गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा: Difference between revisions

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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==   
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पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-502                                                    
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-503                                                    
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==

Latest revision as of 06:41, 26 June 2016

गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
चौपाई

गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा। मति अकुंठ हरि भगति अखंडा॥
देखि सैल प्रसन्न मन भयउ। माया मोह सोच सब गयऊ॥1॥

भावार्थ

गरुड़ जी वहाँ गए जहाँ निर्बाध बुद्धि और पूर्ण भक्ति वाले काकभुशुण्डि बसते थे। उस पर्वत को देखकर उनका मन प्रसन्न हो गया और (उसके दर्शन से ही) सब माया, मोह तथा सोच जाता रहा॥1॥


left|30px|link=सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को|पीछे जाएँ गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा right|30px|link=करि तड़ाग मज्जन जलपाना|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-503

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