दुर्जनसाल: Difference between revisions
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Latest revision as of 10:24, 25 September 2015
दुर्जनसाल 1824 ई. में भरतपुर की गद्दी पर अनधिकृत क़ब्ज़ा करने वाला जाट सरदार था, जबकि वास्तविक अधिकारी मृतक राजा का नाबालिग पुत्र था। कोटा (राजस्थान) के राजा भीमसिंह के तृतीय पुत्र। बड़े भाई अर्जुन सिंह के निस्संतान मर जाने पर इनमें और मझले भाई श्यामसिंह में गद्दी के लिए झगड़ा शुरू हुआ। श्यामसिंह की युद्ध में मृत्यु हो जाने पर इन्हें बड़ा दु:ख हुआ और इन्होंने संवत् 1780 में बड़े आकुल हृदय से राज्यासन पर बैठना स्वीकार किया। संवत् 1800 में जब अंबर नरेश ईश्वरीसिंह ने जाटों और मराठों से मित्रता कर कोटा पर आक्रमण किया तो दुर्जनसाल ने दृढ़ता से उनका मुकाबिला किया। ईश्वरीसिंह को असफल होकर वापस लौट जाना पड़ा। इन्होंने पुरानी शत्रुता भुलाकर उम्मेदसिंह को बूँदी राज्य के सिंहासन पर आरूढ़ कराने का प्रयत्न किया। बाद में संवत् 1810 में जब हर और खीची जातियों में युद्ध हुआ तो उम्मेदसिंह ने दुर्जनसाल की सहायता की। तीन वर्ष बाद इस साहसी राजा की मृत्यु हो गई।[1]
- ब्रिटिश सरकार ने दुर्जनसाल को मान्यता देने से इंकार कर दिया।
- 1826 ई. में लार्ड कोम्बरमियर के नेतृत्व में एक ब्रिटिश भारतीय फ़ौज भरतपुर पर चढ़ाई के लिए भेजी गई।
- क़िले पर अंग्रेज़ों का अधिकार आसानी से हो गया। दुर्जनसाल को क़ैद करके बाहर भेज दिया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-209