भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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<div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016]]</div> | |||
[[भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016|शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र]] | |||
[[चित्र:Mukul-Dvawedi.jpg|right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016]] | |||
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हमारे देश में किसी भी सेना या बल के जवान की जान की क़ीमत कितनी कम है इसका अंदाज़ा तुमको बख़ूबी होगा। हमारे जवान, सन् 62 की चीन की लड़ाई में बिना रसद और हथियारों के लड़ते रहे, कुछ वर्ष पहले मिग-21 जैसे कबाड़ा विमानों में एयरफ़ोर्स के पायलट बेमौत मरते रहे, पड़ोसी देश के दरिंदे हमारे सिपाहियों के सर काटकर ले जाते रहे, कश्मीर के साथ न्याय करने के बहाने भयानक अन्याय को सहते रहे, घटिया स्तर के नेताओं की जान बचाने के लिए अपनी जानें क़ुर्बान करते रहे, इन जवानों की शहादत इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण था कि हमारी सरकारें देश के नौनिहालों को लेकर किस क़दर लापरवाह है। [[भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016|पूरा पढ़ें]] | |||
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<div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2016]]</div> | |||
[[भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2016|हिन्दी के ई-संसार का संचार]] | |||
[[चित्र:Vishwa-Hindi-Patrika-2015.jpg|right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2016]] | |||
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इंटरनेट आज के समाज का पाँचवा स्तम्भ है। गुज़रे ज़माने में समाज पर असर डालने वाले माध्यमों में समाचार पत्रों, पुस्तकों और फ़िल्मों को ज़िम्मेदार समझा जाता रहा है लेकिन आज के समाज को प्रभावित करने में इंटरनेट की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो गई है। मोबाइल ‘नेटवर्क’ के लिए गली-मुहल्ले-देहात की भाषा में ‘नटवर’ शब्द लोकप्रिय है। हमारे घर में खाना बनाने वाली के पास दो स्मार्टफ़ोन हैं लेकिन उसका स्मार्टफ़ोन उसके नौकरी में उसका सहायक नहीं है। जिसका कारण है कि स्मार्टफ़ोन को मनोरंजन को वरीयता देकर बनाया गया है। होना यह चाहिए कि कंप्यूटर और स्मार्टफ़ोन प्रयोक्ता की ज़रूरत के हिसाब से बनाया जाए जिसमें कि वरीयता उसकी नौकरी या कामकाज हो… [[भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2016|पूरा पढ़ें]] | |||
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<div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 5 अक्टूबर 2015]]</div> | |||
[[भारतकोश सम्पादकीय 5 अक्टूबर 2015|ये तेरा घर ये मेरा घर]] | |||
[[चित्र:Kapoor-Family-01.jpg|right|120px|link=भारतकोश सम्पादकीय 5 अक्टूबर 2015]] | |||
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जहाँ तक नारी विमर्श की बात है तो निश्चित रूप से गृहस्थ जीवन में संयुक्त परिवार एक गृहणी के लिए बंधनों से भरे रहे होंगे। नारी स्वतंत्रता जैसी स्थिति इन परिवारों में कितनी संभावना लेकर जीवित रहती होगी यह कहना कोई कठिन काम नहीं है। संयुक्त परिवार की व्यवस्था भारत के एक-आध राज्य को छोड़कर सामान्यत: पुरुष प्रधान थी। संयुक्त परिवार, एक परिवार न होकर एक कुटुंब होता था। जिसका मुखिया अपने या परंपराओं द्वारा निष्पादित नियमों को कुटुंब के सभी सदस्यों पर लागू करता था। … [[भारतकोश सम्पादकीय 5 अक्टूबर 2015|पूरा पढ़ें]] | |||
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<div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2015]]</div> | |||
[[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2015|अभिभावक]] | |||
[[चित्र:Parents.png|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2015]] | |||
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एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी, 6 लाख 38 हज़ार से अधिक गाँवों और क़रीब 18 सौ नगर-क़स्बों वाले हमारे देश में क़रीब 35 करोड़ छात्राएँ-छात्र हैं। जो 16 लाख से अधिक शिक्षण संस्थानों और 700 विश्वविद्यालयों में समाते हैं। दु:खद यह है कि विश्व के मुख्य 100 शिक्षण संस्थानों में किसी भी भारतीय शिक्षण संस्थान का नाम-ओ-निशां नहीं है। [[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2015|पूरा पढ़ें]] | |||
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[[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|भारत की जाति-वर्ण व्यवस्था]] | |||
[[चित्र:Bharat-Ek-Khoj.jpg|right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015]] | |||
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एक राजा जिसका नाम चंद्रप्रभा था, [[पिण्ड (श्राद्ध)|पिंडदान]] करने नदी के किनारे पहुँचा। पिंड को हाथ में लेकर वह नदी में प्रवाहित करने को ही था कि नदी से तीन हाथ पिंड लेने को निकले। राजा आश्चर्य में पड़ गया। ब्राह्मण ने कहा: राजन! इन तीन हाथों में से एक हाथ किसी सूली पर चढ़ाए व्यक्ति का है क्योंकि उसकी कलाई पर रस्सी से बांधने का चिह्न बना है, दूसरा हाथ किसी ब्राह्मण का है क्योंकि उसके हाथ में दूब (घास) है और तीसरा किसी राजा का है क्योंकि उसका हाथ राजसी प्रतीत होता है साथ ही उसकी उंगली में राजमुद्रिका है।” [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|पूरा पढ़ें]] | |||
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<div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 15 जनवरी 2015]]</div> | |||
[[भारतकोश सम्पादकीय 15 जनवरी 2015|भूली-बिसरी कड़ियों का भारत]] | |||
[[चित्र:Aryabhata.jpg|right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 15 जनवरी 2015]] | |||
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आइए [[अशोक]] के काल याने तीसरी चौथी शताब्दी ईसा पूर्व चलते हैं, देखें क्या चल रहा है! महर्षि [[पाणिनि]] विश्व प्रसिद्ध संस्कृत व्याकरण के ग्रंथ [[अष्टाध्यायी]] को पूरा करने में निमग्न हैं। ये उस तरफ़ कौन बैठा है ? ये तो महर्षि [[पिंगल महर्षि|पिंगल]] हैं पाणिनि के छोटे भाई, इनकी गणित में रुचि है, संख्याओं से खेलते रहते हैं और शून्य की खोज करके ग्रंथों की रचना कर रहे हैं। साथ ही कंप्यूटर में प्रयुक्त होने वाले बाइनरी सिस्टम को भी खोज कर अपने भुर्जपत्रों में सहेज रहे हैं।… [[भारतकोश सम्पादकीय 15 जनवरी 2015|पूरा पढ़ें]] | |||
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[[भारतकोश सम्पादकीय 31 दिसम्बर 2012|यमलोक में एक निर्भय अमानत 'दामिनी']] | [[भारतकोश सम्पादकीय 31 दिसम्बर 2012|यमलोक में एक निर्भय अमानत 'दामिनी']] | ||
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मान लीजिए कोई लड़की यदि बलात्कार का विरोध नहीं करती है... वह नियति मान कर अपनी जान की रक्षा के लिए चुपचाप बिना किसी विरोध के बलात्कार में सहमति दे देती है, जिससे कि कम से कम मार खाने से तो बच जाय, और वहाँ पुलिस आ जाती है तो उस लड़की को निश्चित ही | मान लीजिए कोई लड़की यदि बलात्कार का विरोध नहीं करती है... वह नियति मान कर अपनी जान की रक्षा के लिए चुपचाप बिना किसी विरोध के बलात्कार में सहमति दे देती है, जिससे कि कम से कम मार खाने से तो बच जाय, और वहाँ पुलिस आ जाती है तो उस लड़की को निश्चित ही वेश्यावृत्ति के जुर्म में गिरफ़्तार किया जाएगा... क्या वह लड़की यह साबित कर पाएगी कि वह वेश्या नहीं है ? [[भारतकोश सम्पादकीय 31 दिसम्बर 2012|...पूरा पढ़ें]] | ||
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[[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|शाप और प्रतिज्ञा]] | [[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|शाप और प्रतिज्ञा]] | ||
"आपका शाप मुझे तब तक हानि नहीं पहुँचा सकता माते! जब तक कि मैं उसे स्वीकार न कर लूँ। मैं साक्षात् ईश्वर हूँ और आप नश्वर, मृत्युलोक की शरीरधारी स्त्री मात्र, तदैव आपका शाप, द्वापर युग में अवतरित मेरे सोलह अंशों के पूर्णावतार, | "आपका शाप मुझे तब तक हानि नहीं पहुँचा सकता माते! जब तक कि मैं उसे स्वीकार न कर लूँ। मैं साक्षात् ईश्वर हूँ और आप नश्वर, मृत्युलोक की शरीरधारी स्त्री मात्र, तदैव आपका शाप, द्वापर युग में अवतरित मेरे सोलह अंशों के पूर्णावतार, अर्थात् समस्त सोलह कलाओं से युक्त अवतार, 'कृष्ण' को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होगा, फिर भी आप निश्चिंत रहें, मेरी कोई आयोजना ऐसी नहीं जिससे मैं अपनी उपस्थिति को एक माँ से श्रेष्ठ स्थापित करने का प्रयत्न करूँ" [[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|...पूरा पढ़ें]] | ||
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[[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|बस एक चान्स !]] | [[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|बस एक चान्स !]] | ||
इस बात का पता 'चंद लोगों' को ही था कि छोटे पहलवान दुनिया का सबसे अक़्लमंद लड़का है। इन 'चंद लोगों' में थे- एक तो छोटे पहलवान ख़ुद और बाक़ी उसके माता-पिता और परिवारी जन। बाहर की दुनिया से छोटे का ज़्यादा सम्पर्क हुआ नहीं था। इसी दौर में उसे यह भी महसूस होने लगा कि वह दुनिया का महानतम | इस बात का पता 'चंद लोगों' को ही था कि छोटे पहलवान दुनिया का सबसे अक़्लमंद लड़का है। इन 'चंद लोगों' में थे- एक तो छोटे पहलवान ख़ुद और बाक़ी उसके माता-पिता और परिवारी जन। बाहर की दुनिया से छोटे का ज़्यादा सम्पर्क हुआ नहीं था। इसी दौर में उसे यह भी महसूस होने लगा कि वह दुनिया का महानतम विद्वान् भी है... [[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|पूरा पढ़ें]] | ||
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[[चित्र:Sea-pirate.jpg|100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012]] | [[चित्र:Sea-pirate.jpg|100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012]] | ||
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[[भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012|एक | [[भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012|एक महान् डाकू की शोक सभा]] | ||
वो ज़माना ही ऐसा था... उस ज़माने में डक़ैती डालने में एक लगन होती थी... एक रचनात्मक दृष्टिकोण होता था। जो आज बहुत ही कम देखने में आता है। | वो ज़माना ही ऐसा था... उस ज़माने में डक़ैती डालने में एक लगन होती थी... एक रचनात्मक दृष्टिकोण होता था। जो आज बहुत ही कम देखने में आता है। | ||
मुझे भी कई बार मूलाजी के साथ डक़ैतियों पर जाने का अवसर मिला। आ हा हा! क्या डक़ैती डालते थे मूलाजी। कम से कम ख़र्च में एक सुंदर डक़ैती डालना उनके बाँए हाथ का खेल था। [[भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012|पूरा पढ़ें]] | मुझे भी कई बार मूलाजी के साथ डक़ैतियों पर जाने का अवसर मिला। आ हा हा! क्या डक़ैती डालते थे मूलाजी। कम से कम ख़र्च में एक सुंदर डक़ैती डालना उनके बाँए हाथ का खेल था। [[भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012|पूरा पढ़ें]] | ||
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[[भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012|छापाख़ाने का आभार]] | [[भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012|छापाख़ाने का आभार]] | ||
मिस्र में राजवंशों की शुरुआत आज से 5 हज़ार वर्ष पहले ही हो गयी थी। मशहूर फ़राउन रॅमसी (ये वही रॅमसी या रामासेस है जो मूसा के समय में था) का नाम पढ़ने में भी यही कठिनाई सामने आयी। कॉप्टिक भाषा (मिस्री ईसाइयों की भाषा) में इसका अर्थ है- रे या रा (सूर्य) का म-स (बेटा) | मिस्र में राजवंशों की शुरुआत आज से 5 हज़ार वर्ष पहले ही हो गयी थी। मशहूर फ़राउन रॅमसी (ये वही रॅमसी या रामासेस है जो मूसा के समय में था) का नाम पढ़ने में भी यही कठिनाई सामने आयी। कॉप्टिक भाषा (मिस्री ईसाइयों की भाषा) में इसका अर्थ है- रे या रा (सूर्य) का म-स (बेटा) अर्थात् सूर्य का पुत्र। सोचने वाली बात ये है कि भगवान 'राम' का नाम भी इसी प्रकार का है और वे भी सूर्य वंशी ही हैं। अगर ये महज़ एक इत्तफ़ाक़ है तो बेहद दिलचस्प इत्तफ़ाक़ है। नाम कोई भी रहा हो रेमसी, इमहोतेप या टॉलेमी; स्वरों के बिना उन्हें सही पढ़ना बहुत कठिन था। [[भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012|...पूरा पढ़ें]] | ||
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भारतकोश सम्पादकीय लेख सूची
शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016 हमारे देश में किसी भी सेना या बल के जवान की जान की क़ीमत कितनी कम है इसका अंदाज़ा तुमको बख़ूबी होगा। हमारे जवान, सन् 62 की चीन की लड़ाई में बिना रसद और हथियारों के लड़ते रहे, कुछ वर्ष पहले मिग-21 जैसे कबाड़ा विमानों में एयरफ़ोर्स के पायलट बेमौत मरते रहे, पड़ोसी देश के दरिंदे हमारे सिपाहियों के सर काटकर ले जाते रहे, कश्मीर के साथ न्याय करने के बहाने भयानक अन्याय को सहते रहे, घटिया स्तर के नेताओं की जान बचाने के लिए अपनी जानें क़ुर्बान करते रहे, इन जवानों की शहादत इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण था कि हमारी सरकारें देश के नौनिहालों को लेकर किस क़दर लापरवाह है। पूरा पढ़ें |
हिन्दी के ई-संसार का संचार right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2016 इंटरनेट आज के समाज का पाँचवा स्तम्भ है। गुज़रे ज़माने में समाज पर असर डालने वाले माध्यमों में समाचार पत्रों, पुस्तकों और फ़िल्मों को ज़िम्मेदार समझा जाता रहा है लेकिन आज के समाज को प्रभावित करने में इंटरनेट की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो गई है। मोबाइल ‘नेटवर्क’ के लिए गली-मुहल्ले-देहात की भाषा में ‘नटवर’ शब्द लोकप्रिय है। हमारे घर में खाना बनाने वाली के पास दो स्मार्टफ़ोन हैं लेकिन उसका स्मार्टफ़ोन उसके नौकरी में उसका सहायक नहीं है। जिसका कारण है कि स्मार्टफ़ोन को मनोरंजन को वरीयता देकर बनाया गया है। होना यह चाहिए कि कंप्यूटर और स्मार्टफ़ोन प्रयोक्ता की ज़रूरत के हिसाब से बनाया जाए जिसमें कि वरीयता उसकी नौकरी या कामकाज हो… पूरा पढ़ें |
ये तेरा घर ये मेरा घर right|120px|link=भारतकोश सम्पादकीय 5 अक्टूबर 2015 जहाँ तक नारी विमर्श की बात है तो निश्चित रूप से गृहस्थ जीवन में संयुक्त परिवार एक गृहणी के लिए बंधनों से भरे रहे होंगे। नारी स्वतंत्रता जैसी स्थिति इन परिवारों में कितनी संभावना लेकर जीवित रहती होगी यह कहना कोई कठिन काम नहीं है। संयुक्त परिवार की व्यवस्था भारत के एक-आध राज्य को छोड़कर सामान्यत: पुरुष प्रधान थी। संयुक्त परिवार, एक परिवार न होकर एक कुटुंब होता था। जिसका मुखिया अपने या परंपराओं द्वारा निष्पादित नियमों को कुटुंब के सभी सदस्यों पर लागू करता था। … पूरा पढ़ें |
अभिभावक right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2015 एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी, 6 लाख 38 हज़ार से अधिक गाँवों और क़रीब 18 सौ नगर-क़स्बों वाले हमारे देश में क़रीब 35 करोड़ छात्राएँ-छात्र हैं। जो 16 लाख से अधिक शिक्षण संस्थानों और 700 विश्वविद्यालयों में समाते हैं। दु:खद यह है कि विश्व के मुख्य 100 शिक्षण संस्थानों में किसी भी भारतीय शिक्षण संस्थान का नाम-ओ-निशां नहीं है। पूरा पढ़ें |
भारत की जाति-वर्ण व्यवस्था right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015 एक राजा जिसका नाम चंद्रप्रभा था, पिंडदान करने नदी के किनारे पहुँचा। पिंड को हाथ में लेकर वह नदी में प्रवाहित करने को ही था कि नदी से तीन हाथ पिंड लेने को निकले। राजा आश्चर्य में पड़ गया। ब्राह्मण ने कहा: राजन! इन तीन हाथों में से एक हाथ किसी सूली पर चढ़ाए व्यक्ति का है क्योंकि उसकी कलाई पर रस्सी से बांधने का चिह्न बना है, दूसरा हाथ किसी ब्राह्मण का है क्योंकि उसके हाथ में दूब (घास) है और तीसरा किसी राजा का है क्योंकि उसका हाथ राजसी प्रतीत होता है साथ ही उसकी उंगली में राजमुद्रिका है।” पूरा पढ़ें |
भूली-बिसरी कड़ियों का भारत right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 15 जनवरी 2015 आइए अशोक के काल याने तीसरी चौथी शताब्दी ईसा पूर्व चलते हैं, देखें क्या चल रहा है! महर्षि पाणिनि विश्व प्रसिद्ध संस्कृत व्याकरण के ग्रंथ अष्टाध्यायी को पूरा करने में निमग्न हैं। ये उस तरफ़ कौन बैठा है ? ये तो महर्षि पिंगल हैं पाणिनि के छोटे भाई, इनकी गणित में रुचि है, संख्याओं से खेलते रहते हैं और शून्य की खोज करके ग्रंथों की रचना कर रहे हैं। साथ ही कंप्यूटर में प्रयुक्त होने वाले बाइनरी सिस्टम को भी खोज कर अपने भुर्जपत्रों में सहेज रहे हैं।… पूरा पढ़ें |
‘ब्रज’ एक अद्भुत संस्कृति right|120px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 23 सितम्बर 2014 ब्रज का ज़िक्र आते ही जो सबसे पहली आवाज़ हमारी स्मृति में आती है, वह है घाटों से टकराती हुई यमुना की लहरों की आवाज़… कृष्ण के साथ-साथ खेलकर यमुना ने बुद्ध और महावीर के प्रवचनों को साक्षात उन्हीं के मुख से अपनी लहरों को थाम कर सुना… फ़ाह्यान की चीनी भाषा में कहे गये मो-तो-लो (मोरों का नृत्य स्थल ‘मथुरा’) को भी समझ लिया और प्लिनी के ‘जोमनेस’ उच्चारण को भी… यमुना की ये लहरें रसख़ान और रहीम के दोहों पर झूमी हैं… सूर और मीरा के पदों पर नाची हैं… पूरा पढ़ें |
टोंटा गॅन्ग का सी.ई.ओ. right|120px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 30 जुलाई 2014 अरे भाई पुलिस को पहले से पता होना चाहिए कि तुम कब, कहाँ और किस टाइम पर वारदात करने वाले हो... ये क्या कि चाहे जब मुँह उठाकर चल दिए वारदात करने..." टनकिया ने अफ़सोस ज़ाहिर किया और थोड़ा रुककर फिर दार्शनिक अंदाज़ में बोला- "अगर क्रिमनल, पुलिस को बता कर क्राइम करे तो भई हम भी बीस तरह की फ़ॅसेलिटी दे सकते लेकिन क्या करें समझ में ही नहीं आता आजकल के नए लड़कों को... देख लेना सरकार को ही एकदिन ऐसा क़ानून बनाना पड़ेगा... हमें भी तो राइट ऑफ़ इनफ़ॉरमेशन का फ़ायदा मिलना चाहिए। ...पूरा पढ़ें |
जनतंत्र की जाति right|120px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 27 मई 2014 खेल भावना से राजनीति करना एक स्वस्थ मस्तिष्क के विवेक पूर्ण होने की पहचान है लेकिन राजनीति को खेल समझना मस्तिष्क की अपरिपक्वता और विवेक हीनता का द्योतक है। राजनीति को खेल समझने वाला नेता मतदाता को खिलौना और लोकतंत्र को जुआ खेलने की मेज़ समझता है। ...पूरा पढ़ें |
असंसदीय संसद right|120px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 1 मार्च 2014 "चुल्लू भर पानी में डूब मरो... ये असंसदीय है... सदन में आप असंसदीय शब्दों और वाक्यों का प्रयोग नहीं कर पाएँगे तो आपको वहाँ बोलना है कि 'कटोरी भर पानी में डुबकी ले कर प्राण त्याग दो' इस तरह आपने अपनी बात भी कह दी और आप असंसदीय भाषा बोलने से भी बच गए। असंसदीय शब्दों में अनेक मुहावरे आते हैं, जैसे 'भैंस के आगे बीन बजाना' आप चाहें तो कह सकते हैं कि 'भैंसे की पत्नी के आगे संगीत कार्यक्रम करना'।" ...पूरा पढ़ें |
किसी देश का गणतंत्र दिवस right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 28 जनवरी 2014 हमने नदियों का भी पूरा ख़याल रखा है। लोग कुछ समय पहले तक नदियों का पानी पी पीकर उनको सुखाए दे रहे थे। उसमें नहाते भी थे और उसके पानी को बर्तनों में भरकर भी ले जाते थे। इस ग़लत परम्परा के चलते नदियाँ सूखने लगीं। हमने छोटे-बड़े शहरों के पूरे मलबे-कचरे को इन नदियों में डलवाया जिससे इनका पानी पीने तो क्या नहाने लायक़ भी नहीं रहा। नदियों की रक्षा के लिए हमने करोड़ों-अरबों रुपया ख़र्च करके यह योजना बनाई जो आज सुचारू रूप से चल रही है। ...पूरा पढ़ें |
right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 22 दिसम्बर 2013 ताऊ का इलाज "कछुआ भैया - कछुआ भैया, तेरे ताऊ की तबियत बहुत ख़राब है... अस्पताल से ख़बर आई है..." |
right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 8 नवम्बर 2013 कभी ख़ुशी कभी ग़म भारत में अभी तक शिक्षार्थियों का पढ़ाई लिए नौकरी करना या पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी करने का प्रचलन उतना नहीं है जितना कि पश्चिमी देशों में है। इन शिक्षार्थियों को होटलों या रेस्तराओं में काम करने में शर्म महसूस होती है। यदि सरकार की ओर से इन शिक्षार्थियों को एक बिल्ला (Badge) दिया जाय जो इनके शिक्षार्थी-कर्मी होने की पहचान हो तो लोग इस बिल्ले को देखकर इनसे अपेक्षाकृत अच्छा व्यवहार करेंगे। जब सम्मान पूर्ण व्यवहार होगा तो शिक्षार्थियों को किसी भी नौकरी में लज्जा का अनुभव नहीं होगा। ...पूरा पढ़ें |
right|80px|link=भारतकोश सम्पादकीय 21 सितम्बर 2013 समाज का ऑपरेटिंग सिस्टम ऑपरेटिंग सिस्टम के नये से नये रूपांतरण (वर्ज़न) लाना और लगातार सॉफ़्टवेयर अपडेट का आना ही माइक्रोसॉफ़्ट की सफलता का राज़ है। ज़माना अपडेट्स का है। न्यायपालिका और कार्यपालिका भी समाज के ऑपरेटिंग सिस्टम हैं। जिनको समय-समय पर नये रूपान्तरण (वर्ज़न) और अद्यतन (अपडेट) की आवश्यकता होती है। ...पूरा पढ़ें |
border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 11 अगस्त 2013 ग़रीबी का दिमाग़ तम्बू में सन्नाटा हो गया, सब एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। जब कोई कुछ नहीं बोला तो पहले ग़रीब की हाईस्कूल पास पत्नी अचानक बोल पड़ी- |
border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 9 जुलाई 2013 कल आज और कल अक्सर नारद जी ही अपने अनूठे प्रश्नों के लिए प्रसिद्ध हैं, तो नारद जी ने भगवान कृष्ण से पूछा- |
border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 जून 2013 घूँघट से मरघट तक छोटे पहलवान: "एक किलो मैदा में कितनी कचौड़ी निकाल रहे हो ?" |
border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 मई 2013 सभ्य जानवर शंकर अपने खेत की मेंड़ पर जाकर बैठ गया और खेत के बीच से होकर जाने वालों को रोकने लगा। लोगों को सबक़ सिखाने के लिए, उन्हें खेत में घुसने से पहले ही नहीं रोकता था बल्कि पहले तो राहगीर को आधे रास्ते तक चला जाने देता था फिर उसे आवाज़ देकर वापस बुलाता और कान पकड़वा कर उठक-बैठक करवाता और हिदायत देता- |
border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 15 अप्रॅल 2013 वोटरानी और वोटर "अरे तो कौन सा दस-बीस साल पहले मरा है ? अभी छ: महीने पहले ही तो मरा है, एकदम से इतनी जल्दी वोट थोड़े ही ख़तम होता है... एक-दो साल तो चलेगा ही। हम भी पढ़े-लिखे हैं साहब ! दिखाओ कौन से क़ानून में लिखा है कि मरा आदमी वोट नहीं डालेगा... ये हिन्दुस्तान है बाबूजी हिन्दुस्तान... सबको बराबर का हक़ है ज़िन्दा को भी और मरे हुए को भी... डेमोकिरेसी है, डेमोकिरेसी... सब एक बराबर चाहे आदमी-औरत, बड़ा-छोटा, राजा-भिखारी... और चाहे ज़िन्दा चाहे मरा... समझे" छोटे पहलवान ने अधिकारी को समझाया। ...पूरा पढ़ें |
border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013 कबीर का कमाल दुनिया की रीत निराली है। लोग 'प्रयासों' को नहीं, 'परिणामों' को देखकर शाबाशी देते हैं। 'पश्चाताप' को नहीं, 'प्रायश्चित' को सराहते हैं। 'खेती' को नहीं, 'फ़सल' को देखकर मुग्ध होते हैं। सुन्दरता की प्रशंसा 'फूल' की होती है न कि 'बीज' की। इसलिए कबीर के इस क़िस्से से हम यह समझ सकते हैं कि कबीर ने किसी को सफ़ाई नहीं दी कि वह स्त्री झूठ बोल रही है बल्कि उस स्त्री के मुख से ही सच कहलवा लिया और वह भी पूर्णत: अहिंसक तरीक़े से। ...पूरा पढ़ें |
right|120px|link=भारतकोश सम्पादकीय 22 फ़रवरी 2013 प्रतीक्षा की सोच सकारात्मक सोच का व्यक्ति बनने के बहुत उपाय हैं जिनमें से एक है 'धैर्य'। धैर्य को समझना ज़रूरी है। यदि हम बिना बैचैन हुए किसी का इंतज़ार कर सकते हैं तो हम धैर्यवान हैं। सहज होकर, सानंद प्रतीक्षा करना, सबसे आवश्यक गुण है। यदि यह गुण हमारे भीतर नहीं है तो हमें यह योग्यता पैदा करनी चाहिए। प्रतीक्षा किसी की भी हो सकती है; किसी व्यक्ति की, किसी सफलता की या किसी नतीजे की। प्रतीक्षा करने में बेचैनी होने से हमारी सोच का पता चलता है। प्रतीक्षा करने में यदि बेचैनी होती है तो यह सोच नकारात्मक सोच है। ...पूरा पढ़ें |
right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 25 जनवरी 2013 अहम का वहम हमारे आस-पास अक्सर ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनमें कोई न कोई विशेष प्रतिभा होती है लेकिन वे सफल नहीं होते और भाग्य को दोष देते मिलते हैं। जबकि वे यह नहीं जान पाते कि उनकी सफलता का रास्ता रोकने के लिए अहंकार हर समय उनके मस्तिष्क पर शासन करता है। प्रतिभा को निखारने के लिए हमें अपने ऊपर से ध्यान हटाना पड़ता है और उसके बाद ही हमारा ध्यान प्रतिभा को निखारने में लगता है। कोई जन्म से 'रहमान' या 'गुलज़ार' नहीं होता ...पूरा पढ़ें |
right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 31 दिसम्बर 2012 यमलोक में एक निर्भय अमानत 'दामिनी' मान लीजिए कोई लड़की यदि बलात्कार का विरोध नहीं करती है... वह नियति मान कर अपनी जान की रक्षा के लिए चुपचाप बिना किसी विरोध के बलात्कार में सहमति दे देती है, जिससे कि कम से कम मार खाने से तो बच जाय, और वहाँ पुलिस आ जाती है तो उस लड़की को निश्चित ही वेश्यावृत्ति के जुर्म में गिरफ़्तार किया जाएगा... क्या वह लड़की यह साबित कर पाएगी कि वह वेश्या नहीं है ? ...पूरा पढ़ें |
right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 30 अक्टूबर 2012 उसके सुख का दु:ख ईर्ष्या के बारे में सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि ईर्ष्या 'की' नहीं जाती ईर्ष्या 'हो' जाती है। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होता जो सोच समझकर ईर्ष्या कर पाये। ईर्ष्या मानव के सहज स्वभाव के मूल में निहित है। यह प्रकृति की देन है। इसी तरह ईर्ष्या सामाजिक शिक्षा या संस्था नहीं है, जिसके लिए किसी को प्रशिक्षित किया जा सके। ...पूरा पढ़ें |
right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 22 सितम्बर 2012 चौकोर फ़ुटबॉल |
right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012 शाप और प्रतिज्ञा |
right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 21 अगस्त 2012 यादों का फंडा |
border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 14 अगस्त 2012 ईमानदारी की क़ीमत |
border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 31 जुलाई 2012 मौसम है ओलम्पिकाना |
border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 23 जुलाई 2012 50-50 आधा खट्टा आधा मीठा |
border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 16 जुलाई 2012 शर्मदार की मौत |
border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012 मानसून का शंख |
border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 1 जुलाई 2012 कहता है जुगाड़ सारा ज़माना |
border|right|110px|link=भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012 विज्ञापन लोक |
border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 17 जून 2012 चमचारथी |
border|right|120px|link=भारतकोश सम्पादकीय 10 जून 2012 लक्ष्य और साधना |
border|right|120px|link=भारतकोश सम्पादकीय 2 जून 2012 लेकिन एक टेक और लेते हैं |
right|border|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 26 मई 2012 कुछ तो कह जाते |
right|border|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012 दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान |
right|border|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 12 मई 2012 काम की खुन्दक |
right|border|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012 बस एक चान्स ! |
right|border|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 28 अप्रॅल 2012 मैं तो एक भूत हूँ |
सफलता का शॉर्ट-कट |
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 14 अप्रॅल 2012 एक महान् डाकू की शोक सभा |
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 7 अप्रॅल 2012 सत्ता का रंग |
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 31 मार्च 2012 उकसाव का इमोशनल अत्याचार |
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 24 मार्च 2012 गुड़ का सनीचर |
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2012 ज़माना |
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 10 मार्च 2012 राज की नीति |
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2012 कौऔं का वायरस |
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012 छापाख़ाने का आभार |
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 18 फ़रवरी 2012 बात का घाव |
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 11 फ़रवरी 2012 चिल्ला जाड़ा |