बुध देवता: Difference between revisions

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Revision as of 10:10, 21 March 2011

  • बुध पीले रंग की पुष्पमाला तथा पीला वस्त्र धारण करते हैं। उनके शरीर की कान्ति कनेर के पुष्प की जैसी है। वे अपने चारों हाथों में क्रमश:- तलवार, ढाल, गदा और वरमुद्रा धारण किये रहते हैं। वे अपने सिर पर सोने का मुकुट तथा गले में सुन्दर माला धारण करते हैं। उनका वाहन सिंह है।
  • अथर्ववेद के अनुसार बुध के पिता का नाम चन्द्रमा और माता का नाम तारा है। ब्रह्माजी ने इनका नाम बुध रखा, क्योंकि इनकी बुद्धि बड़ी गम्भीर थी।
  • श्रीमद्भागवत के अनुसार ये सभी शास्त्रों में पारंगत तथा चन्द्रमा के समान ही कान्तिमान हैं। मत्स्य पुराण [1] के अनुसार इनको सर्वाधिक योग्य देखकर ब्रह्मा ने इन्हें भूतन का स्वामी तथा ग्रह बना दिया।
  • महाभारत की एक कथा के अनुसार इनकी विद्या-बुद्धि से प्रभावित होकर महाराज मनु ने अपनी गुणवती कन्या इला का इनके साथ विवाह कर दिया। इला और बुध के संयोग से महाराज पुरूरवा की उत्पत्ति हुई। इस तरह चन्द्रवंश का विस्तार होता चला गया।
  • श्रीमद्भागवत [2] के अनुसार बुद्ध ग्रह की स्थिति शुक्र से दो लाख योजन ऊपर है। बुध ग्रह प्राय: मंगल ही करते हैं, किंतु जब ये सूर्य की गति का उल्लंघन करते हैं, तब आँधी-पानी और सूखे का भय प्राप्त होता है।
  • मत्स्य पुराण के अनुसार बुध ग्रह का वर्ण कनेर पुष्प की तरह पीला है। बुध का रथ श्वेत और प्रकाश से दीप्त है। इसमें वायु के समान वेगवाले घोड़े जुते रहते हैं। उनके नाम-श्वेत, पिसंग, सारंग, नील, पीत, विलोहित, कृष्ण, हरित, पृष और पृष्णि हैं।
  • बुध ग्रह के अधिदेवता और प्रत्यधिदेवता भगवान विष्णु हैं। बुध मिथुन और कन्या राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा 17 वर्ष की होती है।
  • बुध ग्रह की शान्ति के लिये प्रत्येक अमावस्या को व्रत करना चाहिये तथा पन्ना धारण करना चाहिये। ब्राह्मण को हाथी हाँत, हरा वस्त्र, मूँगा, पन्ना, सुवर्ण, कपूर, शस्त्र, फल, षट् रस भोजन तथा घृत का दान करना चाहिये।
  • नवग्रह मण्डल में इनकी पूजा ईशानकोण में की जाती है। इनका प्रतीक वाण है तथा रंग हरा है। इनके जप का वैदिक मन्त्र-

'ॐ उद्बुध्यस्वान्गे प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सँ सृजेथामयं च।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत॥',

पौराणिक मन्त्र-

'पियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥',

बीज मन्त्र-

'ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:', तथा

सामान्य मन्त्र-

'ॐ बुं बुधाय नम:' है। इनमें से किसी का भी नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। जप की कुल संख्या 9000 तथा समय 5 घड़ी दिन है। विशेष परिस्थिति में विद्वान ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (मत्स्यपुराण 24।1-2)
  2. श्रीमद्भागवत(5।22-13)

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