देवल (पीलीभीत): Difference between revisions

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*देवल के खंडहरों में भगवान वराह की मूर्ति प्राप्त हुई थी, जो देवल के मंदिर में स्थापित है।
*देवल के खंडहरों में भगवान वराह की मूर्ति प्राप्त हुई थी, जो देवल के मंदिर में स्थापित है।
*ऐसा जान पड़ता है कि यह स्थान प्राचीन समय में वराह पूजा का केन्द्र था।
*ऐसा जान पड़ता है कि यह स्थान प्राचीन समय में वराह पूजा का केन्द्र था।
*देवल ऋषि के मंदिर में 992 ई. का कुटिला लिपि में एक [[अभिलेख]] है, जिससे यह सूचित होता है कि एक स्थानीय राजा और उसकी पत्नी लक्ष्मी ने बहुत से कुंज, उद्यान और मंदिर बनवाए और [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को कई ग्राम दान में दिये, जो निर्मला नदी के जल से सिंचित थे।
*देवल ऋषि के मंदिर में 992 ई. का कुटिला लिपि में एक [[अभिलेख]] है, जिससे यह सूचित होता है कि एक स्थानीय राजा और उसकी पत्नी लक्ष्मी ने बहुत से कुंज, उद्यान और मंदिर बनवाए और [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को कई ग्राम दान में दिये, जो [[निर्मला नदी]] के [[जल]] से सिंचित थे।
*देवल के पास बहने वाला कटनी नाम का नाला ही इस अभिलेख की निर्मला नदी जान पड़ता है।
*देवल के पास बहने वाला कटनी नाम का नाला ही इस अभिलेख की निर्मला नदी जान पड़ता है।



Revision as of 14:07, 22 July 2012

देवल पीलीभीत ज़िला, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक स्थान है। बीसलपुर से 10 मील की दूरी पर देवल और गढ़गजना के खंडहर मौजूद हैं। कहा जाता है कि देवल में देवल नाम के ऋषि का आश्रम था। यह माना जाता है कि प्राचीन समय में देवल भगवान वराह की पूजा का मुख्य केन्द्र था।

'आहुस्तामृषय: सर्वे देवर्पिर्नारदस्तथा असितो देवलो व्यास: स्वयं चैव व्रवीषि में'

  • पांडवों के पुरोहित धौम्य, देवल ऋषि के भाई थे।
  • देवल के खंडहरों में भगवान वराह की मूर्ति प्राप्त हुई थी, जो देवल के मंदिर में स्थापित है।
  • ऐसा जान पड़ता है कि यह स्थान प्राचीन समय में वराह पूजा का केन्द्र था।
  • देवल ऋषि के मंदिर में 992 ई. का कुटिला लिपि में एक अभिलेख है, जिससे यह सूचित होता है कि एक स्थानीय राजा और उसकी पत्नी लक्ष्मी ने बहुत से कुंज, उद्यान और मंदिर बनवाए और ब्राह्मणों को कई ग्राम दान में दिये, जो निर्मला नदी के जल से सिंचित थे।
  • देवल के पास बहने वाला कटनी नाम का नाला ही इस अभिलेख की निर्मला नदी जान पड़ता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 450 |

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