तिल: Difference between revisions
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'''तिल''' का वानस्पतिक नाम | '''तिल''' का वानस्पतिक नाम सेसामम इंडिकम ([[अंग्रेज़ी]]:''Sesamum indicum'') हैं। तिल पेडिलिएसिई कुल का पौधा है, जो दो से चार फुट तक ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ तीन से पाँच इंच लंबी दीर्घवत् या भालाकार होती हैं तथा इनका निचला भाग तीन पालियों या खंडोवा होता है। इसके [[पुष्प]] का दलपुंज हलका [[गुलाबी रंग|गुलाबी]] या [[श्वेत रंग|श्वेत]], 3/4" से 1' तक लंबा, नलिकाकार तथा पाँच विदारों वाला होता है। इसके ऊपर के ओष्ठों के दो पिंडक छोटे होते हैं। तिल अथवा इसके लिये प्रयुक्त होने वाला अन्य शब्द जिंजेली क्रमश: [[संस्कृत]] तथा [[अरबी भाषा]] से प्राप्त हुए हैं। धार्मिक संस्कारों में इसके प्रयोग से ज्ञात होता है कि इसे अति प्राचीन काल से तिलहन के रूप में [[भारत]] में उगाया जाता था। | ||
==उद्गम== | ==उद्गम== | ||
तिल का उद्गम [[भारत]] या [[अफ्रीका |अफ्रीका]] माना जाता है। सभी गरम देश, जैसे [[भूमध्य सागर|भूमध्यसागर]] के तटवर्ती प्रदेश, एशिया माइनर, भारत, [[चीन]], मंचूरिया तथा [[जापान]] में इसकी खेती होती है। भारत में तिल की पैदावार विश्व की लगभग एक तिहाई होती है। इसके लिये हल्की बुमट तथा दुमट [[मिट्टी]] अधिक उपयुक्त है। यह मुख्यत: [[वर्षा]] में और कई स्थानों में शरद ऋतु में भी बोया जाता है। दाने का रंग मुख्यत: श्वेत, भूरा तथा [[काला रंग|काला]] होता है। इसके तेल का प्रयोग खाने, जलाने ओर मारजरीन, साबुन दवाएँ तथा इत्र आदि बनाने में होता है। | तिल का उद्गम [[भारत]] या [[अफ्रीका |अफ्रीका]] माना जाता है। सभी गरम देश, जैसे [[भूमध्य सागर|भूमध्यसागर]] के तटवर्ती प्रदेश, एशिया माइनर, भारत, [[चीन]], मंचूरिया तथा [[जापान]] में इसकी खेती होती है। भारत में तिल की पैदावार विश्व की लगभग एक तिहाई होती है। इसके लिये हल्की बुमट तथा दुमट [[मिट्टी]] अधिक उपयुक्त है। यह मुख्यत: [[वर्षा]] में और कई स्थानों में शरद ऋतु में भी बोया जाता है। दाने का रंग मुख्यत: श्वेत, भूरा तथा [[काला रंग|काला]] होता है। इसके तेल का प्रयोग खाने, जलाने ओर मारजरीन, साबुन दवाएँ तथा इत्र आदि बनाने में होता है। |
Revision as of 12:44, 3 April 2012
thumb|250px|तिल तिल का वानस्पतिक नाम सेसामम इंडिकम (अंग्रेज़ी:Sesamum indicum) हैं। तिल पेडिलिएसिई कुल का पौधा है, जो दो से चार फुट तक ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ तीन से पाँच इंच लंबी दीर्घवत् या भालाकार होती हैं तथा इनका निचला भाग तीन पालियों या खंडोवा होता है। इसके पुष्प का दलपुंज हलका गुलाबी या श्वेत, 3/4" से 1' तक लंबा, नलिकाकार तथा पाँच विदारों वाला होता है। इसके ऊपर के ओष्ठों के दो पिंडक छोटे होते हैं। तिल अथवा इसके लिये प्रयुक्त होने वाला अन्य शब्द जिंजेली क्रमश: संस्कृत तथा अरबी भाषा से प्राप्त हुए हैं। धार्मिक संस्कारों में इसके प्रयोग से ज्ञात होता है कि इसे अति प्राचीन काल से तिलहन के रूप में भारत में उगाया जाता था।
उद्गम
तिल का उद्गम भारत या अफ्रीका माना जाता है। सभी गरम देश, जैसे भूमध्यसागर के तटवर्ती प्रदेश, एशिया माइनर, भारत, चीन, मंचूरिया तथा जापान में इसकी खेती होती है। भारत में तिल की पैदावार विश्व की लगभग एक तिहाई होती है। इसके लिये हल्की बुमट तथा दुमट मिट्टी अधिक उपयुक्त है। यह मुख्यत: वर्षा में और कई स्थानों में शरद ऋतु में भी बोया जाता है। दाने का रंग मुख्यत: श्वेत, भूरा तथा काला होता है। इसके तेल का प्रयोग खाने, जलाने ओर मारजरीन, साबुन दवाएँ तथा इत्र आदि बनाने में होता है।
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