लॉर्ड लिटन: Difference between revisions

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निस्सन्देह लिटन में उच्च कल्पना शक्ति थी। पृथक उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, जो केन्द्रीय सरकार के अधीन हो, बनाने की योजना उसी ने बनायी, यद्यपि इस योजना के कार्यान्वयन का श्रेय [[लॉर्ड कर्ज़न]] को है। नरेन्द्र मण्डल बनाने की योजना भी उसी की सोच थी परन्तु यह योजना [[1921]] ई.  में 'चैम्बर ऑफ प्रिन्सेज' के रूप में मान्टफोर्ड योजना के अन्तर्गत अस्तित्व में आ सकी।  
निस्सन्देह लिटन में उच्च कल्पना शक्ति थी। पृथक उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, जो केन्द्रीय सरकार के अधीन हो, बनाने की योजना उसी ने बनायी, यद्यपि इस योजना के कार्यान्वयन का श्रेय [[लॉर्ड कर्ज़न]] को है। नरेन्द्र मण्डल बनाने की योजना भी उसी की सोच थी परन्तु यह योजना [[1921]] ई.  में 'चैम्बर ऑफ प्रिन्सेज' के रूप में मान्टफोर्ड योजना के अन्तर्गत अस्तित्व में आ सकी।  
 
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thumb|लॉर्ड लिटन

1876 ई. में लिटन वायसराय बन कर भारत आया। वह एक सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, निबन्ध लेखक एवं साहित्यकार था। साहित्य के इतिहास में इसे ओवन मैरिडिथ के नाम से जाना जाता है।

मुक्त व्यापार

लिटन ने मुक्त व्यापार को प्रोत्साहन देते हुए इंग्लैण्ड की सूती मिलों को लाभ पहुँचाने के उद्देश्यों से कपास पर लगे आयात शुल्क को कम कर दिया। उसने लगभग 29 वस्तुओं पर से, जिनमें चीनी, लट्ठा एवं विस्थूला शामिल है, आयात कर को हटा दिया। लॉर्ड लिटन के समय लॉर्ड मेयो द्वारा प्रारम्भ की गयी वित्तीय विकेन्द्रीकरण की नीति चलती रही तथा इस दिशा में एक ओर कदम उठाते हुए प्रान्तीय सरकारों को साधारण प्रान्तीय सेवाओं, जिनमें भूमिकर, उत्पाद कर, आबकारी टिकटें, क़ानून व्यवस्था, साधारण प्रशासन इत्यादि सम्मिलित था, पर व्यय का अधिकार दिया गया। सर जान स्ट्रेची, जो वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के वित्तीय सदस्य थे, ने सभी प्रान्तों में नमक कर की दर बराबर करने का प्रयत्न किया।

अकाल कोष

1876-1878 ई. में उसके समय में बम्बई, मद्रास, हैदराबाद, पंजाब, मध्य भारत आदि में भयानक अकाल पड़ा, लगभग 50 लाख लोग भूख के कारण कालकवलित हुए। लिटन ने अकाल के कारण जांच के लिए रिचर्ड स्ट्रेची की अध्यक्षता में एक अकाल आयोग की स्थापना की। आयोग ने असमर्थ व्यक्तियों की सहायता के लिए प्रत्येक ज़िले में एक अकाल कोष खोलने का सुझाव दिया। अकाल की भयानक स्थिति के बाद दिल्ली में 1 जनवरी, 1877 को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को कैंसर-ए-हिन्द की उपाधि से सम्मानित करने के लिए दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया।

शस्त्र अधिनियम

मार्च, 1878 में भारतीय शस्त्र अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के तहत बिना लाइसेंस के कोई व्यक्ति न तो शस्त्र रख सकता था और न ही व्यापार कर सकता था। यूरापीय, एंग्लो-इण्डियन तथा कुछ विशिष्ट सरकारी अधिकारी इस अधिनियम की सीमा से बाहर थे।

धानिक जानपद सेवा

1879 ई. में लॉर्ड लिटन ने वैधानिक जानपद सेवा के अन्तर्गत ऐसे नियम बनाये जिसने सरकार को कुछ उच्च कुल के भारतीयों को वैधानिक जानपद सेवा में नियुक्त का अधिकार दिया। ये नियुक्तियाँ प्रान्तीय सरकारों की सिफारिश पर भारत सचिव की स्वीकृत से की जानी थी। इनकी संख्या संभावित जानपद सेवा की नियुक्तियों का केवल 1/6 भाग होनी थी, परन्तु लिटन का यह नियम निष्प्रभावी हो गया। लिटन भारतीय सिविल सेवा में भारतीयों के प्रदेश को प्रतिबन्धित करना चाहता था, परन्तु भारत सचिव की सहमति न होने पर उसने परीक्षा की अधिकतम आयु को 21 से घटाकर 19 वर्ष कर दिया। लिटन की ग़लत नीतियों के कारण ही द्वितीय आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध में आंग्ल सेनायें बुरी तरह असफल रही। लिटन ने अलीगढ़ में एक "मुस्लिम-एंग्लो प्राच्य महाविद्यालय" की स्थापना की।

निस्सन्देह लिटन में उच्च कल्पना शक्ति थी। पृथक उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, जो केन्द्रीय सरकार के अधीन हो, बनाने की योजना उसी ने बनायी, यद्यपि इस योजना के कार्यान्वयन का श्रेय लॉर्ड कर्ज़न को है। नरेन्द्र मण्डल बनाने की योजना भी उसी की सोच थी परन्तु यह योजना 1921 ई. में 'चैम्बर ऑफ प्रिन्सेज' के रूप में मान्टफोर्ड योजना के अन्तर्गत अस्तित्व में आ सकी।

गंडमक की संधि

गंडमक की संधि द्वितीय अफ़ग़ान युद्ध (1878-80 ई.) के दौरान मई 1879 में भारतीय ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन वाइसराय लार्ड लिटन और अफ़ग़ानिस्तान के अपदस्थ अमीर शेरअली के पुत्र याक़ूब ख़ाँ के बीच हुई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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