तालवन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "तत्व " to "तत्त्व ")
No edit summary
Line 3: Line 3:


यह वही तालवन है, जहाँ श्री [[कृष्ण]] और श्री [[बलराम]] जी ने यादवों के हितार्थ और सखाओं के विनोदार्थ [[धेनुकासुर का वध]] किया था ।   
यह वही तालवन है, जहाँ श्री [[कृष्ण]] और श्री [[बलराम]] जी ने यादवों के हितार्थ और सखाओं के विनोदार्थ [[धेनुकासुर का वध]] किया था ।   
[[मधुवन]] से दक्षिण पश्चिम में लगभग ढाई मील की दूरी पर यह तालवन स्थित है । यहाँ ताल वृक्षों पर भरपूर एक बड़ा ही सुहावना एवं रमणीय वन था दुष्ट [[कंस]] ने अपने एक अनुयायी धेनुकासुर को उस वन की रक्षा के लिए नियुक्त कर रखा था वह दैत्य बहुत सी पत्नियों और पुत्रों के साथ बड़ी सावधानी से इस वन की रक्षा करता था। अत: साधारण लोगों के लिए यह वन अगम्य था । केवल महाराज कंस एवं उसके अनुयायी ही मधुर तालफलों का रसास्वादन करते थे ।
[[मधुवन]] से दक्षिण पश्चिम में लगभग ढाई मील की दूरी पर यह तालवन स्थित है । यहाँ ताल वृक्षों पर भरपूर एक बड़ा ही सुहावना एवं रमणीय वन था दुष्ट [[कंस]] ने अपने एक अनुयायी धेनुकासुर को उस वन की रक्षा के लिए नियुक्त कर रखा था वह दैत्य बहुत सी पत्नियों और पुत्रों के साथ बड़ी सावधानी से इस वन की रक्षा करता था। अत: साधारण लोगों के लिए यह वन [[अगम्य]] था । केवल महाराज कंस एवं उसके अनुयायी ही मधुर तालफलों का रसास्वादन करते थे ।
----  
----  
[[स्कन्द पुराण]]<ref>अहो तालवनं पुण्यं यत्र तालैर्हतो सुर:। हिताय यादवानाञ्च आत्मक्रीड़नकाय च।। [[स्कन्द पुराण]]</ref> और श्रीमद् [[भागवत पुराण]]<ref>एवं सुहृद्वच: श्रुत्वा सुहृत्प्रियचकीर्षया। प्रहस्य जग्मतुर्गोपैर्वृतो तालवनं प्रभू ।। भागवत पुराण</ref> में भी इसका उल्लेख है।<br />
[[स्कन्द पुराण]]<ref>अहो तालवनं पुण्यं यत्र तालैर्हतो सुर:। हिताय यादवानाञ्च आत्मक्रीड़नकाय च।। [[स्कन्द पुराण]]</ref> और श्रीमद् [[भागवत पुराण]]<ref>एवं सुहृद्वच: श्रुत्वा सुहृत्प्रियचकीर्षया। प्रहस्य जग्मतुर्गोपैर्वृतो तालवनं प्रभू ।। भागवत पुराण</ref> में भी इसका उल्लेख है।<br />

Revision as of 12:58, 25 January 2011

  1. ब्रज का एक वन जहाँ श्रीकृष्ण ग्वालों के साथ कड़ार्थ जाते थे।[1]
  2. द्वारका के दाक्षिण भाग में स्थित लतावेष्ट नामक पर्वत के चतुर्दिक् बने हुए उद्यानों में से एक।[2] यहाँ तालवन निवासियों का उल्लेख आंध्र और कलिंग वासियों के बीच में है जिससे जान पड़ता है कि यह स्थान पूर्वी समुद्र तट पर स्थित रहा होगा।

यह वही तालवन है, जहाँ श्री कृष्ण और श्री बलराम जी ने यादवों के हितार्थ और सखाओं के विनोदार्थ धेनुकासुर का वध किया था । मधुवन से दक्षिण पश्चिम में लगभग ढाई मील की दूरी पर यह तालवन स्थित है । यहाँ ताल वृक्षों पर भरपूर एक बड़ा ही सुहावना एवं रमणीय वन था दुष्ट कंस ने अपने एक अनुयायी धेनुकासुर को उस वन की रक्षा के लिए नियुक्त कर रखा था वह दैत्य बहुत सी पत्नियों और पुत्रों के साथ बड़ी सावधानी से इस वन की रक्षा करता था। अत: साधारण लोगों के लिए यह वन अगम्य था । केवल महाराज कंस एवं उसके अनुयायी ही मधुर तालफलों का रसास्वादन करते थे ।


स्कन्द पुराण[3] और श्रीमद् भागवत पुराण[4] में भी इसका उल्लेख है।
एक दिन की बात है सखाओं के साथ कृष्ण और बलदेव गोचारण करते हुए इधर ही चले आये । सखाओं को बड़ी भूख लगी थी । उन्होंने कृष्ण बलदेव को क्षुधारूपी असुर से अपनी रक्षा के लिए निवेदन किया । उन्होंने यह भी बतलाया कि कहीं पास से ही पके हुए मधुर तालफलों की सुगन्ध आ रही है । यह सुनकर कृष्ण और बलदेव सखाओं को साथ लेकर तालवन पहुँचे , बलदेवजी ने पके हुए फलों से लदे हुए एक पेड़ को नीचे से हिला दिया, जिससे पके हुए फल थप-थप कर पृथ्वी पर गिरने लगे । ग्वाल बाल आनन्द से उछलने लगे । इतने में ही फलों के गिरने का शब्द सुनकर धेनुकासुर ने अपने अनुचारों के साथ कृष्ण और बलदेव पर अपने पिछले पैरों से जोरों से आक्रमण किया । बलदेव प्रभु ने अवलीलापूर्वक महापराक्रमी धेनुकासुर के पिछले पैरों को पकड़कर उसे आकाश में घुमाया तथा एक बृहत ताल वृक्ष के ऊपर पटक दिया। साथ ही साथ वह असुर मल–मूत्र त्याग करता हुआ मारा गया । इधर कृष्ण ने भी धेनुकासुर अनुचरों का वध करना आरम्भ कर दिया । इस प्रकार सारा तालवन गधों के मल-मूत्र और रक्त से दूषित हो गया। ताल के सारे वृक्ष भी एक दूसरे पर गिरकर नष्ट हो गये । पीछे से तालवन शुद्ध होने पर सखाओं एवं सर्वसाधारण के लिए सुलभ हो गया ।


इस उपाख्यान में कुछ रहस्यपूर्ण शिक्षाएँ हैं । श्रीबलदेवप्रभु अखण्ड गुरुतत्त्व हैं । श्रीगुरुदेव की कृपा से ही साधक अज्ञानता से अपने हृदय की रक्षा कर सकता है अर्थात् श्रीगुरुदेव ही सद् शिष्य की विभिन्न प्रकार की अज्ञानता को दूरकर उसके हृदय में कृष्ण भक्ति का संचार कर सकते हैं । धेनुकासुर अज्ञता की मूर्ति हैं । अखंण्ड गुरुतत्त्व बलदेव प्रभु की कृपा से कृष्ण की भक्ति सुदृढ़ होती है । गधे, मूर्ख होने के कारण संसार के विविध प्रकार के भारों को ढोने वाले, गदहियों की लातें खाने वाले तथा धोबियों के द्वारा सर्वदा प्रहार सहने वाले, बड़े कामी भी होते हैं । जो लोग भगवान का भजन नहीं करते और गधे के दुर्गुणों से युक्त होते हैं, वे अपनी मूर्खतावश वर्षाऋतु में प्रचुर घास वाले स्थान पर भी दुबले–पतले तथा गर्मी के समय कम घास के दिनों में मोटे–ताजे हो जाते हैं । यहाँ बलभद्र कुण्ड और बलदेवजी का मन्दिर है । मथुरा के छह मील दक्षिण और मधुवन दो मील दूर और नैऋत कोण में यह तालवन है ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भ्रममाणौ बने तास्मिनृ रम्ये तालवन गतै, विष्णुपुराण 5,8,1
  2. -'लतावेष्टं समंतात् तु मेरूप्रभव्नं महत्, भाति तालवन चैव पुष्पकं पुंडरीकवत्' महाभारत सभापर्व 31,71
  3. अहो तालवनं पुण्यं यत्र तालैर्हतो सुर:। हिताय यादवानाञ्च आत्मक्रीड़नकाय च।। स्कन्द पुराण
  4. एवं सुहृद्वच: श्रुत्वा सुहृत्प्रियचकीर्षया। प्रहस्य जग्मतुर्गोपैर्वृतो तालवनं प्रभू ।। भागवत पुराण


संबंधित लेख