सम्भवनाथ: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 17: | Line 17: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{जैन धर्म2}} | |||
{{जैन धर्म}} | |||
[[Category:जैन तीर्थंकर]] | |||
[[Category:जैन धर्म]] | |||
[[Category:जैन धर्म कोश]] | |||
__INDEX__ | |||
__NOTOC__ | |||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 07:29, 26 February 2012
सम्भवनाथ तीसरे जैन तीर्थंकर थे। द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ के निर्वाण के बाद बहुत काल बीत जाने पर तृतीय तीर्थंकर श्री सम्भवनाथ का जन्म हुआ था। स्वर्ग से च्यवकर प्रभु का जीव श्रावस्ती नगरी के राजा जितारि की रानी सेनादेवी के गर्भ में अवतरित हुआ। माता ने चौदह मंगल स्वप्न देखे। मार्गशीर्ष शुक्ल 15 को तीर्थंकर सम्भवनाथ का जन्म हुआ।
पूर्वजन्म
भगवान अजितनाथ के निर्वाण के बाद महाविदेह के ऐरावत क्षेत्र में क्षेमपुरी का राजा विपुलवाहन राज्य करता था। वह नीति, न्याय एवं करुणा की साक्षात मूर्ति था। प्रजा को दु:खी देखकर उसका ह्रदय बर्फ़ की तरह पिघल जाता था। एक बार राज्य में भयंकर दुष्काल पड़ा। बूँद-बूँद जल के लिये राज्य की प्रजा तरस रही थी। अपनी प्रजा को, स्वधर्मी भाइयों और साधु-संतों को भूख-प्यास से बेहाल देखकर राजा का मन पीड़ा से तड़प उठता था। उसने धान्य भंडार प्रजा के लिये खोल दिये तथा अपने रसोइयों को आदेश दिया- 'मेरी रसोई में कोई भी भूखा-प्यासा व्यक्ति, स्वधर्मी भाई या साधु-महात्मा आये तो वह पहले उन्हें आहार दान दें, बाद में जो बचेगा, उससे मैं अपनी क्षुधा मिटा लूँगा, अन्यथा उनकी सेवा के संतोष से ही मेरी आत्मा संतुष्ट रहेगी।' पूरे दुष्काल के समय अनेक बार राजा भूखे पेट सोत जाता और प्यासे कंठ से ही प्रभु की प्रार्थना करता।[1]
पुर्नजन्म
इस प्रकार की उत्कृष्ट सेवा एवं दान-भावना के कारण राजा विपुलवाहन ने तीर्थंकर नाम-कर्म का उपार्जन किया। कालान्तर में उसके राज्य में वर्षा हुई। सम्पूर्ण दुष्काल भी मिट गया। राजा और प्रजा सुखी हो गये, किन्तु प्रकृति की यह क्रूर लीला देखकर राजा विपुलवाहन के मन में संसार से विरक्ति उत्पन्न हो गई और पुत्र को राज्य सौंपकर वह मुनि बन गये। मुनि विपुलवाह का जीव स्वर्ग में गया। वहीं से च्यवकर श्रावस्ती नगरी के राजा जितारि की रानी सेनादेवी के गर्भ में अवतरित हुआ। पुण्यशाली पुत्र के गर्भ-प्रभाव से राजा जितारि के सम्पूर्ण राज्य में खूब वर्षा हुई। पुत्र का जन्म मार्गशीर्ष शुक्त 15 को हुआ।
नामकरण
शिशु का जन्म हो जाने पर राज्य में धन-धान्य की भरपूर फ़सल हुई। एक बार राजा-रानी छत पर खड़े होकर दूर-दूर के हरे-भरे खेतों को देखने लगे। राजा ने कहा- 'महारानी! इस बार उपजाऊ खेतों में तो क्या, बंजर भूमि में भी देखो, कितनी अच्छी फ़सल हुई है। ऐसा लगता है हमारी आने वाली संतान का ही यह पुण्य प्रभाव है, जो असंभव भी संभव हो रहा है। हम अपने पुत्र का नाम ’संभव’ रखेंगे।[1]
युवावस्था
कालक्रम से सम्भवनाथ युवा हुए। कई राजकन्याओ से उनका पाणीग्रहण कराया गया। बाद मे उन्हें राजपद पर प्रतिष्ठित करके महाराज जितारि ने प्रवज्या अंगीकार कर ली। एक बार महाराज सम्भवनाथ सन्ध्या के समय अपने प्रासाद की छ्त पर टहल रहे थे। सन्ध्याकालीन बादलों को मिलते-बिखरते देखकर उन्हें वैराग्य की प्रेरणा हुई। सम्भवनाथ के मनोभावों को देखकर जीताचार से प्रेरित हो लोकान्तिक देव उपस्थित हुए। उन्होंने प्रभु के संकल्प की अनुमोदना की।
राज्य त्याग
अब सम्भवनाथ अपने पुत्र को राज्य सौंपकर वर्षीदान मे संलग्न हुए। एक वर्ष तक मुक्त हस्त से दान देकर सम्भवनाथ ने जनता का दारिद्रय दुर किया। तत्पश्चात मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा के दिन सम्भवनाथ ने श्रमण-दीक्षा अंगीकार की। चौदह वर्षों की साधना के पश्चात सम्भवनाथ ने केवल ज्ञान प्राप्त कर धर्मतीर्थ की स्थाप्ना की। प्रभु के धर्मतीर्थ मे सहस्त्रों-लाखों मुमुक्षु आत्माओं ने सहभागिता कर अपनी आत्मा का कल्याण किया। सुदीर्घकाल तक लोक मे आलोक प्रसारित करने के पश्चात प्रभु सम्भवनाथ ने चैत्र शुक्ल पंचमी को सम्मेद शिखर से निर्वाण प्राप्त किया। भगवान के धर्म परिवार मे चारुषेण आदि एक सो पाँच गणधर, दो लाख श्रमण, तीन लाख छ्त्तीस हज़ार श्रमणियाँ, दो लाख तिरानवे हज़ार श्रावक और छ्ह लाख छ्त्तीस हज़ार श्राविकाएँ थीं।
चिह्न तथा महत्त्व
'अश्व' भगवान सम्भवनाथ का चिह्न है। जिस प्रकार अच्छी तरह से लगाम डाला हुआ अश्व युद्धों में विजय दिलाता है, उसी प्रकार संयमित मन जीवन में विजय दिलवा सकता है। अश्व से हमें विनय, संयम और ज्ञान की शिक्षाएँ मिलती हैं। यदि भगवान सम्भवनाथ के चरणों में मन लग जाए तो असम्भव भी सम्भव हो सकता है। जैन शास्त्रों में कहा गया है- 'मणो साहस्सिओ भीमो, दुटठस्सो परिधावइ‘ अर्थात 'मन दुष्ट अश्व की तरह बड़ा साहसी और तेज दौडने वाला है।'
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 सम्भवनाथ जी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 26 फ़रवरी, 2012।
संबंधित लेख