नलिनी जयवंत: Difference between revisions

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==जन्म==
नलिनी जयवंत का जन्म 18 फ़रवरी, 1926 में ब्रिटिश भारत के बम्बई शहर (वर्तमान [[मुम्बई]]) में हुआ था। नलिनी के पिता और अभिनेत्री शोभना समर्थ (नूतन और तनुजा की माँ) की माँ रतन बाई रिश्ते में भाई-बहन थे, इसी नाते नलिनी, शोभना समर्थ की ममेरी बहन लगती थीं।
====विवाह====
वर्ष [[1940]] में नलिनी जयवंत ने निर्देशक वीरेन्द्र देसाई से [[विवाह]] किया। इस दौरान प्रसिद्ध अभिनेता [[अशोक कुमार]] के साथ नलिनी के प्यार की अफवाहें भी उड़ीं। बाद के समय में नलिनी जयवंत ने अभिनेता प्रभु दयाल के साथ दूसरा विवाह कर लिया। प्रभु दयाल के साथ उन्होंने कई फ़िल्मों में भी काम किया।
==फ़िल्मी शुरुआत==
नलिनी जयवंत के [[हिन्दी]] सिनेमा में प्रवेश की कहानी भी काफ़ी रोचक है। किस्सा यूँ है कि हिन्दी सिनेमा के शुरुआती दौर के निर्माता-निदेशकों में से एक थे- चमनलाल देसाई। वीरेन्द्र देसाई इन्हीं चमनलाल देसाई के पुत्र थे। उनकी एक कंपनी थी 'नेशनल स्टूडियोज़'। एक दिन दोनों पिता-पुत्र फ़िल्म देखने सिनेमाघर पहुँचे। शो के दौरान दोनों की नज़र एक लड़की पर पड़ी, जो तमाम भीड़ में भी अपनी दमक बिखेर रही थी। यह नलिनी जयवंत थीं, जिनकी आयु उस समय बमुश्किल 13-14 बरस की ही थी। दोनों पिता-पुत्र की जोड़ी ने दिल ही दिल में इस लड़की को अपनी अगली फिल्म की हीरोइन चुन लिया और ख़्यालों में खो गए। फिल्म कब ख़त्म हो गई और कब वह लड़की अपने परिवार के साथ ग़ायब हो गई, इसकी ख़बर तक दोनों को न हुई।<ref>{{cite web |url=http://balmuskan.blogspot.in/2011/03/blog-post_27.html|title=जीवन के सफर में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को|accessmonthday=20 सितम्बर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
एक दिन वीरेन्द्र देसाई अभिनेत्री शोभना समर्थ से मिलने उनके घर पहुँचे तो देखा कि नलिनी वहाँ मौजूद थीं। नलिनी को देखते ही उनकी आँखों में चमक आ गई और बाछें खिल गईं। असल में शोभना समर्थ, जिन्हें बाद में अभिनेत्री नूतन और तनूजा की माँ और काजोल की नानी के रूप में अधिक जाना गया, नलिनी जयवंत के मामा की बेटी थीं। इस बार वीरेन्द्र देसाई ने बिना देर किए नलिनी के सामने फिल्म का प्रस्ताव रख दिया। नलिनी के लिए तो यह मन माँगी मुराद पूरी होने जैसा था। डर था तो सिर्फ [[पिता]] का, जो फिल्मों के सख्त विरोधी थे। लेकिन वीरेन्द्र देसाई ने उन्हें मना लिया। इस मानने के पीछे एक बड़ा कारण था पैसा। उस समय जयवंत परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी। रहने के लिए भी उन्हें अपने एक रिश्तेदार के छोटे-से मकान में आश्रय मिला हुआ था। इस प्रकार नलिनी जयवंत की पहली फिल्म थी 'राधिका', जो [[1941]] में प्रदर्शित हुई। वीरेन्द्र देसाई के निर्देशन में बनी इस फिल्म के अन्य कलाकार थे- हरीश, ज्योति, कन्हैयालाल, भुड़ो आडवानी आदि। फ़िल्म में [[संगीत]] अशोक घोष का था। इस फिल्म के दस में से सात गीतों में नलिनी जयवंत की आवाज़ थी।


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Revision as of 09:32, 21 September 2013

नलिनी जयवंत (जन्म- 18 फ़रवरी, 1926, बम्बई, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 20 दिसम्बर, 2010, मुम्बई, भारत) भारतीय सिनेमा की उन सुन्दर अभिनेत्रियों में से एक थीं, जिन्होंने पचास और साठ के दशक में सिने प्रेमियों के दिलों पर राज किया। फ़िल्म 'काला पानी' का यह गीत 'नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर', इस गीत पर नलिनी जयवंत द्वारा किये गए अभिनय को भला कौन भुला सकता है। नलिनी जयवंत ने अपने फ़िल्मी सफर की शुरुआत वर्ष 1941 में प्रदर्शित फ़िल्म 'राधिका' से की थी। अपने समय के मशहूर अभिनेता अशोक कुमार के साथ उनके प्रेम की अफवाहें भी उड़ी थीं। अभिनेता दिलीप कुमार, देव आनन्द और अशोक कुमार के साथ नलिनी जयवंत ने कई सफल फ़िल्में दी थीं।

जन्म

नलिनी जयवंत का जन्म 18 फ़रवरी, 1926 में ब्रिटिश भारत के बम्बई शहर (वर्तमान मुम्बई) में हुआ था। नलिनी के पिता और अभिनेत्री शोभना समर्थ (नूतन और तनुजा की माँ) की माँ रतन बाई रिश्ते में भाई-बहन थे, इसी नाते नलिनी, शोभना समर्थ की ममेरी बहन लगती थीं।

विवाह

वर्ष 1940 में नलिनी जयवंत ने निर्देशक वीरेन्द्र देसाई से विवाह किया। इस दौरान प्रसिद्ध अभिनेता अशोक कुमार के साथ नलिनी के प्यार की अफवाहें भी उड़ीं। बाद के समय में नलिनी जयवंत ने अभिनेता प्रभु दयाल के साथ दूसरा विवाह कर लिया। प्रभु दयाल के साथ उन्होंने कई फ़िल्मों में भी काम किया।

फ़िल्मी शुरुआत

नलिनी जयवंत के हिन्दी सिनेमा में प्रवेश की कहानी भी काफ़ी रोचक है। किस्सा यूँ है कि हिन्दी सिनेमा के शुरुआती दौर के निर्माता-निदेशकों में से एक थे- चमनलाल देसाई। वीरेन्द्र देसाई इन्हीं चमनलाल देसाई के पुत्र थे। उनकी एक कंपनी थी 'नेशनल स्टूडियोज़'। एक दिन दोनों पिता-पुत्र फ़िल्म देखने सिनेमाघर पहुँचे। शो के दौरान दोनों की नज़र एक लड़की पर पड़ी, जो तमाम भीड़ में भी अपनी दमक बिखेर रही थी। यह नलिनी जयवंत थीं, जिनकी आयु उस समय बमुश्किल 13-14 बरस की ही थी। दोनों पिता-पुत्र की जोड़ी ने दिल ही दिल में इस लड़की को अपनी अगली फिल्म की हीरोइन चुन लिया और ख़्यालों में खो गए। फिल्म कब ख़त्म हो गई और कब वह लड़की अपने परिवार के साथ ग़ायब हो गई, इसकी ख़बर तक दोनों को न हुई।[1]

एक दिन वीरेन्द्र देसाई अभिनेत्री शोभना समर्थ से मिलने उनके घर पहुँचे तो देखा कि नलिनी वहाँ मौजूद थीं। नलिनी को देखते ही उनकी आँखों में चमक आ गई और बाछें खिल गईं। असल में शोभना समर्थ, जिन्हें बाद में अभिनेत्री नूतन और तनूजा की माँ और काजोल की नानी के रूप में अधिक जाना गया, नलिनी जयवंत के मामा की बेटी थीं। इस बार वीरेन्द्र देसाई ने बिना देर किए नलिनी के सामने फिल्म का प्रस्ताव रख दिया। नलिनी के लिए तो यह मन माँगी मुराद पूरी होने जैसा था। डर था तो सिर्फ पिता का, जो फिल्मों के सख्त विरोधी थे। लेकिन वीरेन्द्र देसाई ने उन्हें मना लिया। इस मानने के पीछे एक बड़ा कारण था पैसा। उस समय जयवंत परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी। रहने के लिए भी उन्हें अपने एक रिश्तेदार के छोटे-से मकान में आश्रय मिला हुआ था। इस प्रकार नलिनी जयवंत की पहली फिल्म थी 'राधिका', जो 1941 में प्रदर्शित हुई। वीरेन्द्र देसाई के निर्देशन में बनी इस फिल्म के अन्य कलाकार थे- हरीश, ज्योति, कन्हैयालाल, भुड़ो आडवानी आदि। फ़िल्म में संगीत अशोक घोष का था। इस फिल्म के दस में से सात गीतों में नलिनी जयवंत की आवाज़ थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जीवन के सफर में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 20 सितम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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