सिबि दधीचि हरिचंद कहानी: Difference between revisions

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वे [[शिबि]], [[दधीचि]] और [[हरिश्चन्द्र]] की कथा एक-दूसरे से बखानकर कहते हैं। कोई एक इसमें [[भरत]] जी की सम्मति बताते हैं। कोई एक सुनकर उदासीन भाव से रह जाते हैं (कुछ बोलते नहीं)॥3॥  
वे [[शिबि]], [[दधीचि]] और [[हरिश्चन्द्र]] की कथा एक-दूसरे से बखानकर कहते हैं। कोई एक इसमें [[भरत]] जी की सम्मति बताते हैं। कोई एक सुनकर उदासीन भाव से रह जाते हैं (कुछ बोलते नहीं)॥3॥  


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{{लेख क्रम4| पिछला= जो हठि भयउ सकल दुख भाजनु |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= कान मूदि कर रद गहि जीहा।}}





Revision as of 06:17, 2 June 2016

सिबि दधीचि हरिचंद कहानी
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
चौपाई

सिबि दधीचि हरिचंद कहानी। एक एक सन कहहिं बखानी॥
एक भरत कर संमत कहहीं। एक उदास भायँ सुनि रहहीं॥3॥

भावार्थ

वे शिबि, दधीचि और हरिश्चन्द्र की कथा एक-दूसरे से बखानकर कहते हैं। कोई एक इसमें भरत जी की सम्मति बताते हैं। कोई एक सुनकर उदासीन भाव से रह जाते हैं (कुछ बोलते नहीं)॥3॥


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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।





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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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