गिरीश कर्नाड: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "चीज " to "चीज़ ")
m (Adding category Category:कन्नड़ साहित्यकार (Redirect Category:कन्नड़ साहित्यकार resolved) (को हटा दिया गया हैं।))
Line 70: Line 70:
[[Category:समकालीन कवि]]
[[Category:समकालीन कवि]]
[[Category:साहित्य कोश]][[Category:फ़िल्म निर्देशक]][[Category:सिनेमा]][[Category:अभिनेता]][[Category:सिनेमा कोश]][[Category:कला कोश]]
[[Category:साहित्य कोश]][[Category:फ़िल्म निर्देशक]][[Category:सिनेमा]][[Category:अभिनेता]][[Category:सिनेमा कोश]][[Category:कला कोश]]
[[Category:कन्नड़ साहित्यकार]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 07:48, 7 December 2012

गिरीश कर्नाड
पूरा नाम गिरीश रघुनाथ कर्नाड
प्रसिद्ध नाम गिरीश कर्नाड
जन्म 19 मई, 1938
जन्म भूमि माथेरान, महाराष्ट्र
कर्म-क्षेत्र साहित्य, सिनेमा
मुख्य रचनाएँ 'ययाति', 'तुग़लक', 'हयवदन', 'अंजु मल्लिगे' आदि
मुख्य फ़िल्में निशांत, मंथन, पुकार आदि
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, पद्म भूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी गिरीश कर्नाड केवल नाटककार ही नहीं, अभिनेता, फ़िल्म निर्माता, कहानी लेखक और समाज की आधुनिक समस्याओं को उजागर करने वाले महान साहित्यकार हैं।
अद्यतन‎

गिरीश कर्नाड (जन्म:19 मई, 1938) एक जाने माने कवि, रंगमंच कर्मी, कहानी लेखक, नाटककार, फ़िल्म निर्देशक और फ़िल्म अभिनेता हैं। गिरीश कर्नाड को 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावा पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने हिन्दी में उत्सव, मंथन, इकबाल, डोर जैसी फ़िल्मों में काम किया।

जीवन परिचय

गिरीश कर्नाड का जन्म 19 मई, 1938 को माथेरान, महाराष्ट्र में हुआ था। बचपन से उनकी रुचि नाटकों की तरफ थी। महाराष्ट्र में जन्में गिरीश ने स्कूल के समय से ही थियेटर से जुड़कर काम करना शुरू कर दिया था। कर्नाटक आर्ट कॉलेज से स्नातक करने के बाद वह इंग्लैण्ड चले गए। जहाँ उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद गिरीश कर्नाड भारत लौट आए और चेन्नई में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में सात साल तक काम करने के बाद इस्तीफा दे दिया। इस दौरान वह चेन्नई के कई आर्ट और थियेटर क्लबों से जुड़े रहे। इसके बाद वह शिकागो चले गए जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी और शिकागो में बतौर प्रोफ़ेसर काम किया। तत्पश्चात गिरीश भारत दुबारा वापस लौट आए और अपने साहित्य के अपार ज्ञान से क्षेत्रीय भाषाओं में कई फ़िल्में भी बनाईं और साथ ही कई फ़िल्मों की पटकथा भी लिखी।[1]

कार्यक्षेत्र

गिरीश कर्नाड केवल नाटककार ही नहीं, अभिनेता, फ़िल्म निर्माता, कहानी लेखक और समाज की आधुनिक समस्याओं को उजागर करने वाले महान साहित्यकार हैं।

साहित्य

उनका विचार था कि वे कवि बनेंगे, परन्तु जब छात्रवृत्ति लेकर आक्सफ़ोर्ड गए, तो उन्होंने नाटकों की ओर रुझान दर्शाया। उन्होंने पहला नाटक कन्नड़ में लिखा और उसके बाद उसका अंग्रेज़ी अनुवाद किया। उनके नाटकों में 'ययाति', 'तुग़लक', 'हयवदन', 'अंजु मल्लिगे', 'अग्निमतु माले', 'नागमंडल', 'अग्नि और बरखा' आदि बहुत प्रसिद्ध हैं। गिरीश ने कन्नड़ भाषा में अपनी रचनाएं लिखीं। जिस समय उन्होंने कन्नड़ में लिखना शुरू किया, उस समय कन्नड़ लेखकों पर पश्चिमी साहित्यिक पुनर्जागरण का गहरा प्रभाव था। लेखकों के बीच किसी ऐसी चीज़ के बारे में लिखने की होड़ थी जो स्थानीय लोगों के लिए बिल्कुल नयी थी। इसी समय कर्नाड ने ऐतिहासिक तथा पौराणिक पात्रों से तत्कालीन व्यवस्था को दर्शाने का तरीका अपनाया तथा काफ़ी लोकप्रिय हुए। गिरीश कर्नाड के नाटक ययाति (1961, प्रथम नाटक) तथा तुग़लक़ (1964) ऐसे ही नाटकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। तुगलक से कर्नाड को बहुत प्रसिद्धि मिली और इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। इनकी कृतियों में जहाँ भारत का पुरातन झाँकता है, वहाँ आधुनिकता का भी सम्मिश्रण है। इस प्रकार साहित्य से सम्बन्धित अनेक क्षेत्रों में काम करने के कारण गिरीश कर्नाड ने कन्नड़ साहित्य को ही समृद्ध नहीं किया, हिन्दी साहित्य भी उनकी देन से अछूता नहीं है।

सिनेमा

गिरीश कर्नाड एक सफल पटकथा लेखक होने के साथ एक बेहतरीन फ़िल्म निर्देशक भी हैं। गिरीश कर्नाड ने वर्ष 1970 में कन्नड़ फ़िल्म 'संस्कार' से अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की जिसकी पटकथा उन्होंने ही लिखी थी। इस फ़िल्म को कई पुरस्कार मिले जिसके बाद गिरीश ने कई फ़िल्में की। उन्होंने कई हिन्दी फ़िल्मों में भी काम किया, जिसमें निशांत, मंथन, पुकार आदि प्रमुख हैं।[1] गिरीश कर्नाड ने छोटे परदे पर भी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम और 'सुराजनामा' आदि सीरियल पेश किए हैं। उनके कुछ नाटक जिनमें 'तुग़लक' आदि आते हैं, सामान्य नाटकों से कुछ भिन्न हैं। गिरीश कर्नाड संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

सम्मान और पुरस्कार

  • 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
  • 1974 में पद्मश्री
  • 1992 में पद्मभूषण
  • 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार
  • 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
  • 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार
  • 1998 में कालिदास सम्मान
  • इसके अतिरिक्त गिरीश कर्नाड को कन्नड़ फ़िल्म ‘संस्कार’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 जन्मदिन विशेषांक: गिरीश कर्नाड (हिन्दी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख