कुम्भलगढ़: Difference between revisions

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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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Revision as of 05:53, 10 March 2012

[[चित्र:Kumbhalgarh-Udaipur-1.jpg|thumb|300px|कुंभलगढ़ दुर्ग, उदयपुर]] कुम्भलगढ़ दुर्ग, उदयपुर
कुम्भलगढ़ राजस्थान ही नहीं भारत के सभी दुर्गों में विशिष्ट स्थान रखता है। उदयपुर से 70 किमी दूर समुद्र तल से 1087 मीटर ऊँचा और 30 किमी व्यास में फैला यह दुर्ग मेवाड़ के महाराणा कुम्भा की सुझबुझ व प्रतिभा का अनुपम स्मारक है। इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के दुसरे पुत्र संप्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषों पर 1443 से शुरू होकर 15 वर्षों बाद 1458 में पूरा हुआ था। दुर्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के ढलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। वास्तु शास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बहार जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारते ,यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है।[1]

क़िले का आरेठ पोल नामक दरवाज़ा केलवाड़े के कस्बे से पश्चिम में कुछ दूरी पर 700 फुट ऊँची नाल चढ़ने पर बना है। हमेशा यहाँ राज्य की ओर से पहरा हुआ करता था। इस स्थान से क़रीब एक मील की दूरी पर हल्ला पोल है जहाँ से थोड़ा और आगे चलने पर हनुमान पोल पर जाया जा सकता है। हनुमान पोल के पास ही महाराणा कुंभा द्वारा स्थापित हनुमान की मूर्ति है। इसके बाद विजय पोल नामक दरवाज़ा आता है जहाँ की कुछ भूमि समतल तथा कुछ नीची है। यहीं से प्रारम्भ होकर पहाड़ी की एक चोटी बहुत ऊँचाई तक चली गई है। उसी पर क़िले का सबसे ऊँचा भाग बना हुआ है। इस स्थान को कहारगढ़ कहते हैं। विजय पोल से आगे बढ़ने पर भैरवपोल, नीबू पोल, चौगान पोल, पागड़ा पोल तथा गणेश पोल आती है।

हिन्दुओं तथा जैनों के कई मंदिर विजय पोल के पास की समतल भूमि पर बने हुए हैं। नीलकंठ महादेव का बना मंदिर यहाँ पर अपने ऊँचे-ऊँचे सुन्दर स्तम्भों वाले बरामदे के लिए जाना जाता है। इस तरह के बरामदे वाले मंदिर प्रायः नहीं मिलते। मंदिर की इस शैली को कर्नल टॉड जैसे इतिहासकार ग्रीक (यूनानी) शैली बतलाते हैं। लेकिन कई विद्वान इससे सहमत नहीं हैं। [[चित्र:Kumbhalgarh-Udaipur.jpg|thumb|300px|कुंभलगढ़ दुर्ग, उदयपुर]] वेदी यहाँ का दूसरा उल्लेखनीय स्थान है, महाराणा कुंभा जो शिल्पशास्र के ज्ञाता थे, उन्होंने यज्ञादि के उद्देश्य से शास्रोक्त रीति से बनवाया था। राजपूताने में प्राचीन काल के यज्ञ-स्थानों का यही एक स्मारक शेष रह गया है। एक दो मंजिले भवन के रूप इसकी इमारत है जिसके ऊपर एक गुम्बद बनी हुई है, इस गुम्बद के नीचे वाले हिस्से से जो चारों तरफ से खुला हुआ है, धुँआ निकलने का प्रावधान है। इसी वेदी पर कुंभलगढ़ की प्रतिष्ठा का यज्ञ भी हुआ था। क़िले के सबसे ऊँचे भाग पर भव्य महल बने हुए हैं।

नीचे वाली भूमि में भाली वान (बावड़ी) और मामादेव का कुंड है। महाराणा कुंभा इसी कुंड पर बैठे अपने ज्येष्ठ पुत्र उदयसिंह (ऊदा) के हाथों मारे गये थे। कुंभ स्वामी नामक विष्णु-मंदिर महाराणा कुंभा ने इसी कुंड के निकट मामावट नामक स्थान पर बनवाया था जो अभी टूटी-फूटी अवस्था में है। मंदिर के बाहरी भाग में विष्णु के अवतारों, देवियों, पृथ्वी, पृथ्वीराज आदि की कई मूर्तियाँ स्थापित की गई थीं। पाँच शिलाओं पर राणा ने प्रशस्तियाँ भी खुदवाई थीं जिसमें उन्होंने मेवाड़ के राजाओं की वंशावली, उनमें से कुछ का संक्षिप्त परिचय तथा अपने भिन्न-भिन्न विजयों का विस्तृत-वर्णन करवाया था। राणा रायमल के प्रसिद्ध पुत्र वीरवर पृथ्वीराज का दाहस्थान मामावट के निकट ही बना हुआ है।

गणेश पोल के सामने वाली समतल भूमि पर गुम्बदाकार महल तथा देवी का स्थान है। महाराणा उदयसिंह की राणी झाली का महल यहाँ से कुछ सीढियाँ और चढ़ने पर था जिसे झाली का मालिया कहा जाता था। गणेश पोल के सामने बना हुआ महल अत्यन्त ही भव्य है। ऊँचाई पर होने के कारण गर्मी के दिनों में भी यहाँ ठंडक बनी रहती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुम्भलगढ़ दुर्ग (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) ज्ञान दर्पण। अभिगमन तिथि: 28 जनवरी, 2011।

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