एकलिंगजी उदयपुर: Difference between revisions
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Revision as of 11:32, 6 November 2016
एकलिंगजी उदयपुर
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विवरण | 'एकलिंगजी' राजस्थान राज्य के उदयपुर से 12 मील
(लगभग 19.2 कि.मी.) पर स्थित मंदिर परिसर है। |
राज्य | राजस्थान |
ज़िला | उदयपुर |
निर्देशांक | उत्तर -24° 44′ 45.44″, पूर्व -73° 43′ 20.06″ |
निर्माण काल | 8वीं शताब्दी |
निर्माण कर्ता | बप्पा रावल |
संबंधित लेख | राजस्थान, उदयपुर, मेवाड़, मेवाड़ का इतिहास, मेवाड़ (आज़ादी से पूर्व) |
अन्य जानकारी | परिसर में कुल 108 मंदिर हैं। मुख्य मंदिर में एकलिंगजी की चार सिरों वाली मूर्ति स्थापित है। |
अद्यतन | 16:50, 6 नवम्बर 2016 (IST)
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एकलिंगजी राजस्थान राज्य के उदयपुर से 12 मील (लगभग 19.2 कि.मी.) पर स्थित मंदिर परिसर है। एकलिंगजीराजस्थान का प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थान है। मेवाड़ के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है। इसके पास में इन्द्रसागर नामक सरोवर भी है। आस-पास में गणेश, लक्ष्मी, डुटेश्वर, धारेश्वर आदि कई देवताओं के मन्दिर हैं। पास में ही वनवासिनी देवी का मन्दिर भी है।
इतिहास
कहा जाता है कि डूंगरपुरराज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी। एकलिंग भगवान को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार ऐतिहासिक महत्व के प्रण किए थे। जब विपत्तियों के थपेड़ों से महाराणा प्रताप का धैर्य टूटने जा रहा था तब उन्होंने अकबर के दरबार में रहकर भी राजपूती गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वीराज को, उनके उद्बोधन और वीरोचित प्रेरणा से भरे हुए पत्र के उत्तर में जो शब्द लिखे थे वे आज भी अमर हैं-
- 'तुरुक कहासी मुखपतौ, इणतण सूं इकलिंग, ऊगै जांही ऊगसी प्राची बीच पतंग'[1]
मंदिर
मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया और एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। बाद में यह मंदिर टूटा और पुन:बना था। वर्तमान मंदिर का निर्माण महाराणा रायमल ने 15वीं शताब्दी में करवाया था। इस परिसर में कुल 108 मंदिर हैं। मुख्य मंदिर में एकलिंगजी की चार सिरों वाली मूर्ति स्थापित है। उदयपुर से यहाँ जाने के लिए बसें मिलती हैं। एकलिंगजी की मूर्ति में चारों ओर मुख हैं। अर्थात् यह चतुर्मुख लिंग है। thumb|250|left|एकलिंगजी मंदिर, उदयपुर
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्रताप के शरीर रहते एकलिंग की सौगंध है, बादशाह अकबर मेरे मुख से तुर्क ही कह लाएगा। आप निश्चित रहें, सूर्य पूर्व में ही उगेगा'
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