इतिहास सामान्य ज्ञान: Difference between revisions
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- [[शुंग|शुंग काल]] | - [[शुंग|शुंग काल]] | ||
- [[सातवाहन काल]] | - [[सातवाहन काल]] | ||
|| अनेक इतिहासकारों का मत है, कि [[कुषाण]] किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था। यह नाम युइशि जाति की उस शाखा का था, जिसने अन्य चारों युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था। जिस राजा ने पाँचों युइशि राज्यों को मिलाकर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया, उसका अपना नाम [[कुजुल कडफ़ाइसिस]] था। पर्याप्त प्रमाण के अभाव में यह निश्चित कर सकना कठिन है कि जिस युइशि वीर ने अपनी जाति के विविध राज्यों को जीतकर एक सूत्र में संगठित किया, उसका वैयक्तिक नाम कुषाण था या कुजुल था। यह असंदिग्ध है, कि बाद के युइशि राजा भी [[कुषाण वंश|कुषाण वंशी]] थे। राजा कुषाण के वंशज होने के कारण वे कुषाण कहलाए, या युइशि जाति की कुषाण शाखा में उत्पन्न होने के कारण - यह निश्चित न होने पर भी इसमें सन्देह नहीं कि ये राजा कुषाण कहलाते थे और इन्हीं के द्वारा स्थापित साम्राज्य को कुषाण साम्राज्य कहा जाता है। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कुषाण काल]] | |||
{'सिंध का बाग' या 'मृतकों का टीला' [[हड़प्पा सभ्यता]] के किस पुरास्थल को कहा गया? | |||
{'सिंध का बाग' या 'मृतकों का टीला' हड़प्पा सभ्यता के किस पुरास्थल को कहा गया? | |||
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- [[हड़प्पा]] | - [[हड़प्पा]] | ||
- [[कालीबंगा]] | - [[कालीबंगा]] | ||
+ [[ | + [[मोहनजोदाड़ो]] | ||
- [[लोथल]] | - [[लोथल]] | ||
|| [[चित्र:King-priest-mohenjo-daro.jpg|100px|प्रधान अनुष्ठानकर्ता मोहनजोदाड़ो 2000 ई.पू.]] [[मोहनजोदाड़ो]], जिसका कि अर्थ मुर्दो का टीला है 2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। इस सभ्यता के ध्वंसावशेष [[पाकिस्तान]] के सिन्ध प्रान्त के 'लरकाना ज़िले' में [[सिंधु नदी]] के दाहिने किनारे पर प्राप्त हुए हैं। यह नगर करीब 5 कि.मी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। मोहनजोदाड़ो के टीलों का 1922 ई. में खोजने का श्रेय 'राखालदास बनर्जी' को प्राप्त हुआ। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[मोहनजोदाड़ो]] | |||
{[[भारत]] में कृषि का प्राचीनतम साक्ष्य कहाँ से मिलता है? | {[[भारत]] में [[कृषि]] का प्राचीनतम साक्ष्य कहाँ से मिलता है? | ||
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- [[हड़प्पा]] | - [[हड़प्पा]] | ||
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- ग्यारह | - ग्यारह | ||
{उत्तरोत्तर हड़प्पा संस्कृति के अवशेष कहाँ से मिलते हैं? | {उत्तरोत्तर [[हड़प्पा]] संस्कृति के अवशेष कहाँ से मिलते हैं? | ||
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+ [[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]] | + [[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]] | ||
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{[[मोहन जोदड़ो]] की सबसे बड़ी इमारत निम्न में से कौन सी है? | {[[मोहन जोदड़ो]] की सबसे बड़ी इमारत निम्न में से कौन सी है? | ||
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+ अन्नागार | |||
- स्नानागार | |||
- ईटों से बना सभा भवन | - ईटों से बना सभा भवन | ||
- उपर्युक्त में से कोई नहीं | - उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
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- [[हड़प्पा]] में | - [[हड़प्पा]] में | ||
- [[कालीबंगा]] में | - [[कालीबंगा]] में | ||
+ [[मोहन जोदड़ो]] | + [[मोहन जोदड़ो]] में | ||
- [[लोथल]] में | - [[लोथल]] में | ||
|| [[चित्र:King-priest-mohenjo-daro.jpg|100px|प्रधान अनुष्ठानकर्ता मोहनजोदाड़ो 2000 ई.पू.]] [[मोहनजोदाड़ो]], जिसका कि अर्थ मुर्दो का टीला है 2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। इस सभ्यता के ध्वंसावशेष [[पाकिस्तान]] के सिन्ध प्रान्त के 'लरकाना ज़िले' में [[सिंधु नदी]] के दाहिने किनारे पर प्राप्त हुए हैं। यह नगर करीब 5 कि.मी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। मोहनजोदाड़ो के टीलों का 1922 ई. में खोजने का श्रेय 'राखालदास बनर्जी' को प्राप्त हुआ। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[मोहनजोदाड़ो]] | |||
{सैन्धव निवासियों का प्रिय पशु निम्न में से कौन-सा था? | {सैन्धव निवासियों का प्रिय पशु निम्न में से कौन-सा था? | ||
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+ [[कालीबंगा]] | + [[कालीबंगा]] | ||
- वनमाली | - वनमाली | ||
||कालीबंगा [[राजस्थान]] के [[गंगानगर ज़िले]] में [[घग्घर नदी]] के बाएं तट पर स्थित है। खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी. के. थापड़' द्वारा करायी गयी। यहाँ पर प्राक हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। [[हड़प्पा]] एवं [[मोहनजोदाड़ो]] की भांति यहाँ पर सुरक्षा दीवार से घिरे दो टीले पाए गए हैं। कुछ विद्धानों का मानना है कि यह [[सिंधु घाटी सभ्यता|सैंधव सभ्यता]] की तीसरी राजधानी रही होगी। कालीबंगा के दुर्ग टीले के दक्षिण भाग में मिट्टी और कच्चे ईटों के बने हुए पांच चबूतरे मिले हैं, जिसके शिखर पर हवन कुण्डों के होने के साक्ष्य मिले हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कालीबंगा]] | ||कालीबंगा [[राजस्थान]] के [[गंगानगर ज़िले]] में [[घग्घर नदी]] के बाएं तट पर स्थित है। खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी. के. थापड़' द्वारा करायी गयी। यहाँ पर प्राक [[हड़प्पा]] एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। [[हड़प्पा]] एवं [[मोहनजोदाड़ो]] की भांति यहाँ पर सुरक्षा दीवार से घिरे दो टीले पाए गए हैं। कुछ विद्धानों का मानना है कि यह [[सिंधु घाटी सभ्यता|सैंधव सभ्यता]] की तीसरी राजधानी रही होगी। कालीबंगा के दुर्ग टीले के दक्षिण भाग में मिट्टी और कच्चे ईटों के बने हुए पांच चबूतरे मिले हैं, जिसके शिखर पर हवन कुण्डों के होने के साक्ष्य मिले हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कालीबंगा]] | ||
{[[हड़प्पा]] सभ्यता की प्रमुख विशेषता निम्न में से कौन-सी है? | {[[हड़प्पा]] सभ्यता की प्रमुख विशेषता निम्न में से कौन-सी है? | ||
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- [[उपनिषद]] | - [[उपनिषद]] | ||
- [[आरण्यक]] | - [[आरण्यक]] | ||
||'स्मृति' शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। एक अर्थ में यह वेदवाङ्मय से इतर ग्रन्थों, यथा पाणिनि के व्याकरण, श्रौत, [[गृह्यसूत्र]] एवं [[धर्मसूत्र|धर्मसूत्रों]], [[महाभारत]], मनु, याज्ञवल्क्य एवं अन्य ग्रन्थों से सम्बन्धित है। किन्तु संकीर्ण अर्थ में स्मृति एवं धर्मशास्त्र का अर्थ एक ही है, जैसा कि मनु का कहना है। [[तैत्तिरीय आरण्यक]] में भी 'स्मृति' शब्द आया है। गौतम तथा वसिष्ठ ने स्मृति को धर्म का उपादान माना है। | ||'स्मृति' शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। एक अर्थ में यह वेदवाङ्मय से इतर ग्रन्थों, यथा [[पाणिनि]] के व्याकरण, श्रौत, [[गृह्यसूत्र]] एवं [[धर्मसूत्र|धर्मसूत्रों]], [[महाभारत]], [[मनुस्मृति|मनु]], याज्ञवल्क्य एवं अन्य ग्रन्थों से सम्बन्धित है। किन्तु संकीर्ण अर्थ में स्मृति एवं धर्मशास्त्र का अर्थ एक ही है, जैसा कि मनु का कहना है। [[तैत्तिरीय आरण्यक]] में भी 'स्मृति' शब्द आया है। गौतम तथा [[वसिष्ठ]] ने स्मृति को धर्म का उपादान माना है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[स्मृतियाँ]] | ||
{[[ऋग्वेद]] का वह कौन-सा प्रतापी देवता है, जिसका 250 सूक्तों में वर्णन मिलता है? | {[[ऋग्वेद]] का वह कौन-सा प्रतापी [[देवता]] है, जिसका 250 सूक्तों में वर्णन मिलता है? | ||
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- [[अग्नि]] | - [[अग्नि]] | ||
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- [[वरुण देवता|वरुण]] | - [[वरुण देवता|वरुण]] | ||
- द्यौ | - द्यौ | ||
||अधिकांश वैदिक विद्वानों का मत है कि वृत्र सूखा (अनावृष्टि) का दानव है और उन बादलों का प्रतीक है जो आकाश में छाये रहने पर भी एक बूँद जल नहीं बरसाते। इन्द्र अपने वज्र प्रहार से वृत्ररूपी दानव का वध कर जल को मुक्त करता है और फिर [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर वर्षा होती है। ओल्डेनवर्ग एवं हिलब्रैण्ट ने वृत्र-वध का दूसरा अर्थ प्रस्तुत किया है। उनका मत है कि पार्थिव पर्वतों से जल की मुक्ति इन्द्र द्वारा हुई है। ऋग्वेद में इन्द्र को जहाँ अनावृष्टि के दानव वृत्र का वध करने वाला कहा गया है, वहीं उसे रात्रि के अन्धकार रूपी दानव का वध करने वाला एवं प्रकाश का जन्म देने वाला भी कहा गया है। | ||अधिकांश वैदिक विद्वानों का मत है कि वृत्र सूखा (अनावृष्टि) का दानव है और उन बादलों का प्रतीक है जो आकाश में छाये रहने पर भी एक बूँद जल नहीं बरसाते। इन्द्र अपने वज्र प्रहार से वृत्ररूपी दानव का वध कर [[जल]] को मुक्त करता है और फिर [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर वर्षा होती है। ओल्डेनवर्ग एवं हिलब्रैण्ट ने वृत्र-वध का दूसरा अर्थ प्रस्तुत किया है। उनका मत है कि पार्थिव पर्वतों से जल की मुक्ति इन्द्र द्वारा हुई है। [[ऋग्वेद]] में इन्द्र को जहाँ अनावृष्टि के दानव वृत्र का वध करने वाला कहा गया है, वहीं उसे रात्रि के अन्धकार रूपी दानव का वध करने वाला एवं [[प्रकाश]] का जन्म देने वाला भी कहा गया है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[इन्द्र]] | ||
{ऋग्वैदिक काल में विनिमय के माध्यम के रूप में किसका प्रयोग किया जाता था? | {ऋग्वैदिक काल में विनिमय के माध्यम के रूप में किसका प्रयोग किया जाता था? | ||
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- सर्वाधिक पवित्र नदी होने के कारण | - सर्वाधिक पवित्र नदी होने के कारण | ||
- ऋग्वेद में सबसे अधिक बार उल्लेख होने के कारण | - [[ऋग्वेद]] में सबसे अधिक बार उल्लेख होने के कारण | ||
+ | + दाशराज्ञ युद्ध के कारण | ||
- उपर्युक्त सभी | - उपर्युक्त सभी | ||
Line 144: | Line 147: | ||
+ शूद्र | + शूद्र | ||
- चाण्डाल | - चाण्डाल | ||
|| 'ॠक' का अर्थ होता है छन्दोबद्ध रचना या श्लोक। [[चित्र:Rigveda.jpg| | || 'ॠक' का अर्थ होता है छन्दोबद्ध रचना या श्लोक। [[चित्र:Rigveda.jpg|100px|ॠग्वेद का आवरण पृष्ठ]]<br />ॠग्वेद के सूक्त विविध [[देवता|देवताओं]] की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ॠग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्त्रोतों की प्रधानता है। <br />ॠग्वेद में कुल दस मण्डल हैं और उनमें 1,029 सूक्त हैं और कुल 10,580 ॠचाएँ हैं। ये स्तुति मन्त्र हैं। <br />ॠग्वेद के दस मण्डलों में कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ मण्डल बड़े हैं। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ऋग्वेद]] | ||
{[[ऋग्वेद]] में उल्लिखित कुल क़रीब 25 नदियों में से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नदी कौन-सी थी? | {[[ऋग्वेद]] में उल्लिखित कुल क़रीब 25 नदियों में से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नदी कौन-सी थी? | ||
Line 152: | Line 155: | ||
+ [[सरस्वती नदी]] | + [[सरस्वती नदी]] | ||
- [[सिन्धु नदी]] | - [[सिन्धु नदी]] | ||
|| कई भू-विज्ञानी मानते हैं, और [[ॠग्वेद]] में भी कहा गया है, [[चित्र:Saraswati-River.png|सरस्वती नदी<br /> Saraswati River| | || कई भू-विज्ञानी मानते हैं, और [[ॠग्वेद]] में भी कहा गया है, [[चित्र:Saraswati-River.png|सरस्वती नदी<br /> Saraswati River|100px]] कि हज़ारों साल पहले [[सतलुज नदी|सतलुज]] (जो [[सिन्धु नदी|सिन्धु]] नदी की सहायक नदी है) और [[यमुना नदी|यमुना]] (जो [[गंगा नदी|गंगा]] की सहायक नदी है) के बीच एक विशाल नदी थी, जो [[हिमालय]] से लेकर [[अरब सागर]] तक बहती थी। आज ये भूगर्भी बदलाव के कारण सूख गयी है। ऋग्वेद में, [[वैदिक काल]] में इस नदी सरस्वती को 'नदीतमा' की उपाधि दी गयी है। उस सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी, गंगा नहीं। सरस्वती नदी [[हरियाणा]], [[पंजाब]] व [[राजस्थान]] से होकर बहती थी और कच्छ के रण में जाकर अरब सागर में मिलती थी। तब सरस्वती के किनारे बसा राजस्थान भी हराभरा था। उस समय यमुना, [[सतलुज नदी|सतलुज]] व घग्गर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ थीं। बाद में सतलुज व यमुना ने भूगर्भीय हलचलों के कारण अपना मार्ग बदल लिया और सरस्वती से दूर हो गईं। हिमालय की पहाड़ियों में प्राचीन काल से हीभूगर्भीय गतिविधियाँ चलती रही हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[सरस्वती नदी]] | ||
{[[ऋग्वेद]] में 'जन' और 'विश' का उल्लेख क्रमश: कितनी बार हुआ है? | {[[ऋग्वेद]] में 'जन' और 'विश' का उल्लेख क्रमश: कितनी बार हुआ है? |
Revision as of 07:42, 14 January 2011
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