, जिन्होंने 'गीतार्थ-संग्रह, 'सिद्धित्रय', 'महापुरुष-निर्णय' और 'आगम-प्रामाण्य' आदि अनेक ग्रन्थों की रचना करके [[विशिष्टाद्वैत|विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त]] का समर्थन, मायावाद का खण्डन, [[विष्णु|भगवान विष्णु]] की श्रेष्ठता का प्रतिपादन तथा पांचरात्र-सिद्धान्त की वैदिक प्रामाणिकता की स्थापना की। ये [[रामानुजाचार्य]] के परम गुरु थे। यामुनाचार्य ने 'आलवन्दार' स्तोत्र में शरणागत तत्त्व का बहुत ही सुंदर निदर्शन किया है।


*रामानुजाचार्य, यामुनाचार्य की शिष्य-परम्परा में थे। जब यामुनाचार्य की मृत्यु निकट थी, तब उन्होंने अपने शिष्य द्वारा रामानुज को अपने पास बुलवाया। लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही यामुनाचार्य की मृत्यु हो चुकी थी।
*रामानुजाचार्य, यामुनाचार्य की शिष्य-परम्परा में थे। जब यामुनाचार्य की मृत्यु निकट थी, तब उन्होंने अपने शिष्य द्वारा रामानुज को अपने पास बुलवाया। लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही यामुनाचार्य की मृत्यु हो चुकी थी।

Latest revision as of 14:54, 6 July 2017

यामुनाचार्य एक प्रसिद्ध विद्वान् और नाथमुनि के पौत्र, जिन्होंने 'गीतार्थ-संग्रह, 'सिद्धित्रय', 'महापुरुष-निर्णय' और 'आगम-प्रामाण्य' आदि अनेक ग्रन्थों की रचना करके विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त का समर्थन, मायावाद का खण्डन, भगवान विष्णु की श्रेष्ठता का प्रतिपादन तथा पांचरात्र-सिद्धान्त की वैदिक प्रामाणिकता की स्थापना की। ये रामानुजाचार्य के परम गुरु थे। यामुनाचार्य ने 'आलवन्दार' स्तोत्र में शरणागत तत्त्व का बहुत ही सुंदर निदर्शन किया है।

  • रामानुजाचार्य, यामुनाचार्य की शिष्य-परम्परा में थे। जब यामुनाचार्य की मृत्यु निकट थी, तब उन्होंने अपने शिष्य द्वारा रामानुज को अपने पास बुलवाया। लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही यामुनाचार्य की मृत्यु हो चुकी थी।
  • वहाँ पहुंचने पर रामानुज ने देखा कि यामुनाचार्य की तीन अंगुलियां मुड़ी हुई थीं। इससे उन्होंने समझ लिया कि यामुनाचार्य उनके माध्यम से 'ब्रह्मसूत्र', 'विष्णुसहस्रनाम' और 'अलवन्दारों' जैसे दिव्य सूत्रों की टीका करवाना चाहते हैं।
  • यामुनाचार्य के मृत शरीर को प्रणाम कर रामानुज ने उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने का वचन दिया। उन्होंने आलवन्दार को प्रणाम किया और कहा -"भगवान्! मुझे आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, मैं इन तीनों ग्रन्थों की टीका अवश्य लिखूंगा अथवा लिखवाऊंगा।" रामानुज के यह कहते ही आलवन्दार की तीनों अंगुलियां सीधी हो गईं। इसके बाद श्रीरामानुज ने आलवन्दार के प्रधान शिष्य पेरियनाम्बि से विधिपूर्वक वैष्णव दीक्षा ली और भक्तिमार्ग में प्रवृत्त हो गए।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वैष्णव धर्म का पुनरुद्धार किया संत रामानुज ने (हिन्दी) पांचजन्य.कॉम। अभिगमन तिथि: 17 जुलाई, 2014।

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