बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
Line 33: | Line 33: | ||
{{poemopen}} | {{poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
; | ;सोरठा | ||
बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु। | बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु। | ||
गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु॥89 क॥ | गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु॥89 क॥ | ||
Line 42: | Line 42: | ||
[[गुरु]] के बिना कहीं ज्ञान हो सकता है? अथवा वैराग्य के बिना कहीं ज्ञान हो सकता है? इसी तरह [[वेद]] और [[पुराण]] कहते हैं कि [[हरि|श्री हरि]] की [[भक्ति]] के बिना क्या सुख मिल सकता है?॥89 (क)॥ | [[गुरु]] के बिना कहीं ज्ञान हो सकता है? अथवा वैराग्य के बिना कहीं ज्ञान हो सकता है? इसी तरह [[वेद]] और [[पुराण]] कहते हैं कि [[हरि|श्री हरि]] की [[भक्ति]] के बिना क्या सुख मिल सकता है?॥89 (क)॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=जानें बिनु न होइ परतीती |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=कोउ बिश्राम कि पाव}} | {{लेख क्रम4| पिछला=जानें बिनु न होइ परतीती |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=कोउ बिश्राम कि पाव}} | ||
''' | '''सोरठा'''-मात्रिक [[छंद]] है और यह '[[दोहा]]' का ठीक उल्टा होता है। इसके विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है। | ||
Latest revision as of 12:13, 6 July 2016
बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु। |
- भावार्थ
गुरु के बिना कहीं ज्ञान हो सकता है? अथवा वैराग्य के बिना कहीं ज्ञान हो सकता है? इसी तरह वेद और पुराण कहते हैं कि श्री हरि की भक्ति के बिना क्या सुख मिल सकता है?॥89 (क)॥
left|30px|link=जानें बिनु न होइ परतीती|पीछे जाएँ | बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान | right|30px|link=कोउ बिश्राम कि पाव|आगे जाएँ |
सोरठा-मात्रिक छंद है और यह 'दोहा' का ठीक उल्टा होता है। इसके विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-516
संबंधित लेख