प्रयोग:रविन्द्र१: Difference between revisions
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-[[अशोक]] | -[[अशोक]] | ||
-[[समुद्रगुप्त]] | -[[समुद्रगुप्त]] | ||
||चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 380-413) गुप्त राजवंश का राजा था। समस्त गुप्त राजाओं में समुद्रगुप्त का पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से सम्पन्न था। चन्द्रगुप्त द्वितीय (381-413 ई.) का सेनापति आम्रकार्द्दव था। उसे देव, देवगुप्त, देवराज, देवश्री, श्रीविक्रम, विक्रमादित्य, परमाभागवत्, नरेन्द्रचन्द्र, सिंहविक्रम, अजीत विक्रम आदि उपाधि धारण किए थे। अनुश्रूतियों में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नपरेश रुद्रसेन से किया, रुद्रसेन की मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त ने अप्रत्यक्ष रूप से वाकाटक राज्य को अपने राज्य में मिलाकर उज्जैन को अपनी दूसरी राजधानी बनाई। इसी कारण चन्द्रगुप्त द्वितीय को 'उज्जैनपुरवराधीश्वर' भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | |||
{ किस गुप्तकालीन शासक को ‘कविराज’ कहा गया है? | { किस गुप्तकालीन शासक को ‘कविराज’ कहा गया है? | ||
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-[[श्रीगुप्त]] | -[[श्रीगुप्त]] | ||
-चन्द्रगुप्त द्वितीय | -चन्द्रगुप्त द्वितीय | ||
+समुद्रगुप्त | +[[समुद्रगुप्त]] | ||
-[[स्कन्दगुप्त] | -[[स्कन्दगुप्त] | ||
||समुद्रगुप्त अनुपम वीर था। उसने शीघ्र ही भाइयों के इस विद्रोह को शान्त कर दिया, और पाटलिपुत्र के सिंहासन पर दृढ़ता के साथ अपना अधिकार जमा लिया। काच ने एक साल के लगभग तक राज्य किया। काच नामक गुप्त राजा की सत्ता को मानने का आधार केवल वे सिक्के हैं, जिन पर उसका नाम 'सर्वराजोच्छेता' विशेषण के साथ दिया गया है। अनेक विद्वानों का मत है, कि काच समुद्रगुप्त का ही नाम था। ये सिक्के उसी के हैं, और बाद में दिग्विजय करके जब वह 'आसमुद्रक्षितीश' बन गया था, तब उसने काच के स्थान पर समुद्रगुप्त नाम धारण कर लिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[समुद्रगुप्त]] | |||
{ ‘दीवानी’ एवं ‘फ़ौजदारी’ से सम्बन्धित ग्रन्थ की रचना सर्वप्रथम कब हुई थी? | { ‘दीवानी’ एवं ‘फ़ौजदारी’ से सम्बन्धित ग्रन्थ की रचना सर्वप्रथम कब हुई थी? | ||
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-[[मौर्य काल]] में | -[[मौर्य काल]] में | ||
-[[कुषाण काल]] में | -[[कुषाण काल]] में | ||
+ | +गुप्त काल में | ||
-गुप्तोत्तर काल में | -गुप्तोत्तर काल में | ||
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-[[कुशीनगर]] | -[[कुशीनगर]] | ||
-[[अमरावती]] | -[[अमरावती]] | ||
||बोधगया में बराबर की पहाडि़यों में सात गुफाएं हैं, जिनमें तीन को [[अशोक]] ने आजीविकों को दान कर दिया था। [[श्रीलंका]] के शासक मेघवर्मन ने [[समुद्रगुप्त]] की अनुमति से बोधगया में एक बौद्ध-विहार बनवाया था। बराबर की पहाड़ी से प्राप्त एक अभिलेख में [[मौखरि वंश|मौखरि]] शासक अनन्तवर्मन का वर्णन है। बोधगया के ताराडीह में पालकालीन अवशेष प्राप्त हैं। गया के समीप [[सोनपुर]] से कुषाणों के अवशेष मिले हैं। गया की यात्रा चीनी यात्रियों [[फ़ाह्यान]] तथा [[ह्वेनसांग]] ने की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बोधगया]] | |||
{ [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] ने कब ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी? | { [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] ने कब ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी? | ||
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-काकिनी | -काकिनी | ||
{ | { गुप्त काल के जनपदों की सूची में प्रथम जनपद का सम्मान निम्न में से किसे दिया गया- | ||
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-[[मालवा]] | -[[मालवा]] | ||
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+[[प्रयाग]] | +[[प्रयाग]] | ||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
||प्रयाग शब्द की व्युत्पत्ति वनपर्व यज धातु से मानी गयी है। उसके अनुसार सर्वात्मा [[ब्रह्मा]] ने सर्वप्रथम यहाँ यजन किया था (आहुति दी थी) इसलिए इसका नाम प्रयाग पड़ गया। पुराणों में प्रयागमण्डल, प्रयाग और वेणी अथवा त्रिवेणी की विविध व्याख्याएँ की गयी है। [[मत्स्य पुराण]] तथा [[पद्मपुराण]] के अनुसार प्रयागमण्डल पाँच योजन की परिधि में विस्तृत है और उसमें प्रविष्ट होने पर एक-एक पद पर [[अश्वमेध यज्ञ]] का पुण्य मिलता है। प्रयाग की सीमा प्रतिष्ठान (झूँसी) से वासुकि सेतु तक तथा कंबल और अश्वतर नागों तक स्थित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रयाग]] | |||
{ [[हरिषेण]] किस शासक का दरबारी कवि था? | { [[हरिषेण]] किस शासक का दरबारी कवि था? | ||
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-[[कनिष्क]] | -[[कनिष्क]] | ||
-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | -[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | ||
||सम्राट समुद्रगुप्त के वैयक्तिक गुणों और चरित्र के सम्बन्ध में [[प्रयाग]] की प्रशस्ति में बड़े सुन्दर संदर्भ पाये जाते हैं। इसे महादण्ड नायक ध्रुवभूति के पुत्र, संधिविग्रहिक महादण्डनायक हरिषेण ने तैयार किया था। हरिषेण के शब्दों में समुद्रगुप्त का चरित्र इस प्रकार का था - 'उसका मन विद्वानों के सत्संग-सुख का व्यसनी था। उसके जीवन में सरस्वती और लक्ष्मी का अविरोध था। वह वैदिक मार्ग का अनुयायी था। उसका काव्य ऐसा था, कि कवियों की बुद्धि विभव का भी उससे विकास होता था। कौन सा ऐसा गुण है, जो उसमें नहीं था। सैकड़ों देशों में विजय प्राप्त करने की उसमें अपूर्व क्षमता थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[समुद्रगुप्त]] | |||
{ [[सारनाथ]] के ‘घमेख स्तूप’ का निर्माण किस काल में हुआ था? | { [[सारनाथ]] के ‘घमेख स्तूप’ का निर्माण किस काल में हुआ था? | ||
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-[[मौर्य काल]] | -[[मौर्य काल]] | ||
-[[कुषाण काल]] | -[[कुषाण काल]] | ||
- | -शुंग काल | ||
+ | +गुप्त काल | ||
{ यूरोपीय भाषा में अनुवादित प्रथम भारतीय ग्रन्थ कौन-सा है? | { यूरोपीय भाषा में अनुवादित प्रथम भारतीय ग्रन्थ कौन-सा है? | ||
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-[[श्रीमद्भागवदगीता]] | -[[श्रीमद्भागवदगीता]] | ||
+ | +अभिज्ञानशाकुन्तलम | ||
- | -कुमारसम्भव | ||
- | -कामसूत्र | ||
{ [[सती प्रथा]] का प्रथम उल्लेख कहाँ से मिलता है? | { [[सती प्रथा]] का प्रथम उल्लेख कहाँ से मिलता है? | ||
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{{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} | {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} | ||
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Revision as of 11:56, 20 April 2011
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