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==लीची की फ़सल==
==लीची की फ़सल==
परिपक्व शाखाओं के सिरे पर पुष्प गुच्छ आता है। फूल छोटे-छोटे और दलहीन होते है। नर और उभयलिंगी फूल एक ही गुच्छे में लगते है। नर फूल मौसम में पहले खिलते हैं, उभयलिंगी फूल जिनमें मादा भाग सक्रिय रहता है उनके बाद प्रफुल्लित होते हैं। अंत में वे उभयलिंगी फूल खिलते हैं, जिनमें नर भाग सक्रिय रहता है।
परिपक्व शाखाओं के सिरे पर पुष्प गुच्छ आता है। फूल छोटे-छोटे और दलहीन होते है। नर और उभयलिंगी फूल एक ही गुच्छे में लगते है। नर फूल मौसम में पहले खिलते हैं, उभयलिंगी फूल जिनमें मादा भाग सक्रिय रहता है उनके बाद प्रफुल्लित होते हैं। अंत में वे उभयलिंगी फूल खिलते हैं, जिनमें नर भाग सक्रिय रहता है।
लीची के फल, जो कि एक बीजीय नट कहलाते हैं, प्रायः गुच्छों में विकसित होते हैं। लीची के फल पकने पर लगभग 2.5 से॰मी॰ चौड़े, 3.25 से॰मी॰ लम्बे और हृदयाकार होते हैं। छिलके के ऊपर कांटे सी गुलिकायें होती हैं जो पकने पर चपटी एवं रंग गुलाबी हो जाता है। छिलका पतला होता है और गुठली (बीज) मोटी होती हैं गुठली के चारों ओर लिपटा बीजचोल (गूदा) ही खाद्योपयोगी भाग होता है। बीज गहरे भूरे रंग का होता है एवं उसकी लम्बाई 1-22 से॰मी॰ और चोड़ाई 0.6-1.2 से॰मी॰ तक हो सकती है।
लीची के फल, जो कि एक बीजीय नट कहलाते हैं, प्रायः गुच्छों में विकसित होते हैं। लीची के फल पकने पर लगभग 2.5 से.मी. चौड़े, 3.25 से.मी. लम्बे और हृदयाकार होते हैं। छिलके के ऊपर कांटे सी गुलिकायें होती हैं जो पकने पर चपटी एवं रंग गुलाबी हो जाता है। छिलका पतला होता है और गुठली (बीज) मोटी होती हैं गुठली के चारों ओर लिपटा बीजचोल (गूदा) ही खाद्योपयोगी भाग होता है। बीज गहरे भूरे रंग का होता है एवं उसकी लम्बाई 1-22 से.मी. और चोड़ाई 0.6-1.2 से.मी. तक हो सकती है।





Revision as of 09:50, 25 August 2010

thumb|250px|लीची
Lychee
लीची भारत में पाया जाने वाला एक फल है। लीची का वैज्ञानिक नाम लीची चाइनेन्सिस है। लीची सैपिन्डेसी परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य है जिसकी उत्पत्ति चीन में हुई, इसके फल अपने आकर्षक रंग स्वाद और गुणवत्ता के कारण विश्वविख्यात है। भारत एवं चीन दोनों मिलकर विश्व लीची उत्पादन को 91 प्रतिशत का उत्पादन करते हैं परन्तु यह स्थानीय रूप में बेचा जाता है। भारत में लीची फल के बीच क्षेत्रफल में 7वाँ और उत्पादन में 9वाँ स्थान रखती है परन्तु मूल्य के सम्बन्ध में छठा स्थान रखती है। लीची का फल स्वादिष्ट, सुगन्धित, मीठा, रसीला एवं मोतिया सफेद रंग के गूदे से युक्त होता है जो विटामित 'सी' का अच्छा स्रोत है। लीची छोटे आकार का और पतले लेकिन छोटे, मोटे और नरम काँटों से भरे छिलके वाला फल है। लीची का छिलका पहले लाल रंग का होता है और अच्छी तरह पक जाने पर थोड़े गहरे रंग का हो जाता है। अन्दर खूब मुलायम पारदर्शी से सफ़ेद रंग का मोती की तरह चमकदार गूदा होता है जो स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होता है। इस गूदे के अंदर गहरे भूरे रंग का एक बड़ा बीज होता है जो खाने के काम नहीं आता। इसका स्वाद थोड़ा गुलाब और अंगूर से मिलता जुलता पर अनोखा ज़रूर है।

लीची का विकास

लीची एक सदाबहार, उपोष्ण कटिबन्धीय फल है जिसका मूल निवास स्थान दक्षिणी चीन को माना जाता है। भारत में इस पौधे का आगमन म्यान्मार से होते हुए उत्तरी पूर्वी राज्यों जैसे त्रिपुरा में हुआ।

लीची के पोषक तत्व

अन्य फलों की तरह लीची भी पौष्टिक तत्वों का भंडार है। लीची के फल पोषक तत्वों से भरपूर एवं स्फूर्तिदायक होते हैं। इसके फल में शर्करा (10-22%), प्रोटीन (0.7%), वसा (0.3%) एवं अनेक विटामिन जैसे सी, ए, बी1 एवम् बी2 प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।[1]

राष्ट्रीय परिदृश्य

विश्व में भारत, चीन के बाद दूसरा उत्पादक देश है और यहाँ के उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा बिहार राज्य में उत्पादित होता है इसके अलावा पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, असम और त्रिपुरा आदि राज्यों में भी लीची उगाई जाती है भारत में लीची उत्पादन क्षेत्र मुख्यत: उत्तरी और उत्तरपूर्वी भाग तक ही सीमित है जो कि हिमालय की तलहटी से लेकर त्रिपुरा तक निहित है गंगा के समतल मैदानी भागों में इसकी खेती की सान्द्रता अधिक है हमारे देश में लीची का उत्पादन समस्त फलों के उत्पादन का सिर्फ एक प्रतिशत ही है और आंकडों के अनुसार कुल 60,000 हैक्टर क्षेत्र से 4,33,200 टन उत्पादन होता है वर्तमान में उत्पादकता 7.4 टन/हैक्टर है लीची उत्पादन में भारत का सबसे अग्रणी राज्य बिहार है जहाँ देश की लीची का लगभग 45 प्रतिशत क्षेत्रफल है। वर्तमान आंकडों के अनूसार यहँ की औसत उत्पादकता 7.00 मैट्रिक टन हैक्टर है जबकि पश्चिम बंगाल 9.3 तथा झारखंड 12.00 है। उत्पादन की वर्तमान उत्पादकता को बढ़ाकर लीची के वास्तविक क्षमतानुरूप 20-25 टन हैक्टर तक उपज संभवत: प्राप्त की जा सकती है।[2]

लीची का वृक्ष

इसका वृक्ष अपनी गहरी हरी पत्तियों एवं चमकीले लाल फल के साथ सुन्दर भू-दृश्य बनाता है। लीची के वृक्ष में बहुत धीरे-धीरे वृद्वि होती है और पूरे कद तक पहुचने में काफी समय लगता है। इसका ऊपरी भाग प्राकृतिक रूप से गोलाई में फैलता है। लीची के वृक्ष वर्ष में दो बार विशेष रूप से वानस्पतिक वृद्वि करते हैं। पहली वृद्वि फरवरी से आरम्भ होकर अप्रैल तक चलती है तथा दूसरी जुलाई से अक्टूबर तक। सबसे अधिक शाखायें जुलाई में उत्पन्न होती है।

लीची की फ़सल

परिपक्व शाखाओं के सिरे पर पुष्प गुच्छ आता है। फूल छोटे-छोटे और दलहीन होते है। नर और उभयलिंगी फूल एक ही गुच्छे में लगते है। नर फूल मौसम में पहले खिलते हैं, उभयलिंगी फूल जिनमें मादा भाग सक्रिय रहता है उनके बाद प्रफुल्लित होते हैं। अंत में वे उभयलिंगी फूल खिलते हैं, जिनमें नर भाग सक्रिय रहता है। लीची के फल, जो कि एक बीजीय नट कहलाते हैं, प्रायः गुच्छों में विकसित होते हैं। लीची के फल पकने पर लगभग 2.5 से.मी. चौड़े, 3.25 से.मी. लम्बे और हृदयाकार होते हैं। छिलके के ऊपर कांटे सी गुलिकायें होती हैं जो पकने पर चपटी एवं रंग गुलाबी हो जाता है। छिलका पतला होता है और गुठली (बीज) मोटी होती हैं गुठली के चारों ओर लिपटा बीजचोल (गूदा) ही खाद्योपयोगी भाग होता है। बीज गहरे भूरे रंग का होता है एवं उसकी लम्बाई 1-22 से.मी. और चोड़ाई 0.6-1.2 से.मी. तक हो सकती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लीची (हिन्दी) उत्तरा कृषि प्रभा। अभिगमन तिथि: 22 अगस्त, 2010
  2. लीची: अनुसंधान और विकास की मिठास (हिन्दी) नई दिशाएँ। अभिगमन तिथि: 22 अगस्त, 2010

सम्बंधित लिंक